tag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post3598380641276818674..comments2023-12-31T12:38:02.464-08:00Comments on Tarique: ऋग्वेद में गोमांस भक्षणMohammed Tarique Azmihttp://www.blogger.com/profile/17133579686006547678noreply@blogger.comBlogger107125tag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-1938491186311123322023-12-31T12:38:02.464-08:002023-12-31T12:38:02.464-08:00Look Details at : https://www.linkedin.com/feed/up...Look Details at : https://www.linkedin.com/feed/update/urn:li:activity:7147315968086597633/<br /><br />उ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् ।<br />उ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥<br />॥ ऋग्वेद १०/८६/१४ ॥<br /><br />दश प्राण तथा पन्च तत्त्वको पन्ध्र पदार्थ निर्मित (पञ्च॑दश) मेरो परमेश्वर द्वारा निर्मित (मे॒) शरीरको सुखको प्रदायक (उ॒क्ष्ण:) बिस अङ्गको (विंश॒तिम्) सहयोगले (सा॒कम् हि) अन्तर संयोजन तथा सिंक्रोनाइजेसन गर्ने (पच॑न्ति - पाक शास्त्रमा पकाउने भने जस्तै) र (उ॒त) मेरो प्रदत्त शरीरको (मे॒) दुवै पक्षलाई (उभाकुक्षी) पूर्णता गरिदिन्छ (पृ॑णन्ति)। मेरो (अहम्) प्रलयको समयमा मलाइ सर्वदा सुदृढ (पीव॒ इत्) गर्नको लागि म भित्र (अदिम) परमेश्वर भगवान् प्रभु (ईन्द्र:) उत्कृष्ट सूक्ष्म पदार्थको रूपमा अवस्थित हुनुहुन्छ (विश्वस्मात्)।<br /><br />Constructed from ten pranas and five elements, totaling fifteen substances (पञ्च॑दश), my God (मे॒)—the bestower of bodily joy (उ॒क्ष्ण:)—skillfully assembles them with the assistance of (सा॒कम् हि) twenty organs (विंश॒तिम् - twenty elements), intermingling and synchronizing (पच॑न्ति - in a manner analogous to the precision of culinary science in extracting essence through perfect cooking) perfectly. Furthermore, they (उ॒त) complete (पृ॑णन्ति) both sides (उभाकुक्षी) of my bestowed body (मे॒). The eternal God (अदिम), Lord Prabhu (ईन्द्र:), resides within me (विश्वस्मात्), perpetually empowering me, especially in times of disharmony (Pralaya - पीव॒ इत्).<br /><br />(अथर्ववेदाचार्य नारायण घिमिरे।)<br />(Narayan Ghimire, PhD in Atharvaveda)NarayanCanadahttps://www.blogger.com/profile/15948340099610565155noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-83399639068575197592023-12-31T12:35:45.321-08:002023-12-31T12:35:45.321-08:00https://www.linkedin.com/feed/update/urn:li:activi...https://www.linkedin.com/feed/update/urn:li:activity:7147315968086597633/NarayanCanadahttps://www.blogger.com/profile/15948340099610565155noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-78292793388966734092023-01-06T12:38:59.318-08:002023-01-06T12:38:59.318-08:00ये गलत अर्थ निकाला है।
आकाश में जिन ग्रहों-उपग्रह...ये गलत अर्थ निकाला है।<br /><br />आकाश में जिन ग्रहों-उपग्रहों की गति नष्ट होती देखी जाती है, वे पैंतीस हैं। आरम्भ सृष्टि में सारे ग्रह-उपग्रह रेवती तारा के अन्तिम भाग पर अवलम्बित थे, वे ईश्वरीय नियम से गति करने लगे, रेवती तारे से पृथक् होते चले गये। विश्व के उत्तर गोलार्ध और दक्षिण गोलार्ध में फैल गये, यह स्थिति सृष्टि के उत्पत्तिकाल की वेद में वर्णित है ॥१३-१४॥