Monday, 19 December 2011

आम आदमी से जुडी समस्या ..... घुमक्कड़ जिज्ञासा----------2

अपनी घुमक्कड़ जिज्ञासा लिए मै १७ दसंबर को रात ९ बजे कानपुर स्टेशन पंहुचा और बनारस का टिकट ले लिया फिर ट्रेनों का हाल पता चला तो मैने मुगलसराई का भी टिकट ले लिया और प्लेटफार्म पर टहलने लगा रात को ठण्ड काफी थी हड्डिय हिला देने वाली हवाई चल रही थे प्रतीक्षालय ट्रेनों के देरी से चलने की वजह से पूरा भरा हुवा था यहाँ तक की लोग खडे थे उससे जादा भीड़ प्लेटफार्म पर थी कोई इंतज़ाम नहीं था पुरवा ट्रेन का बताया गया की १ घंटा विलम्ब से चल रही है प्रतीक्षा का समय समाप्त हुवा तभी एलान हुवा की पुरवा आधा घंटा और देरी से आयेगी मै टहलते हुवे ASM के कार्यालय पहुच गया और पता किया तो पता चला की पूर्वा अभी इटावा नहीं पहुची है मैने ASM साहेब से पूछा की मान्यवर इटावा से कानपुर का रन लगभग डेढ़ घंटे का है और आप बता रहे है आधा घंटा की देरी साहेब ऐसा क्यों उन्हों ने कहा भाई साहेब पूर्वा लगभग सुबह ३ बजे के पहले नहीं आयेगी और अभी से अगर घोसडा कर दिया तो जनता को दिक्कत आ सकती है मैने कहा मान्यवर रात का १२:३० हो रहा है और आप तो गरम कमरों में बैठे है आम जनता वह ठण्ड में मर रही है अगर उचित समय बता देते तो जनता हो सकता है अपना कुछ इंतज़ाम कर लेती उन्हों ने कहा की जनता इंतज़ाम नहीं करती टिकट वापस कर देती है और फिर वापसी करवा कर मै रेल का नुक्सान क्यों करू ASM साहेब थोडा सभ्य थे उन्हों ने मुझसे कहा की वैसे भाई साहेब आप चाहे तो यहाँ बैठ कर ट्रेन का इंतज़ार कर सकते है मैने मुस्कुराकर उनका धन्यवाद दिया और कहा मै आम जनता हु मरना मुझे आता है और बहार निकल आया 
मैने सोचा चलो बाहर चाय पी जाती है मै बाहर निकला तो देखा की एक जगह ऑटो स्टैंड के पास अलाव लगा हुवा है जहा जनता बैठी है और २ पोलिस वाले भी खडे है मुझे ख़ुशी हुई की चलो सरकार ने कुछ अच्छा किया है मै भी पास पंहुचा तभी एक ने ५ रुपया माँगा मैने कहा काहे का भाई बोला की ये अलाव का है इसके पास baithana है तो ५ रुपया dena hoga मैने ५ रूपया निकाल कर उसको दिया देखा उसने उस कांस्टेबल को वो पैसे दे दिया मतलग दीवान जी का लगाया हुवा एक प्रयोजन था खैर मै आग के पास खड़ा भी नहीं हुवा और चाय की दूकान पर चाय पि कर वापस अगया प्लेटफोर्म पर तभी घोसणा होती है की बसपा रैली पिकप ट्रेन प्लेटफोर्म नंबर ६ पर आरही है मै उत्सुकता वश प्लेटफोर्म नंबर ६ पर पंहुचा तभी एक लम्बी सी ट्रेन आकार रुकी उस ट्रेन पर चारो तरफ मायावती और फिरोजाबाद के विधायक का फोटो था | पता चला की विधायक महोदय यह ट्रेन आगरा से बुक करवाकर लखनऊ लेकर जा रहे है कल रैली के बाद इसकी वापसी भी है मैने पता किया तो पता चला की यह ट्रेन अप एंड डाउन के लिए ३० लाख में पड़ी है तभी प्लेटफोर्म पर हुदंग हनी लगा और ट्रेन सवार कार्यकर्ता ने एक बुढे वेंडर को लूट लिया है फिर क्या ट्रेन को आनन फानन में प्लेटफोर्म से रवाना किया गया मैने वेंडर को जाकर देखा बुढा इंसान अपना पेट पालने को बैठ कर रात में चाय और नमकीन बेच रहा था उसको ये लोग देश के भविष्य लूट गए वो रो रहा था और GRP वाले उसको दन्त रहे थे की दूकान क्यों खोल कर बैठे थे बंद कर देते मुझे दया ई और मैने पूछा चाचा कितना नुक्सान हुवा है वो बोले बाबु लगभग २ हज़ार का उनकी आँखों का अनसु देख मुझे दया आगे और मैने बंद मुट्ठी से कुछ उनके हाथो में रखकर कहा चाचा चाय नहीं पिलाओगे वो अभी चाय देने वाले थे की एक और रैली पिकप ट्रेन क आने की घोसदा hui मै चाय pikar wahi खड़ा रहा तभी एक और ट्रेन आकार रुकी ये ट्रेन एक आगरा के बसपा प्रत्याशी की थी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो साहेब ने ट्रेन बुक करवाई थी मै सोच रहा था की ये इंसान अभी चुनाव लड़ा भी नहीं है इतना खर्चा किया चुनाव में और भी खर्च करेगा तो इसका चुनाव तो लगभग एक करोड़ का पड़ा ये जीतने के बाद क्या करेगा पहले तो अपना एक करोड़ को कई करोड़ में घर में लायेगा फिर सोचेगा जनता के बारे में |
खैर वक्त कट गया और फिर घोसडा हुई की पुरवा आने वाली है मगर उससे पहले नईदिल्ली - भागलपुर सुपर फास्ट ट्रेन आकार रुकी इस ट्रेन का आनंद विहार से पटना तक का टिकट ही अल्लाओ है बीच का नहीं मैने कुछ महीन करने की सोचा ट्रेन के TT के पास जाकर बोला सर जी मुगाल्सरये जाना था TT साहेब ने कहा S -५ में सीट नंबर ५२ पर जाकर बैठ जाओ ३०० लगता है २५० देदेना | मैने हा में सर हिलाया और आकार बैठ गया ट्रेन चल दी और वो साहेब आकार अपना भाडा लेकर चलते बने मै बाथरूम जाने के लिए उठा देखा की एक माँ बेटी बैठी है gate के पास और एक मौलाना बेचारे खडे है मैने उनसे पूछा क्यों यहाँ बोले टिकट वेटिंग का है सीट कहा मिली मैने कहा जाकर मेरी सीट पर बैठ जाओ आप और उन तीनो को अपने पास बैठाल लिया और मै भी वही बैठ गया उन्होने बताया की वो लोग आनंद विहार से ऐसे ही आ रहे है कई बार TT से कहा मगर सीट नहीं दिया मुझे ताज्जुब हुवा तभी TT साहेब ने आकार मुझसे मित्रवत आकार पूछा भाई सिगरेट है क्या मैने उनको एक निकाल कर दी उन्होने कहा आइये gate पर आप भी पी ले | मैने उनके साथ आकार gate पर सिगरेट जलाकर पूछा की भाई ये लोगो को सीट नहीं दी तो उन्होने अपने अंदाज़ में कहा की ये सीट पर कोई आया नहीं था और ये मिया लोग पैसा देते नहीं है मैने घूर कर उनको देखते हुवे कहा की क्या करू साहेब मै भी मियां हु और मैने आपको दिया है पैसा और रही बात ये तो मानवता नाम की कोई चीज़ होती है या नहीं .......
वो निरुत्तर होकर अपने रास्ते चले गए और मै अपनी खरीदी हुई सीट पर दिमाग में कई सवाल थे की भरष्टाचार की दुहाई देने वाले लोगो की नज़र इनपर क्यों नहीं पड़ती है आखिर कब तक ऐसे आम जनता मरती रहेगी 
आखिर कब तक

