"Help your brother whether he is an oppressor or an oppressed" Bukhari; Volume 9, Book 85, Number 84
Wednesday, 20 July 2011
क्या कश्मीर की आम जनता नक्सलियों से भी ज्यादा ख़तरनाक है
क्या कश्मीर की आम जनता नक्सलियों से भी ज्यादा ख़तरनाक है। पुलिस की गोली से मारे गये बेगुनाह की मौत का विरोध करना भी जनता के अधिकार में नहीं है। कई साल से सेना, पुलिस और आम जनता को अपनी गोली और बारूद का शिकार बनाया जा रहा है, पुलिस वालों का अपहरण, रेले उड़ाई जा रही है, खुलआम बारूद और सुरंगे बिछाई जा रही हैं, लेकिन नक्सिलियों और माओवादियों के खिलाफ सेना या वायूसेना का इस्तेमाल हो या ना हो इस पर सरकार पसोपेश में है। देश की रीढ फौज पर सबसे बड़े हमले करने वाले और सैंकड़ो जवानों को मौत की नींद सुलाने वाले नक्सिलियों के खिलाफ कार्यवाई के वक्त मानो ऐसा लगता है कि सरकार का रिमोट भी नक्सलियों के हाथो में जा चुका है। लेकिन कश्मीर की आम जनता अगर प्रदर्शन भी करे तो फौज तैनात कर दी जाती है। कई सामाजिक संगठनो और मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इस पर इज़हार ख्याल करते हुए कहा कि ये सरकार का दोहरा मापदड ही देश के लिए सबसे बड़ा खतरा जा रहा है। कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का ये बयान बेहद सगीन हालात की तरफ इशारा करते है कि फौज बेक़ाब हो चुकी है। इतना ही नही अपने घर की खिड़की में खड़ी एक महिला की फौज की गोली से मौसाफ कर दिया है कि सड़क पर ही नहीं घरों में भी जनता महफूज़ नहीं है। इस पर भी अपनी नाकामी को छिपाने हुए कश्मीर को सरकार द्वारा फौज के हवाले करने के बाद कई लोगों को लगता है कि केंद्र की काग्रेस सरकार भले ही नक्सलियों को लेकर नरम दिली दिखा सकती हो लेकिन देश के अकेले मुस्लिम बाहुल्य राज्य के प्रति उसका रुख आज भी मुस्लिम विरोधी ही है। लोगों के दिलों में आज भी यही सवाल है कि क्या कश्मीर मे अपने हक़ की आवाज़ उठाने वाली की जनता नक्सलियों और माओवादियों से भी ज़्यादा खतरनाक है। गर नहीं तो नक्सलियों के खिलाफ फौज का इस्तेमाल करने से झिझकने वाली काग्रेस सरकार ने कश्मीर को फौज के हवाले क्यों कर दिया....?
बदहाली पर आंसू बहता चीनी का रौज़ा जहा कुरान की बेहुरमती हो रही है
भाइयो आगरा शहर एक मशहूर शहर है किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है की यहाँ शाहजहाँ की बनवाई दुनिया की अजूबो में एक ईमारत ताज महल है जिससे हमारी सरकार करोरो कमाती है वही है दूसरी तरफ शाहजहाँ के वजीर का रौज़ा जिसको चीनी का रौज़ा नाम से जाना जाता है क्यों की इसकी नक्काशी ईरानी सभ्यता के चीनी नक्कासी से हुई है इसका निर्माण शाहजहाँ क वजीर ने अपने भाई की कब्रगाह और अपनी कब्रगाह के लिए अपनी हयात में दस सालो की मुशक्कत के बाद करवाई थी अपने महल के ठेक सामने इसको १६२६-१६३९ के दरमियान बनवाया गया था इसकी खासियत यह है की इसमे एक चिराग जलाने से पूरा रौज़ा जगमगा उठता है हर तरफ नक्काशी से कुरआन शरीफ की यती लिखी हुई है जिसको थोडा सा आपलोग एस पिक्चर में भी झलक देख सकते है
वजीर का इन्तिकाल पकिस्तान के लाहोर में होगया था उनकी मय्यत को यहाँ दफनाया गया है
पुरातत्व sarvekshan के हवाले यह ईमारत अब अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है दीवारों से नक्काशिया टूट रही है जिससे कुरआन की नेहुर्मती हो रही है साथ ही इसकी पीछे की ज़मीन पर यादवो ने कब्ज़ा कर के अपनी भैस बांध रक्खी है एक मंदिर बनवा रक्खी है और कूदो का अम्बार है. बेचारे वजीर साहेब का महल तोह पूरा गर्त हो चूका है सिर्फ वह एक काला गुम्बद बचा है
सवाल यह है के मुल्क में हर मशहूर ईमारत हमारे पूर्वजो ने बनवाई जिससे ये अज तक कमाते है बनवाने की औकात इनके बाप दादो की हुई नहीं है कम से कम संभल तोह सकते है
वजीर का इन्तिकाल पकिस्तान के लाहोर में होगया था उनकी मय्यत को यहाँ दफनाया गया है
पुरातत्व sarvekshan के हवाले यह ईमारत अब अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है दीवारों से नक्काशिया टूट रही है जिससे कुरआन की नेहुर्मती हो रही है साथ ही इसकी पीछे की ज़मीन पर यादवो ने कब्ज़ा कर के अपनी भैस बांध रक्खी है एक मंदिर बनवा रक्खी है और कूदो का अम्बार है. बेचारे वजीर साहेब का महल तोह पूरा गर्त हो चूका है सिर्फ वह एक काला गुम्बद बचा है
सवाल यह है के मुल्क में हर मशहूर ईमारत हमारे पूर्वजो ने बनवाई जिससे ये अज तक कमाते है बनवाने की औकात इनके बाप दादो की हुई नहीं है कम से कम संभल तोह सकते है
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