Samhttps://www.blogger.com/profile/06463724670944292702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-57309447741211515432023-01-06T12:37:59.739-08:002023-01-06T12:37:59.739-08:00उ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् । ...उ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् । उ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥<br /><br />अर्थ<br />आकाश में जिन ग्रहों-उपग्रहों की गति नष्ट होती देखी जाती है, वे पैंतीस हैं। आरम्भ सृष्टि में सारे ग्रह-उपग्रह रेवती तारा के अन्तिम भाग पर अवलम्बित थे, वे ईश्वरीय नियम से गति करने लगे, रेवती तारे से पृथक् होते चले गये। विश्व के उत्तर गोलार्ध और दक्षिण गोलार्ध में फैल गये, यह स्थिति सृष्टि के उत्पत्तिकाल की वेद में वर्णित है ॥१३-१४॥Samhttps://www.blogger.com/profile/06463724670944292702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-34940283031080959432022-09-09T02:44:14.514-07:002022-09-09T02:44:14.514-07:00१०. ऋग्वेद ९-७९-४ "दिवि ते नाभा परमः यः आददे ...१०. ऋग्वेद ९-७९-४ "दिवि ते नाभा परमः यः आददे पृथिव्याः ते रुरुहुः सानवि क्षिपः अद्रयः त्वा बप्सति गोः अधि त्वचि अप् सु त्वा हस्तैः दुदुहुः मनीषिणः ॥" <br />(हे शोण, आपका परमअंश धुलोकात हैं, वहा से आपकी अंश पृथ्वीपर पर्वतोंपे गिर गये और उनके वृक्ष बन गये. बुद्धिमान लोग आपको हातों से चमड़ों के ऊपर पत्थर से रगड़ते हैं और पानी से धो डालते हैं)<br />११. ऋग्वेद ८-५-३८ "यः । मे । हिरण्यऽसन्दृशः । दश । राज्ञः । अमंहत । अधःऽपदाः । इत् । चैद्यस्य । कृष्टयः । चर्मऽम्नाः । अभितः । जनाः ॥" <br />(उन्ह वीर पुत्र नायकों कि संतती पृथ्वीपर जीवित हैं, मदद करनेवाले सारे उनके चारों दिशाए में हैं, वो चमड़े का इस्तेमाल करनेवाले हैं)<br />१२. ऋग्वेद ९-१० "अव्यः वारेभिः पवते सोमः गव्ये अधि त्वचि कनिक्रदत् वृषा हरिः इन्द्रस्य अभि एति निः कृतम् "<br />(सोमलता बेल का रस गाय के चमडिपर छानते हैं, पराक्रमी आदमी सोम शब्द का उच्चारण करके इंद्रपदपर विराजमान होता है)<br />१३. ऋग्वेद १०-१६-७ "अग्नेः वर्म परि गोभिः व्ययस्व सं प्र ऊणुष्व पीवसा मेदसा च न इत् त्वा धृष्णुः हरसा जर्हृषाणः दधृक् वि-धक्ष्यन् परि-अङ्खयाते ॥" <br />(हे मृतात्मा, तू धर्म के साथ अग्नि कि ज्वाला का कवच धारण कर. तू वपा और मांस से आच्छादित हो)<br />१४. ऋग्वेद १-१६२-३ "एष छागः पुरः अश्वेन वाजिना पूष्णः भागः नीयते विश्वऽदेव्यः ॥ अभिऽप्रियं यत् पुरोळाशं अर्वता त्वष्टा इत् एनं सौश्रवसाय जिन्वति ॥" <br />(सभी देवताओं को काम आनेवाला बकरा, जगत्पोषक का ही अंश हैं, उसको शीघ्रगामी घोड़े के सामने लाया जाता हैं, इसलिए देवताओं के उत्कृष्ट भोजन के लिए घोड़े के साथ बकरे का मांस भी पकाना चाहिए)<br />१५. ऋग्वेद १-१६२-९ "यत् अश्वस्य क्रविषः मक्षिका आश यत् वा स्वरौ स्वऽधितौ रिप्तं अस्ति ॥ यत् हस्तयोः शमितुः यत् नखेषु सर्वा ता ते अपि देवेषु अस्तु ॥" <br />(घोड़ों का जो कच्चा मांस मक्खियां खाती हैं, काटने या साफ़ करते समय जो हत्यार को लगता हैं, या काटनेवालों के हात और नाख़ून से लगता हैं वो सब देवों के पास जाने दो)<br />१६. ऋग्वेद १-१६२-१२ “ये वाजिनं परिऽपश्यंति पक्वं ये ईं आहुः सुरभिः निः हर इति ॥ ये च अर्वतः मांसऽभिक्षां उपऽआसत उतो इति तेषां अभिऽगूर्तिः न इन्वतु ॥”