आम आदमी से जुडी समस्या ..... घुमक्कड़ जिज्ञासा

सुना था की असली समाज आम ज़िन्दगी से होकर गुज़रता है आम इंसानों की आम समस्या की झलक देखने के लिए अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा लेकर मै बिना किसी आरक्षण के निकल पड़ा सबसे पहले पंहुचा मै लखनऊ के छोटी लाइन प्लेटफोर्म नंबर ६ पर मुझे कानपुर के लिए चित्रकूट एक्सप्रेस से सफ़र करने के लिए वह देखा की प्लेटफोर्म के किनारे एक लम्बी लाइन लगी है औरते बच्चे और बुधे सभी उस खुले मैदान के ओस पड़ती शाम में सुसुवा रहे थे कुछ TC वह खडे थे और स्टेशन के अन्दर आने वाले सभी का टिकट जांच रहे थे नियम के तहत सिर्फ जाने वाले अथवा वह मौजूद संदिग्ध का टिकट ही पूछ सकते है मुझसे पूछा गया टिकट कहा है मैने निकाल कर दिखा दिया पूछा गया की वेटिंग बनवाना है मैने जवाब दिया नहीं मुझसे कहा गया वह लाइन में खडे हो जाओ मैने पूछा क्यों आप किस बात की ये लाइन लगवाई है जवाब आया नेतागिरी न करो और जाकर खडे हो जाओ मैने उसी अंदाज़ से जवाब दिया की अगर मै नेतागिरी करूँगा तो आप खडे नहीं हो पायेंगे भारी patthar देख कर एक bola sir आप मैने सच जानने के लिए बैग अपना काच में रक्खा और आकार उनलोगों के बगल में खड़ा हो गया तभी एक लड़की जींस और जैकेट पहने निकली एक TC ne अश्लील आह भरी अचानक उसने मुझे देखा और bola thand thoda zaadaa है मैने जवाब दिया हा उम्र का तकाजा है aapki maloom करने पर pata chala की mumbai जाने wali train में sadharan टिकट लेकर chaley walo ko ये  लाइन की वजह जानने के लिए मै बेकरार हो रहा था मैने पता किया तो पता चला की ये साधारण टिकट लेकर चलने वाले साधारण लोग है और इनको ऐसे ही परेशां किया जाता है अभी यहाँ कुछ कुली आयेंगे और साधारण डिब्बो की सीट पर बैठे रहेंगे फिर उस सीट को २०० के हिसाब से बेचेंगे और आधा हिस्सा इनका होगा

फिर देखा हुवा भी ऐसा ही ट्रेन आई और फिर चालू हुवा यात्रियों को लूटने का जुगाड़ मनचले TC की मटरगस्ती 
फिर भी कई यात्री छुक गए ट्रेन पकडने से यह है आम आमदी को लूटने का सबसे आसान जुगाड़ क्या कोई इनकी कभी सुननेगा ..........?
ये था इस सफ़र का पहला हिस्सा ................\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\ यात्रा अभी बाकि है मेरे दोस्त 

Wednesday, 14 December 2011

ऋग्वेद में गोमांस भक्षण

अक्सर ये देखा जाता है की गौमॉस पर लोग लम्बी चौड़ी बाते करते है हमारे मज़हब को गलत कहते है मैने उनको कई बार जवाब भी माकूल दिया है मै एक दिन इसपर अध्यन कर रहा था की अचानक मुझे एक ऐसा मौका मिला ऐसे लोगो को जवाब देने का जिसे मै खोना नहीं चाहता था मुझे गोमास भक्षण का सबूत मिल गया है रिग्वेद में गौमांस भक्षण तक का उदहारण आया है आप खुद देखिये यहाँ मै उचित शब्दार्थ के लिए 
द कम्पलीट वर्क आफ स्वामी विवेकानंद . वोल्यूम 3 को शाक्षी रख कर अपनी बाते रख रहा हु जिसके पृष्ट संक्या 174, और ५३६ का वर्णन कर रहा हु  जिसमे महान हिन्दू धर्म के  स्वामी विकेकानन्दजी ने ऋग्वेद का वर्णन किया है 
 
"उक्षणों ही में पंचदंश साकं पंचंती: विश्तिम् |
उताहंमदिंम् पीव इदुभा कुक्षी प्रणन्ती में विश्व्स्मान्दिन्द्र ||" (उत्तर ऋग्वेद 10-86-14 )
र्थात :- इन्द्राणी द्वारा प्रेरित यज्ञकर्ता मेरे लिए 15-30बैल काटकर पकाते है , जिन्हें खाकर मै मोटा होता हू |वे मेरी कुक्षियो को सोम (शराब ) से भी भरते है | (ऋग्वेद 10-86-14 ) 
यहाँ धयान दीजियेगा की बैल को पका कर खाने का वर्णन है बैल नरगए को कहते है न यानि गोमाता के पति या पुत्र को
"मित्र कूवो यक्षसने न् गाव: पृथिव्या |
आपृगामृया शयंते ||" (ऋग्वेद 10-89-14 )

अर्थात :- हे ! इन्द्र जैसे गौ वध के स्थान पर गाये कटी जाती है वैसे ही तुम्हारे इस अस्त्र से मित्र द्वेषी राक्षस कटकर सदैव के लिए सो जांए |(ऋग्वेद 10-89-14 ) यहाँ धयान दे की गोवध की बात कही गयी है
"आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती |
सोमान पिवसित्व मेषा ||"

"पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां |
पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||" (ऋग्वेद 10-28 -3 )

अर्थात :- हे ! इन्द्र अन्न की कमाना से तूम्हारे लिए जिस समय हवन किया जाता है उस समय यजमान पत्थर के टुकडो पर शीघ्रताशीघ्र सोमरस (शराब ) तैयार करते है उसे तुम पीते हो ,यजमान बैल पकाते है और उसे तुम खाते हो | (ऋग्वेद 10-28-3 )
यहाँ धयान दीजिये की केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि आपके इन्द्र भगवन भी गौमांस भक्षण करते है
अब आप निर्णय करो की स्वामी जी ने गलत लिखा है या सही मै तो कहूँगा की स्वामी जी ने एकदम सत्य लिखा है और उनकी बातो का समर्थन करता हु आप बताए |

लखनऊ शहर में फिर मुसलमानों पर ज़ुल्म हुवा

लखनऊ की कल सुबह सुहानी थी ठण्ड ने अपनी दस्तक जोर से दी और सभी ठिठुर रहे थे की तभी दोपहर में सूरज ने अपनी झलक लखनऊ वालो की दिखाई थी अचानक कुछ गर्म माहोल समझ में आया पता करने पर पता चला की चारबाग में कुछ माहोल गरम है मै तुरंत वह पंहुचा हालात काफी तनाव वाले थे मुस्लमान सड़क पर मस्जिद के आगे भीड़ लगा कर खडे थे मैने वजह पता की जानकर ताज्जुब हुवा
चारबाग स्टेशन के ठीक सामने एक मस्जिद है जिसकी तामीर हो रही है वह उससे सटा हुवा एक होटल है किसी सरदार का उसने मस्जिद की पीछे वाली दिवार गिरा दी थी और पुलिस वालो के मौजूदगी में ......... मस्जिद में मीटिंग चल रही थी मैने वह जाकर शिरकत की SDM साहेब भी मौजूद थे उनका कहना यह था की उस होटल वाले ने गलत किया है काफी देर तक सिर्फ बात होती रही असर का वक्त हो गया नमाज़ हुई उसके बाद फिर बात का दौर चला मैने महोदय से पूछा की जनाब अगर ये होटल किसी मुस्लमान का होता और उसने मंदिर की दिवार तोड़ दी होती तो अब तक उसके खानदान की माँ बहन एक हो गयी होती और यहाँ ये हालात है की आप २ बजे से सिर्फ बाते कर रहे है बातो के अलावा कुछ नहीं कर रहे है यह सुनकर वो महोदय कुछ बोलते तभी अलिमो ने मेरी बात का समर्थन किया और कहा अब बात नहीं होगी एक्शन होगा अलीम मेरे साथ बहार निकले और नारा बुलंद करते हुवे सती हुवे चारबाग चौराहे पर अगये | पीछे पीछे हजारो की तादात में मुस्लमान चौराहे पर जाम कर दिया और शांति से नारा लगा रहे थे तभी पुलिस वालो की तरफ से हवाई फायरिंग चालू हो गयी लोगो को बचा कर और अलिमो को बचा कर किनारे किया फिर पुलिस का तांडव लाठी चार्ज और रास्ता बंदी मगर मुस्लमान पीछे नहीं हटे देर रात तक हालात काफी नाज़ुक थे कुछ पोलिस वालो का खाना पूर्ति के लिए ट्रान्सफर हुवा है
हालात अभी भी तनाव में है |

Tuesday, 6 December 2011

कालेधन के कारोबारी बाबा नाटकदेव उर्फ़ रामदेव को बेनकाब किया तहलका ने

 