<br />(हे घोड़ों, अग्नि में पकते वक्त तुम्हारे शरीर से जो रस निकलता हैं और उसका जो भाग हत्यार को चिपकके रहता हैं और मिट्टीमे गिर जाता हैं वो घास में मिश्रित ना हो जाए. देवता उसको खाने कि इच्छा कर रहे हैं, बलि का सारा भाग उनको ही मिले)<br /><br /><br />१७. ऋग्वेद १-१६-२ "इमाः धानाः घृतऽस्नुवः हरी इति इह उप वक्षतः । इंद्रं सुखऽतमे रथे ॥" <br />(घोड़ों को पकाते वक्त सारे सभी दिशाओं से देख रहे हैं, 'अच्छा सुगंध आ रहा हैं, देवों को अर्पण कीजिये' ऐसा जो कह रहे हैं, जो मांस भिक्षा कि कामना रखते हैं और वो मिलने के लिए उधर बैठे हुए हैं, उनका भाग भी हमें ही मिले).<br />१८. यजुर्वेद ३५-२० "वह वपां जातवेदः पितृभ्यो यत्रैनान्वेत्थ निहितान्पराके । मेदसः कुल्याऽ उप तान्त्स्रवन्तु सत्याऽ एषामाशिषः सं नमन्ताँ स्वाहा ॥" <br />(पितरों के लिए आप ख़ास गाय का चमड़ा लेकर जाओ, उस ख़ास चमड़ी से निकलनेवाली वपा का प्रवाह पितरों कि तरफ बहता जाये और उन पितरों के लिए दान करने वालों कि सारी कामनाएं पूरी हो जाये).<br />१९. अथर्ववेद १४-२-२२, "यं बल्बजंन्यस्यथ चर्म चोपस्तृणीथन। तदा रोहतु सुप्रजा या कन्यासs विन्दतेपतिम् ॥"<br />(आपके द्वारा रखे गए वल्वजा पर और पति को प्राप्त किये हुए कन्या को चमड़ी के बिस्तर पर बिठाना चाहिए।)<br />भाषांतर / अनुवाद (डा. एस. एल. सागर).<br />संदर्भ : हिंदूंनी केलेले गोमांसभक्षण, (हिन्दुओं द्वारा गोमांसभक्षण) ले. डा. एस. एल. सागर, प्रकाशक सुगावा प्रकाशन, पुणे.<br />Vikashttps://www.blogger.com/profile/03353617535035962056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-15282731128143697142022-09-09T02:43:23.711-07:002022-09-09T02:43:23.711-07:00वेदों के प्रमाण………
१. ऋग्वेद १०-८६-१४ "उक्षणो...वेदों के प्रमाण………<br />१. ऋग्वेद १०-८६-१४ "उक्षणों ही में पंचदंश साकं पंचंती: विश्तिम् | उताहंमदिंम् पीव इदुभा कुक्षी प्रणन्ती में विश्व्स्मान्दिन्द्र ||"<br /> (इन्द्र देव का कथन, 'यज्ञ करनेवाले यजमान मेरे लिए १५-२० बैल मारकर पकाते हैं, वह खाकर में ताकतवर हो जाता हूँ, वे मेरा पेट मद्य से भी भर देते हैं’)<br />२. ऋग्वेद १०-८९-१४ "मित्र कूवो यक्षसने न् गाव: पृथिव्या | आपृगामृया शयंते ||" <br />(हे इन्द्र देव, जिस प्रकार गोवध स्थानपर गायोंको मारा जाता हैं उसीप्रकार आप के इस अस्त्र से मित्रद्वेषी राक्षस मर कर चिरनिद्रित हो जाने दो)<br />३. ऋग्वेद १०-२८-३ "आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती | सोमान पिवसित्व मेषा || "पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां | पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||" <br />(हे इन्द्र देव, अत्रा कि कामनासे जिस वक्त आप के लिए हवन किया जाता हैं, उस वक्त यजमान पत्थरों पे जल्द से जल्द सोमरस तैयार करते हैं वह आप प्राशन करते हो, यजमान बैल का मांस पकाते हैं वो आप खाते हैं)<br />४. ऋग्वेद १०-८९-१४ "कर्हि स्वित् सा ते इन्द्र चेत्या असत् अघस्य यत् भिनदः रक्षः आईषत् मित्र-क्रुवः यत् शसने न गावः पृथिव्याः आपृक् अमुया शयन्ते ॥“ <br />(हे इन्द्र देव, आपने जो अस्त्र और बाण फेंककर राक्षसों कि कत्तल कि हैं, उनको कहा फेके? जिस प्रकार गोवध स्थल पर ही गाय कि कत्तल कि जाती हैं, इसप्रकार आपके इस अस्त्र से घायल हुए मित्रद्वेषी राक्षसों को पृथ्वीपर चिरनिद्रिस्त हो जाने दो)<br />५. ऋग्वेद १०-७९-६ "किं देवेषु त्यजः एनः चकर्थ अग्ने पृच्चामि नु त्वां अविद्वान् अक्रीळन् क्रीळन् हरिः अत्तवे अदन् वि पर्व-शः चकर्त गाम्-इव असिः ॥" <br />(जिसप्रकार तलवार गाय के टुकड़े करती हैं)<br />६. ऋग्वेद १०-९१-१४ "यस्मिन् अश्वासः ऋषभासः उक्षणः वशाः मेषाः अव-सृष्टासः आहुताः कीलाल-पे सोम-पृष्ठाय वेधसे हृदा मतिं जनये चारुं अग्नये ॥" <br />(जिस में घोड़ा, बैल, वशा गाय, बकरा इ. का हवन किया गया उस अग्निपर थोड़ा मद्य छिड़ककर मै मन से उनका स्तवन करता हूँ)<br />७. ऋग्वेद १०/१६९/३ "याः देवेषु तन्वं ऐरयन्त यासां सोमः विश्वा रूपाणि वेद ताः अस्मभ्यं पयसा पिन्वमानाः प्रजावतीः इन्द्र गो--स्थे रिरीहि ॥"