बाबा रामदेव काफी समय से देश भर में काले धन के खिलाफ अभियान चला रहे हैं. लेकिन तहलका की पड़ताल बताती है कि असल में उनका खुद का हाल पर उपदेश कुशल बहुतेरे जैसा है. काले धन को लेकर सरकारों को पानी पी-पीकर कोसने वाले बाबा रामदेव खुद उसी काले धन के पहाड़ पर विराजमान हैं. मनोज रावत की रिपोर्ट साभार
साल 2004 की बात है. बाबा रामदेव योगगुरु के रूप में मशहूर हुए ही थे. चारों तरफ उनकी चर्चा हो रही थी. टीवी चैनलों पर उनकी धूम थी. देश के अलग-अलग शहरों में चलने वाले उनके योग शिविरों में पांव रखने की जगह नहीं मिल रही थी और बाबा के औद्योगिक प्रतिष्ठान दिव्य फार्मेसी की दवाओं पर लोग टूटे पड़ रहे थे.लेकिन फार्मेसी ने उस वित्तीय वर्ष में सिर्फ छह लाख 73 हजार मूल्य की दवाओं की बिक्री दिखाई और इस पर करीब 54 हजार रुपये बिक्री कर दिया गया. यह तब था जब रामदेव के हरिद्वार स्थित आश्रम में रोगियों का तांता लगा था और हरिद्वार के बाहर लगने वाले शिविरों में भी उनकी दवाओं की खूब बिक्री हो रही थी. इसके अलावा डाक से भी दवाइयां भेजी जा रही थीं.
रामदेव के चहुंओर प्रचार और देश भर में उनकी दवाओं की मांग को देखकर उत्तराखंड के वाणिज्य कर विभाग को संदेह हुआ कि बिक्री का आंकड़ा इतना कम नहीं हो सकता. उसने हरिद्वार के डाकघरों  से सूचनाएं मंगवाईं. पता चला कि दिव्य फार्मेसी ने उस साल 3353 पार्सलों के जरिए 2509.256 किग्रा माल बाहर भेजा था. इन पार्सलों के अलावा 13 लाख 13 हजार मूल्य के वीपीपी पार्सल भेजे गए थे. इसी साल फार्मेसी को 17 लाख 50 हजार के मनीऑर्डर भी आए थे.
सभी सूचनाओं के आधार पर राज्य के वाणिज्य कर विभाग की विशेष जांच सेल (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी पर छापा मारा. इसमें बिक्रीकर की बड़ी चोरी पकड़ी गई. छापे को अंजाम देने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा बताते हैं, 'तब तक हम भी रामदेव जी के अच्छे कार्यों के लिए उनकी इज्जत करते थे. लेकिन कर प्रशासक के रूप में हमें मामला साफ-साफ कर चोरी का दिखा.' राणा आगे बताते हैं कि मामला कम से कम पांच करोड़ रु के बिक्रीकर की चोरी का था.
भ्रष्टाचार और काले धन को मुद्दा बनाकर रामदेव पिछले दिनों भारत स्वाभिमान यात्रा पर निकले हुए थे. इस यात्रा का पहला चरण खत्म होने के बाद 23 नवंबर को वे दिल्ली में थे. यहां बाबा का कहना था कि यदि संसद के शीतकालीन सत्र में लोकपाल और काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने वाले बिल पारित नहीं होते हैं तो वे उन पांच राज्यों में आंदोलन करेंगे जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में उनका कहना था, ‘जिस दिन काले धन पर कार्रवाई शुरू होगी, उस दिन पता चलेगा कि जिन्हें हम खानदानी नेता समझ रहे थे उनमें से 99 प्रतिशत तो खानदानी लुटेरे हैं.’
अब सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार और काले धन की जिस सरिता के खिलाफ रामदेव अभियान छेड़े हुए हैं उसी में अगर वे खुद भी आचमन कर रहे हों तो? फिर तो वही बात हुई कि औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत. तहलका की यह पड़ताल कुछ ऐसा ही इशारा करती है.
सबसे पहले तो यह सवाल कि काला धन बनता कैसे है. आयकर विभाग के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, 'करों से बचाई गई रकम और ट्रस्टों में दान के नाम पर मिले पैसे से काला धन बनता है. काले धन को दान का पैसा दिखाकर, उस पर टैक्स बचाकर उसे फिर से उद्योगों में निवेश किया जाता है. इससे पैदा होने वाली रकम को पहले देश में जमीनों और जेवरात पर लगाया जाता है. इसके बाद भी वह पूरा न खप सके तो उसे चोरी-छुपे विदेश भेजा जाता है. यह एक अंतहीन श्रृंखला है जिसमें बहुत-से ताकतवर लोगों की हिस्सेदारी होती है.’
दिव्य फार्मेसी पर छापे की कार्रवाई को अंजाम देने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा बताते हैं कि उनकी टीम ने इस छापे से पहले काफी होमवर्क किया था. राणा कहतेे हैं, ‘मेरी याददाश्त के अनुसार लगभग पांच करोड़ रु के राज्य और केंद्रीय बिक्री कर की चोरी का मामला बन रहा था.’ टीम के एक अन्य सदस्य बताते हैं, ‘पुख्ता सबूतों के साथ 2000 किलो कागज सबूत के तौर पर इकट्ठा किए गए थे.’
रामदेव से जुड़ी फार्मेसी पर छापा मारने पर उत्तराखंड के तत्कालीन राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल बड़े नाराज हुए थे. उन्होंने इस छापे की पूरी कार्रवाई की रिपोर्ट सरकार से तलब की थी. उस दौर में प्रदेश के प्रमुख सचिव (वित्त) इंदु कुमार पांडे ने राज्यपाल को भेजी रिपोर्ट में छापे की कार्रवाई को निष्पक्ष और जरूरी बताया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भी इस रिपोर्ट के साथ अपना विशेष नोट लिख कर भेजा था जिसमें उन्होंने प्रमुख सचिव की बात दोहराई थी. रामदेव ने अधिकारियों पर छापे के दौरान बदसलूकी का आरोप लगाया था जिसे राज्य सरकार ने निराधार बताया था.
विभाग के कुछ अधिकारियों का मानना है कि रामदेव के मामले में अनुचित दबाव पड़ने के बाद डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने समय से चार साल पहले ही सेवानिवृत्ति ले ली थी. राणा को तब विभाग के उन उम्दा अधिकारियों में गिना जाता था जो किसी दबाव से डिगते नहीं थे. एसआईबी के इस छापे के बाद राज्य या केंद्र की किसी एजेंसी ने रामदेव के प्रतिष्ठानों पर छापा मारने की हिम्मत नहीं की. इसी के साथ रामदेव का आर्थिक साम्राज्य भी दिनदूनी रात चौगुनी गति से बढ़ने लगा.
लेकिन बिक्री कम दिखाना तो कर चोरी का सिर्फ एक तरीका था. दिव्य फार्मेसी एक और तरीके से भी कर की चोरी कर रही थी. तहलका को मिले दस्तावेज बताते हैं कि उस साल फार्मेसी ने वाणिज्य कर विभाग को दिखाई गई कर योग्य बिक्री से पांच गुना अधिक मूल्य की दवाओं (30 लाख 17 हजार रु) का ‘स्टाॅक हस्तांतरण’ बाबा द्वारा धर्मार्थ चलाए जा रहे ‘दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट’ को किया. रिटर्न में फार्मेसी ने बताया कि ये दवाएं गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त में बांटी गई हैं. लेकिन वाणिज्य कर विभाग के तत्कालीन अधिकारी बताते हैं कि दिव्य फार्मेसी उस समय गरीबों को मुफ्त बांटने के लिए दिखाई जा रही दवाओं को कनखल स्थित दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से बेच रही थी. दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के पास में ही रहने वाले भारत पाल कहते हैं, 'पिछले 16 सालों के दौरान मैंने बाबा के कनखल आश्रम में कभी मुफ्त में दवाएं बंटती नहीं देखीं.’


इसी तर्ज पर आज भी दिव्य फार्मेसी रामदेव द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न ट्रस्टों को गरीबों को मुफ्त दवाएं बांटने के नाम पर मोटा स्टॉक ट्रांसफर कर रही है. अभी तक दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट का उत्तराखंड राज्य में वाणिज्य कर में पंजीयन तक नहीं है. नियमानुसार बिना पंजीयन के ये ट्रस्ट किसी सामान की बिक्री नहीं कर सकते, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन ट्रस्टों में स्थित केंद्रों से हर दिन लाखों की दवाएं और अन्य माल बिकता है. पिछले कुछ सालों के दौरान दिव्य फार्मेसी से दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट और अन्य स्थानों में अरबों रुपये मूल्य का स्टाॅक ट्रांसफर हुआ है जिसकी बिक्री पर नियमानुसार बिक्री कर देना जरूरी है. ट्रस्टों के अलावा देश भर मेंे रामदेव के शिविरों में दवाओं के मुफ्त बंटने के दावे की जांच करना मुश्किल है, परंतु इन शिविरों में हिस्सा लेने वाले श्रद्धालु जानते और बताते हैं कि यहां दवाएं मुफ्त में नहीं बांटी जातीं. अब दिव्य फार्मेसी द्वारा बनाई जा रही 285 तरह की दवाएं और अन्य उत्पाद इंटरनेट से भी भेजे जाने लगे हैं. इंटरनेट पर बिकने वाली दवाओं पर कैसे बिक्री कर लगे, यह उत्तराखंड का वाणिज्य कर विभाग नहीं जानता. इन दिनों नोएडा में रह रहे जगदीश राणा कहते हैं, ‘रामदेव को जितना बिक्री कर देना चाहिए, वे उसका एक अंश भी नहीं दे रहे.’
उत्तराखंड में बिक्री कर ही राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा है. उत्तराखंड सरकार के कर सलाहकार चंद्रशेखर सेमवाल बताते हैं, ‘पिछले साल राज्य में बिक्री कर से कुल 2940 करोड़ रु की कर राशि इकट्ठा हुई थी, यह राशि राज्य के कुल राजस्व का 60 प्रतिशत है.’ इसी पैसे से सरकार राज्य में सड़कें बनाती है , गांवों में पीने का पानी पहुंचाया जाता है, अस्पतालों में दवाएं जाती हैं , सरकारी स्कूल खुलते हैं और ऐसे ही जनकल्याण के दूसरे काम चलाए जाते हैं. रामदेव नेताओं पर आरोप लगाते हैं कि उन्हें देश के विकास से कोई मतलब नहीं है, वे बस अपनी झोली भरना चाहते हैं. लेकिन जब रामदेव का अपना ही ट्रस्ट इतने बड़े पैमाने पर करों की चोरी कर रहा हो तो क्या यह सवाल उनसे नहीं पूछा जाना चाहिए?
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के एक पूर्व सदस्य बताते हैं, ‘करों को बचा कर ही काला धन पैदा होता है और इस काले धन का सबसे अधिक निवेश जमीनों में किया जाता है.’ पिछले सात-आठ साल के दौरान हरिद्वार जिले में रामदेव के ट्रस्टों ने हरिद्वार और रुड़की तहसील के कई गांवों, नगर क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्र में जमकर जमीनें और संपत्तियां ली हैं. अखाड़ा परिषद के प्रवक्ता बाबा हठयोगी कहते हैं, ‘रामदेव ने इन जमीनों के अलावा बेनामी जमीनों और महंगे आवासीय प्रोजेक्टों में भी भारी निवेश किया है.’ हठयोगी आरोप लगाते हैं कि हरिद्वार के अलावा रामदेव ने उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में भी जमकर जमीनें खरीदी हैं. तहलका ने इन आरोपों की भी पड़ताल की. जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला था.
जमीन का फेर
योग और आयुर्वेद का कारोबार बढ़ने  के बाद रामदेव ने वर्ष 2005 में पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट के नाम से एक और ट्रस्ट शुरू किया. रामदेव तब तक देश की सीमाओं को लांघ कर अंतरराष्ट्रीय हस्ती हो गए थे. 15 अक्टूबर, 2006 को गरीबी हटाओ पर हुए मिलेनियम अभियान में रामदेव ने विशेष अतिथि के रूप में संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया. अपने वैश्विक विचारों को मूर्त रुप देने के लिए अब उन्हें हरिद्वार में और ज्यादा जमीन की जरूरत थी. इस जरूरत को पूरा करने के लिए आचार्य बालकृष्ण, दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और पतंजलि ट्रस्ट के नाम से दिल्ली-माणा राष्ट्रीय राजमार्ग पर हरिद्वार और रुड़की के बीच शांतरशाह नगर, बढ़ेड़ी राजपूताना और बोंगला में खूब जमीनें खरीदी गईं. राजस्व अभिलेखों के अनुसार शांतरशाह नगर की खाता संख्या 87, 103, 120 और 150 में दर्ज भूमि रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर है. यह भूमि कुल 23.798 हेक्टेयर(360 बीघा) के लगभग बैठती है और इसी पर पतंजलि फेज-1, पतंजलि फेज- 2 और पतंजलि विश्वविद्यालय बने हैं.