<br />(जो गायें देवो के यज्ञ के लिए खुद को अर्पण कर देते हैं, जो गायें आहुति सोम जानती हैं, उन्ह गायों को हे इंद्र देव, दूध से परिपूर्ण और संतती युक्त बनाकर हमारे लिए गौशाला में भेज दो)<br />८. ऋग्वेद ६-१७-११ "वर्धान् यं विश्वे मरुतः सऽजोषाः पचत् छतं महिषान् इन्द्र तुभ्यं । पूषा विष्णुः त्रीणि सरांसि धावन् वृत्रऽहनं मदिरं अंशुं अस्मै ॥" <br />(हे इंद्र देव, सम्पूर्ण मरुत गण सम्मिलित होकर स्प्रेताद्वारा आपको वचनबद्ध कराते हैं और आपके वजह से पूषा और विष्णू देव शेकडों भैसों का पाक बनाते हैं, उसीप्रकार तीन यात्राएं पूरी करने के लिए मादक और वृत्र नाशक ऐसा सोम उसमे डाल देते हैं)<br />९. ऋग्वेद १०-८६-१३ "वृषाकपायि रेवति सु-पुत्रे आत् ओं इति सु-स्नुषे घसत् ते इन्द्रः उक्षणः प्रियं काचित्-करं हविः वि श्वस्मात् इन्द्रः उत्-तरः ॥" <br />(हे वृषकपी पत्नी, आप धन से पूर्ण, गुणों से पूर्ण और सुन्दर सुपुत्रवती हैं. आपके बैलों का इंद्र देव भक्षण करें, आपकी प्यारी और सुखकारक चीजों का बलि का आप भक्षण करें, इन्द्रे देव सर्वश्रेष्ठ हैं)<br />Vikashttps://www.blogger.com/profile/03353617535035962056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-80036887816423137842021-06-13T09:54:42.659-07:002021-06-13T09:54:42.659-07:00Ye sab fake he... Mene book me sab compare kiya..e...Ye sab fake he... Mene book me sab compare kiya..esa ku6 he hi nahi.. mc saleAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/10326874152054404564noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-42192178240581486022021-06-09T22:34:43.108-07:002021-06-09T22:34:43.108-07:00ap gai ko maa mante ho sand ko baap kyu nhi manteap gai ko maa mante ho sand ko baap kyu nhi manteakramkhanhttps://www.blogger.com/profile/04799922551159419551noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-58009547531153363332021-06-09T22:30:06.837-07:002021-06-09T22:30:06.837-07:00fir us ka shikar kyu karte ho ram ne hiran ko kyu ...fir us ka shikar kyu karte ho ram ne hiran ko kyu mara . insan ke muh me dono tarah ke dant hote he nokile bhi aur bager nokile bhi sher wale bhi aur bakri wale bhi quran me khuda ne kaha he ki ham ne quraan ko utara aur ham hi is ki hi fazat karne walw he . aur quraan me khuda ne kaha ki agar tum ko shak ho ki ye quraan khuda ki kitab nhi he to is ki jaisi ek sorah hi la kar bata do madad ke liye tamam insano ko le lo . app piri diya me jaha se chahe quraan bula lo fir sab ko milao app zara sa bi farq nhi dekhenge . khuda ka kalam he . koi shatan is ko nhi likh sakta . akramkhanhttps://www.blogger.com/profile/04799922551159419551noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-50987291654751000212021-06-09T22:20:01.474-07:002021-06-09T22:20:01.474-07:00khuda ek hi he us ek khiuda ki pooja ka kiya tariq...khuda ek hi he us ek khiuda ki pooja ka kiya tariqa he app ke pas ved to ek hi khuda ko poojne ko kahta he akramkhanhttps://www.blogger.com/profile/04799922551159419551noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-56294822397664652412021-05-25T05:26:13.899-07:002021-05-25T05:26:13.899-07:00ऋग्वेद के कुछ मन्त्र के फोटो देखने की कृपा करें
�...ऋग्वेद के कुछ मन्त्र के फोटो देखने की कृपा करें <br />👇👇👇👇👇<br /><br />https://drive.google.com/file/d/1m_1yE4HgtmUo2Rh0NGVDlJ2nnmLGpt4M/view?usp=drivesdkआदिलhttps://www.blogger.com/profile/15643309805221235382noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-4868024109189727612021-05-25T05:23:16.175-07:002021-05-25T05:23:16.175-07:00तो फिर ऋग्वेद के हिसाब से इंद्र क्या हुए जो बैल खा...तो फिर ऋग्वेद के हिसाब से इंद्र क्या हुए जो बैल खाते थे❓आदिलhttps://www.blogger.com/profile/15643309805221235382noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-11253349795956607672021-05-25T05:21:55.096-07:002021-05-25T05:21:55.096-07:00सोमरस क्या है इसको पढ लेना पता चल जाएगा
Download ...सोमरस क्या है इसको पढ लेना पता चल जाएगा <br />Download link 👇<br />https://drive.google.com/file/d/15pDrLajP1FU3ZcGD3aQpNrsrA_7R1mVS/view?usp=drivesdkआदिलhttps://www.blogger.com/profile/15643309805221235382noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-37570523871744720822021-04-16T12:17:59.560-07:002021-04-16T12:17:59.560-07:00भाई इस मन्त्र को खुद जाकर पढो ऋग्वेद उठाकर यह मन्...भाई इस मन्त्र को खुद जाकर पढो ऋग्वेद उठाकर यह मन्त्र ही गलत लिखा है अर्थ भी अपनी मर्जी से लिखा है मै इस मन्त्र को पढा हूं यह बेफकूफ बना रहा है । खुद पढो और बढो। Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/00758563739979205961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-16594829810995971862021-04-16T12:14:33.022-07:002021-04-16T12:14:33.022-07:00बेफकूफ हो क्या बकवास बाजी है क्या संविधान मे देखो ...बेफकूफ हो क्या बकवास बाजी है क्या संविधान मे देखो हिन्दु किसे कहते हैAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/00758563739979205961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-29597500304090841602021-04-16T12:11:54.376-07:002021-04-16T12:11:54.376-07:00आप लोगों को मूरख बना रहे है एक तो आपका मन्त्र ही ग...आप लोगों को मूरख बना रहे है एक तो आपका मन्त्र ही गलत है जो लिखे है अर्थ तो गलत होंगे ही।जो मन्त्र संख्या आप बता रहे उस मन्त्र को हटाये नहीं तो कानूनी कारवाही हो सकती है प्रमाण है यह मन्त्र हटाये।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/00758563739979205961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-90926190887033553022020-11-19T03:07:37.317-08:002020-11-19T03:07:37.317-08:00मादरचोद कटवा तेरी अम्मी बहन को एक खटिया मे चोद कर ...मादरचोद कटवा तेरी अम्मी बहन को एक खटिया मे चोद कर तेरे ताला चाबी के पास भेज दूंगा<br /><br />मदरचोद गलत बात को लिखता है लोगों को गलत चीज सोचने के लिए मजबूर करता है भोसडीके पड़ोसी के मेहनत का पैदाइशी कटवा<br /><br /><br />ये पढ मादरचोद तेरा अम्मी और तेरे बहन को चोद चोड कर लिखा हुआ एक एक लिखा हुआ सत्य है<br /><br />पढ़ सकता है तो पढ़ भोसडीके कोई कुछ नहीं बोलता बोलके तुम मादरचोदों की अम्मी बहन की चूत फड़फड़ाती जाती है ना तो ले पढ़ रे गांडू<br /><br /><br /><br /><br /><br />उ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् । उ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥<br /><br />अंग्रेज़ी लिप्यंतरण<br /><br />ukṣṇo hi me pañcadaśa sākam pacanti viṁśatim | utāham admi pīva id ubhā kukṣī pṛṇanti me viśvasmād indra uttaraḥ ||<br /><br /><br />पद पाठ<br />उ॒क्ष्णः । हि । मे॒ । पञ्च॑ऽदश । सा॒कम् । पच॑न्ति । विं॒श॒तिम् । उ॒त । अ॒हम् । अ॒द्मि॒ । पीवः॑ । इत् । उ॒भा । कु॒क्षी इति॑ । पृ॒ण॒न्ति॒ । मे॒ । विश्व॑स्मात् । इन्द्रः॑ । उत्ऽत॑रः ॥ १०.८६.१४<br /><br /><br />ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:86» मन्त्र:14 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:14<br /><br /><br /><br />ब्रह्ममुनि<br /><br />पदार्थान्वयभाषाः - <br />(वृषाकपायि रेवति) हे वृषाकपि-सूर्य की पत्नी रेवती तारा नक्षत्र ! (सुपुत्रे-आत् सुस्नुषे) अच्छे पुत्रोंवाली तथा अच्छी सुपुत्रवधू (ते-उक्षणः) तेरे वीर्यसेचक सूर्य आदियों को (प्रियं काचित्करं हविः) प्रिय सुखकर हवि-ग्रहण करने योग्य भेंट को (इन्द्रः-घसत्) उत्तरध्रुव ग्रहण कर लेता है-मैं उत्तर ध्रुव खगोलरूप पार्श्व में धारण कर लेता हूँ, तू चिन्ता मत कर (मे हि पञ्चदश साकं विंशतिम्) मेरे लिये ही पन्द्रह और साथ बीस अर्थात् पैंतीस (उक्ष्णः पचन्ति) ग्रहों को प्रकृतिक नियम सम्पन्न करते हैं (उत-अहम्-अद्मि) हाँ, मैं उन्हें खगोल में ग्रहण करता हूँ (पीवः) इसलिये मैं प्रवृद्ध हो गया हूँ (मे-उभा कुक्षी-इत् पृणन्ति) मेरे दोनों पार्श्व अर्थात् उत्तर गोलार्ध दक्षिण गोलार्धों को उन ग्रह-उपग्रहों से प्राकृतिक नियम भर देते हैं ॥१३-१४॥<br /><br /><br />भावार्थभाषाः - <br />आकाश में जिन ग्रहों-उपग्रहों की गति नष्ट होती देखी जाती है, वे पैंतीस हैं। आरम्भ सृष्टि में सारे ग्रह-उपग्रह रेवती तारा के अन्तिम भाग पर अवलम्बित थे, वे ईश्वरीय नियम से गति करने लगे, रेवती तारे से पृथक् होते चले गये। विश्व के उत्तर गोलार्ध और दक्षिण गोलार्ध में फैल गये, यह स्थिति सृष्टि के उत्पत्तिकाल की वेद में वर्णित है ॥१३-१४॥सरोज कुमार दासhttps://www.blogger.com/profile/17314700710064011605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-73906115443405475202020-11-17T12:09:31.434-08:002020-11-17T12:09:31.434-08:00बिल्कुल ठीक..बिल्कुल ठीक..आलोक कुजूरhttps://www.blogger.com/profile/09912625743411979566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-54570571359056357442020-10-21T18:42:51.663-07:002020-10-21T18:42:51.663-07:00Bhaiya gay bhains ye sab baad wali baat hai sabse ...Bhaiya gay bhains ye sab baad wali baat hai sabse pahle us maa ki dekh bhal karo na jo tumhe janam diya hai<br />Aur us bibi ki jise tum shadi kar late ho<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09123551303358928102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-21359250783077841632020-09-25T12:21:42.993-07:002020-09-25T12:21:42.993-07:00जैसे तुम्हारा मोहमद गधी पे बैठकर गुमता था वैसे तू ...जैसे तुम्हारा मोहमद गधी पे बैठकर गुमता था वैसे तू बी गधा है । तुम अर्थ ही गलत बोल रहे होAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/15876049467091466106noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-56118487154126997012020-08-26T20:53:38.632-07:002020-08-26T20:53:38.632-07:00Agar aisa hai jo gyan pelte hain jiv hatya par to ...Agar aisa hai jo gyan pelte hain jiv hatya par to un ko belt , purse , har wo chiz jo chamra se banti hai band kardena chaiye..beaf export me india 3 number par hai un ko roko jo bare bare brahman log ki company chal rahi hai ..