बढेड़ी राजपूताना के पूर्व प्रधान शकील अहमद बताते हैं कि शांतरशाह नगर और उसके आसपास रामदेव के पास 1000 बीघा से अधिक जमीन है. लेकिन बाबा के सहयोगियों और ट्रस्टों के नाम पर खातों में केवल 360 बीघा जमीन ही दर्ज है. इस भूमि में से रामदेव ने 20.08 हेक्टेयर भूमि को अकृषित घोषित कराया है. राज्य में कृषि भूमि को अकृषित घोषित कराने के बाद ही कानूनन उस पर निर्माण कार्य हो सकता है.
तहलका ने राजस्व अभिलेखों की गहन पड़ताल की. पता चला कि रामदेव, उनके रिश्तेदारों और आचार्य बालकृष्ण ने शांतरशाह नगर के आसपास कई गांवों में बेनामी जमीनों पर पैसा लगाया है. उदाहरण के तौर पर, शांतरशाह नगर की राजस्व खाता संख्या 229 में जिन गगन कुमार का नाम दर्ज है वे कई वर्षों से आचार्य बालकृष्ण के पीए हैं. 8000 रु महीना पगार वाले गगन आयकर रिटर्न भी नहीं भरते. गगन ने 15 जनवरी, 2011 को शांतरशाह नगर में 1.446 हेक्टेयर भूमि अपने नाम खरीदी. रजिस्ट्री में इस जमीन का बाजार भाव 35 लाख रु दिखाया गया है, परंतु हरिद्वार के भू-व्यवसायियों के अनुसार किसी भी हाल में यह जमीन पांच करोड़  रुपये से कम की नहीं है. यह जमीन अनुसूचित जाति के किसान की थी जिसे उपजिलाधिकारी की विशेष इजाजत से खरीदा गया है. इससे पहले गगन ने 14 मई, 2010 को रुड़की तहसील के बाबली-कलन्जरी गांव में एक करोड़ 37 लाख रु बाजार मूल्य दिखा कर जमीन की रजिस्ट्री कराई थी. यह जमीन भी 15 करोड़  रु से अधिक की बताई जा रही है. स्थानीय पत्रकार अहसान अंसारी का दावा है कि बाबा ने और भी दसियों लोगों के नाम पर हरिद्वार में अरबों की जमीनें खरीदी हैं. बाबा हठयोगी सवाल करते हैं, ‘देश भर में काले धन को लेकर मुहिम चला रहे रामदेव के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि आखिर महज आठ हजार रुपये महीना पाने वाले गगन कुमार जैसे इन दसियों लोगों के पास अरबों की जमीनें खरीदने के लिए पैसे कहां से आए.’
शांतरशाह नगर, बढ़ेड़ी राजपूताना और बोंगला में अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद बाबा की नजर हरिद्वार की औरंगाबाद न्याय पंचायत पर पड़ी. इसी न्याय पंचायत में राजाजी राष्ट्रीय पार्क की सीमा पर लगे औरंगाबाद और शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला गांव हैं. उत्तराखंड में भू-कानूनों के अनुसार राज्य से बाहर का कोई भी व्यक्ति या ट्रस्ट राज्य में 250 वर्ग मीटर से अधिक कृषि भूमि नहीं खरीद सकता. विशेष परिस्थितियों और प्रयोजन के लिए ही  इससे अधिक भूमि खरीदी जा सकती है, लेकिन इसके लिए शासन की अनुमति जरूरी होती है.
रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को 16 जुलाई, 2008 को उत्तराखंड सरकार से औरंगाबाद, शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला आदि गांवों में पंचकर्म व्यवस्था, औषधि उत्पादन, औषधि निर्माणशाला एवं प्रयोगशाला स्थापना के लिए 75 हेक्टेयर जमीन खरीदने की इजाजत मिली थी. शर्तों के अनुसार खरीदी गई भूमि का प्रयोग भी उसी कार्य के लिए किया जाना चाहिए जिस कार्य के लिए बताकर उसे खरीदने की इजाजत ली गई है. पहले बगीचा रही इस कृषि-भूमि पर रामदेव ने योग ग्राम की स्थापना की है. श्रद्धालुओं को बाबा के इस रिजॉर्टनुमा ग्राम में बनी कॉटेजों में रहकर पंचकर्म कराने के लिए 1000 रु से लेकर 3500 रु तक प्रतिदिन देना होता है.


औरंगाबाद गांव के पूर्व प्रधान अजब सिंह चौहान दावा करते हैं कि उनके गांव में बाबा के ट्रस्ट और उनके लोगों के कब्जे में 2000 बीघे के लगभग भूमि है. लेकिन राजस्व अभिलेखों में रामदेव, आचार्य बालकृष्ण या उनके ट्रस्टों के नाम पर एक बीघा भूमि भी दर्ज नहीं है. क्षेत्र के लेखपाल सुभाश जैन्मी इस बात की पुष्टि करते हुए बताते हैं, ‘राजस्व रिकॉर्डों में भले ही रामदेव के ट्रस्ट के नाम एक भी बीघा जमीन दर्ज नहीं हुई है परंतु उत्तराखंड शासन से इजाजत मिलने के बाद पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट ने औरंगाबाद और तेलीवाला गांव में काफी जमीनों की रजिस्ट्रियां कराई हैं.’ राजस्व अभिलेखों में दाखिल-खारिज न होने का नतीजा यह है कि किसानों की सैकड़ों बीघा जमीनें बिकने के बाद भी अभी तक उनके ही नाम पर दर्ज हैं. इन सभी भूमियों पर रामदेव के ट्रस्टों का कब्जा है. राजस्व अभिलेखों में अभी भी औरंगाबाद ग्राम सभा की सारी जमीन कृषि भूमि है. नियमों के अनुसार कृषि भूमि पर भवन निर्माण करने से पहले उस भूमि को उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 143 के अनुसार अकृषित घोषित करके उसे आबादी में बदलने की अनुमति लेनी होती है. इसके लिए आवेदक के नाम खतौनी में जमीन दर्ज होना आवश्यक है. रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर इन गांवों में एक इंच भूमि भी दर्ज नहीं है, लेकिन गजब देखिए कि नियम-कायदों को ताक पर रखकर यहां योग ग्राम के रूप में पूरा शहर बसा दिया गया है.
औरंगाबाद गांव के बहुत बड़े हिस्से को कब्जे में लेने के बाद रामदेव के भूविस्तार अभियान की चपेट में उससे लगा गांव तेलीवाला आया. योग ग्राम स्थापित करने के डेढ़ साल बाद फिर उत्तराखंड शासन ने पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट को 26 फरवरी, 2010 को हरिद्वार के औरंगाबाद और शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला गांव में और 155 हेक्टेयर (2325 बीघा) जमीन खरीदने की इजाजत दी. यह इजाजत पतंजलि विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए दी गई थी. इस तरह उत्तराखंड शासन से बाबा के पतंजलि योगपीठ को औरंगाबाद और तेलीवाला गांव की कुल 230 हेक्टेयर (3450 बीघा) जमीन खरीदने की अनुमति मिली जो इन दोनों गांवों की खेती वाली भूमि का बड़ा भाग है. इसके अलावा बाबा ने इन गांवों में सैकड़ों बीघा बेनामी जमीनें कई लोगों के नाम पर ली हैं जिन्हें वे धीरे-धीरे कानूनी प्रक्रिया पूरी करके अपने ट्रस्टों के नाम कराएंगे.
कई गांववाले दावा करते हैं कि तेलीवाला और औरंगाबाद गांव में रामदेव के ट्रस्ट के कब्जे में 4000 बीघा से अधिक जमीन है. प्रशासन द्वारा मिली इतनी अधिक भूमि खरीदने की इजाजत और बेनामी व कब्जे वाली जमीनों को देखने के बाद इस दावे में सत्यता लगती है. लेकिन राजस्व अभिलेख देखें तो औरंगाबाद ग्राम सभा की ही तरह तेलीवाला गांव में भी रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर एक इंच भूमि दर्ज नहीं है.
आखिर ऐसा क्यों?  यह जानने से पहले कुछ और सच्चाइयां जानते हैं. तेलीवाला गांव में 2116 खातेदारों के पास कुल 9300 बीघा जमीन है. गांव के 330 गरीब भूमिहीनों के नाम सरकार से कभी पट्टों पर मिली 750 बीघा कृषि-भूमि या घर बनाने योग्य भूमि है. लेखपाल जैन्मी बताते हैं कि जमीनें बेचने के बाद गांव के खातेदारों में से सैकड़ों किसान भूमिहीन हो गए हैं. गांववालों के अनुसार गांव की कुल भूमि का बड़ा हिस्सा रामदेव के पतंजलि योगपीठ के कब्जे में है. इसकी पुष्टि बालकृष्ण का एक पत्र भी करता है. बालकृष्ण ने सात सितंबर, 2007 को ही हरिद्वार के जिलाधिकारी को पत्र लिखकर स्वीकारा था कि तेलीवाला गांव की 80 प्रतिशत भूमि के उन्होंने बैनामे करा लिए हैं इसलिए गांव की फिर चकबंदी की जाए. यानी सब कुछ पहले से तय था और प्रशासन से बाद में जमीन खरीदने की विशेष अनुमति मिलना महज एक औपचारिकता थी.  प्रस्ताव में किए गए बालकृष्ण के दावे को सच माना जाए तो रामदेव के पास अकेले तेलीवाला गांव में ही करीब 8000 बीघा जमीन होनी चाहिए. गांववालों ने समयपूर्व, नियम विरुद्ध हो रही इस चकबंदी का विरोध किया है. उन्हें आशंका है कि चकबंदी करा कर बालकृष्ण अपनी दोयम भूमि को किसानों की उपजाऊ भूमि से बदल देंगे.
हरिद्वार में रामदेव के आर्थिक साम्राज्य का तीसरा बड़ा भाग पदार्था-धनपुरा ग्राम सभा के आसपास है. बाबा ने यहां के मुस्तफाबाद, धनपुरा, घिस्सुपुरा, रानीमाजरा और फेरुपुरा मौजों में जमीनें खरीदी हैं. ये जमीनें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के नाम पर शासन की अनुमति से खरीदी गई हैं. आठ जुलाई, 2008 को बाबा को मिली अनुमति में बृहत स्तर पर औषधि निर्माण और आयुर्वेदिक अनुसंधान के उद्देश्य की बात है. पर बाद में यहां फूड पार्क लिमिटेड की स्थापना की गई है. ग्रामीणों के अनुसार पतंजलि फूड पार्क लिमिटेड लगभग 700 बीघा जमीन पर है. 98 करोड़ के इस प्रोजेक्ट पर केंद्र के फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय से 50 करोड़ रु की सब्सिडी (सहायता) मिली है. नौ कंपनियों के इस समूह में अधिकांश कंपनियां रामदेव के नजदीकियों द्वारा बनाई गई हैं. मां कामाख्या हर्बल लिमिटेड में रामदेव के जीजा यशदेव आर्य, योगी फार्मेसी के निदेशक सुनील कुमार चतुर्वेदी और संजय शर्मा जैसे रामदेव के करीबी ही निदेशक हैं. रामदेव के पतंजलि फूड पार्क व झारखंड फूड पार्क को स्वीकृति दिलाने में कांग्रेस के एक केंद्रीय मंत्री का आशीर्वाद साफ-साफ झलकता है. फूड पार्क के उद्घाटन के समय रामदेव ने केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्री के सामने घोषणा की थी कि वे हर साल उत्तराखंड से 1000 करोड़ की जड़ी-बूटियां या कृषि उत्पाद खरीदेंगे. परंतु बाबा ने सरकार से करोड़ों रुपये की सब्सिडी खा कर भी वादा नहीं निभाया. चमोली जिले में जड़ी-बूटी के क्षेत्र में काम करने वाली एक संस्था अंकुर संस्था के जड़ी-बूटी उत्पादक सुदर्शन कठैत का आरोप है कि बाबा ने उत्तराखंड में अभी एक लाख रुपये की जड़ी-बूटियां भी नहीं खरीदी हैं.