<br />Dusri baat log padhte nahi hain or gyan aukat se zada rakhte hain..<br /><br /><br />Aj adhar card se chiken ,mutton ,fish ki shop par sail ho to sab pata chal jaega kiski bheer zada hai..pura sawan nahi khanege baad me sab gatak jaenge ye kon sa dharam kahta hai Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08627983125291198461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-74593169714018083462020-08-25T09:23:28.706-07:002020-08-25T09:23:28.706-07:00यहाँ मंत्र ही सही नहीं लिखा हैं तो अर्थ कहा सही हो...यहाँ मंत्र ही सही नहीं लिखा हैं तो अर्थ कहा सही होगा, अब सबको पहले असली श्लोक बताइये अर्थ क्या है ये हम बता देंगे Nshttps://www.blogger.com/profile/07166760926853707143noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-77175220585448172872020-08-12T00:28:59.830-07:002020-08-12T00:28:59.830-07:00इसके व्याकरण को ठीक से पढ़ो क्योंकि ये पाणिनि के प...इसके व्याकरण को ठीक से पढ़ो क्योंकि ये पाणिनि के पहले की संस्कृत हैAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/14727784138388599807noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-5224328338122071662020-07-29T13:59:22.246-07:002020-07-29T13:59:22.246-07:00kya? manusmriti pade ho vastav me tab to yebhi pat...kya? manusmriti pade ho vastav me tab to yebhi pata hona chahiye ki 4 varn jo vedon ke anusar hai jiski charcha manusmriti ki gayi hai jisko khud prmatma yani ishwar ne banaya hai ex iswar ke prtek ang se manusya ka srijan hota hai mukh se bhramn,bhuja se kshtriya,udar yani pet se vaisya, paad yani pair se shudra<br />jinke karm ke adhar pe hi bada chota bola gaya hai.isi ksrn shudra ko chota aur bhraman ko bada bataya gaya haisdhttps://www.blogger.com/profile/08935733576250466707noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4021478441369726517.post-46243032152102756682020-06-11T07:46:28.814-07:002020-06-11T07:46:28.814-07:00Puri Dunuya me hr burai ki suruvaat India m hi q h...Puri Dunuya me hr burai ki suruvaat India m hi q huyi h. ek bhi yaise crime ni h jiska itihas bharat m ni h. Hm duniya ko visvaguru kahte h lekin Kis baat ka gyan diya. Ridved k mantro m virodh ho sakta h qki vaha alag alag muni h. Kuchh ne meat ko sahi mana kuchh ne glt. Vaise sabko pta honi chahiye ki Jb koi bridge bnta tha to bali di jaati thi ye kisne btaya logo ko? us time kevel muni pde the. Angrejo se pahle mandiro me bali di jaati thi. Bakre ki bali dena prachin kaal se juda h. Ved kya batata h ye jaruri ni h lekin us time k mahapurus jo inko likhe usne kabhi insaan ko insaan ni mana ye sab jante h isliye Ved me yaisa likha ho sakta h. Vaise bhi ved puran ki kaun se baat sahi hoti h. Brahma ne duniya banaya h sabse bda jhuth jise aaj bhi logo ko dara rhe hAnonyhttps://www.blogger.com/profile/09975869598958979016noreply@blogger.com