पदार्था के राजस्व अभिलेखों को देखने से पता चलता है कि यहां पतंजलि फूड पार्क लिमिटेड, रामदेव, आचार्य बालकृष्ण या उनके किसी नजदीकी व्यक्ति के नाम पर कोई जमीन दर्ज नहीं है. सवाल उठता है कि बिना राजस्व खातों में जमीन दर्ज हुए बाबा को कैसे फूड पार्क के नाम पर बने इस प्रोजेक्ट के लिए सब्सिडी मिली. यह सवाल जब हम राज्य सरकार के सचिव स्तर के  संबंधित अधिकारी से पूछते हैं तो वे बताते हैं, 'हमारे पास कभी फूड पार्क की फाइल नहीं आई, संभवतया यह फाइल सीधे केंद्र सरकार को भेज दी गई हो.'
रामदेव ने हरिद्वार के दौलतपुर और उसके पास के गांवों जैसे बहाद्दरपुर सैनी, जमालपुर सैनीबाग, रामखेड़ा, हजारा और कलियर जैसे कई गांवों में भी बड़ी मात्रा में नामी- बेनामी जमीनें खरीदी हैं. हरिद्वार के एक महंत आचार्य बालकृष्ण के साथ एक बार उनकी जमीनों को देखने गए. नाम न छापने की शर्त पर वे बताते हैं, 'दिन भर घूमकर भी हम बाबा की सारी जमीनें नहीं देख पाए.’ प्राॅपर्टी बाजार के दिग्गज दावा करते हैं कि हरिद्वार में कम से कम 20 हजार बीघा जमीन बाबा के कब्जे में है.
लेकिन रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर राजस्व अभिलेखों में हरिद्वार में लगभग 400 बीघा भूमि ही दर्ज है. सवाल उठता है कि सभी तरह से ताकतवर रामदेव ने आखिर इतनी बड़ी मात्रा में जमीन खरीदने के बाद अपने ट्रस्टों या लोगों के नाम पर जमीन का दाखिल-खारिज क्यों नहीं कराया. इसका जवाब देते हुए कर विशेषज्ञ बताते हैं कि जमीनों का दाखिल-खारिज कराते ही बाबा की जमीनें आयकर विभाग की नजरों में आ सकती थीं इसलिए विभाग की संभावित जांचों से बचने के लिए इन जमीनों को दाखिल-खारिज करा कर राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं कराया गया है.
तहलका ने इन जमीनों के लेन-देन में लगे धन पर भी नजर डाली. पता चला कि बाबा से जुड़े लोग या ट्रस्ट इन जमीनों की रजिस्ट्री तो सर्कल रेट पर करते थे परंतु बाबा ने किसानों को जमीन का मूल्य उसके सर्कल रेट से कई गुना अधिक दिया. उत्तराखंड का औद्योगिक शहर बनने के बाद हरिद्वार में जमीनों के भाव आसमान छू रहे थे. ग्रामीणों की मानें तो बाबा के मैनेजरों ने दलालों को भी गांव में जमीन इकट्ठा करने के एवज में मोटा कमीशन दिया.
जमीनों की खरीद-फरोख्त के सिलसिले में हरिद्वार के उपजिलाधिकारी के न्यायालय में वर्ष 2009 और 2010 में हुए दर्जन भर से अधिक स्टांप अधिनियम के मामले चल रहे हैं. ये मामले पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा पदार्था-धनपुरा गांव के मुस्तफाबाद मौजे में खरीदी गई जमीनों पर स्टांप शुल्क चोरी से संबंधित हैं. इन मामलों में न्यायालय ने पाया कि रजिस्ट्री करते समय स्टांप शुल्क बचाने की नीयत से इन जमीनों का प्रयोजन जड़ी-बूटी रोपण यानी कृषि और बागबानी दिखाया गया. बाबा के लोग रजिस्ट्री कराते हुए यह भी भूल गए कि उन्हें शासनादेश में इस भूमि को खरीदने की अनुमति औषधि निर्माण व अनुसंधान के लिए मिली थी जो कृषि कार्य से हटकर उद्योग की श्रेणी में आता है. ऊपर से पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने इस जमीन को अकृषित घोषित कराए बिना ही इस पर औद्योगिक परिसर स्थापित कर दिया है. कम स्टाम्प शुल्क लगाने में पकड़े गए इन मामलों में हरिद्वार के उपजिलाधिकारी ने पतंजलि योगपीठ पर स्टाम्प चोरी और अर्थदंड के रूप में करीब 55 लाख रु का जुर्माना भी लगाया. पूर्व प्रधान अजब सिंह चौहान का मानना है कि रामदेव के ट्रस्टों और कंपनियों ने हरिद्वार में हजारों रजिस्ट्रियां की हैं और यदि सारे मामलों की जांच की जाए तो उन पर स्टांप चोरी के रूप में करोड़ों रु निकलेंगे.
उपजिलाधिकारी के इन निर्णयों (बायीं तरफ चित्र देखें) को ध्यान से देखने पर साफ दिखता है कि किस तरह झूठे तथ्यों के आधार पर जमीन के सौदों में 90 फीसदी से भी ज्यादा स्टांप शुल्क की चोरी की गई. प्रॉपर्टी बाजार के सूत्रों के अनुसार इन सौदों में किसानों को उपजिलाधिकारी के मूल्यांकन से भी कई गुना अधिक कीमत मिली थी. प्रॉपर्टी बाजार के दिग्गजों के अनुसार पतंजलि फूड पार्क वाले इलाके में बाबा के जमीन खरीदते समय जमीन का सर्किल रेट 35000 रु प्रति बीघा के लगभग था जबकि बाबा ने आठ से 10 लाख रु बीघा तक जमीनें खरीदी हैं. इस तरह कई किसानों को जमीन के एवज में पतंजलि फूड लिमिटेड से पांच से छह करोड़ रुपये तक काला धन मिला है. पतंजलि फेज -1 और फेज-2 के लिए रामदेव ने जमीन सर्कल रेट (10 हजार से लेकर 40 हजार) पर खरीदी गई दिखाई है, लेकिन वास्तव में जमीनें 12 लाख रु बीघा तक में खरीदी हैं. यही तेलीवाला में भी हुआ है. पतंजलि योगपीठ के पास बन रहे महंगे फ्लैटों में भी लोग बाबा की साझेदारी बताते हैं.
इनमें से कई सीधे-सादे गांववालों ने पतंजलि से मिला जमीन का सारा पैसा बैंकों में जमा करा दिया. अब ये ग्रामीण आयकर विभाग की जांच की जद में आ गए हैं. विभाग भले ही आज तक यह पता न कर पाया हो कि रामदेव को हेलिकॉप्टर किसने दान किया लेकिन पतंजलि को अपनी जमीन बेचने के एवज में सर्किल भाव से कई गुना कीमत मिलने के बाद आयकर की जांचों से इन गांववालों की जानें सूख गई हैं. आचार्य प्रमोद कृष्ण कहते हैं, ‘यदि गरीब लोगों पर फेमा के मामले दर्ज होते तो अब तक उनके खाते सील कर उन्हें जेल भेज दिया जाता, लेकिन रामदेव पर केंद्र सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही.’ प्रमोद कृष्ण की शिकायतों पर ही रामदेव के विरुद्ध फेमा के मामले दर्ज हुए हैं और बालकृष्ण के विरुद्ध सीबीआई जांच शुरू हुई है. उनका मानना है कि देश और विदेश में जमकर काला धन लगाने वाले रामदेव केंद्र सरकार को ब्लैकमेल करके अपने विरुद्ध कार्रवाई न होने देने का दबाव बनाने के लिए देश भर में काले धन का विरोध करते घूम रहे हैं.
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