संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपने एक शोधपत्र में मुहम्मद (सल्ल.) को कल्कि अवतार बताया है।
कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके डा. उपाध्याय ने यह सिद्ध कर दिया है कि कल्कि का अवतार हो चुका है और वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। इस शोधपत्र की भूमिका में वे लिखते हैं-
कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके डा. उपाध्याय ने यह सिद्ध कर दिया है कि कल्कि का अवतार हो चुका है और वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। इस शोधपत्र की भूमिका में वे लिखते हैं-
‘‘वैज्ञानिक अणु विस्पफोटों से जो सत्यानाश संभव है, उसका निराकरण धार्मिक एकता सम्बंधी विचारों से हो जाता है।
जल में रहकर मगर से बैर उचित नहीं, इस कारण मैंने वह शोध किया जो धार्मिक एकता का आधार है। राष्ट्रीय एकता के समर्थकों द्वारा इस शोधपत्र पर कोई आपत्ति नहीं होगी। आपत्ति होगी तो कूपमण्डूक लोगों को, यदि वे कूप के बाहर निकलकर संसार को देखें तो कूप को ही संसार मानने की उनकी भावना हीन हो जाएगी।’’ ....
‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि अखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी और धर्म के नाम पर होनेवाले कलह शांत होंगे।’’
‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि अखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी और धर्म के नाम पर होनेवाले कलह शांत होंगे।’’
अवतार का तात्पर्य
अवतार शब्द ‘अव’ उपसर्गपूर्वक ‘तृ’ धातु में ‘घज्ज्' प्रत्यय लगाकर बना है। इसका अर्थ पृथ्वी पर आना है।
‘ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ है-
सबको संदेश देनेवाले महात्मा का पृथ्वी पर जन्म लेना।
कल्कि अवतार को ईश्वर का अन्तिम अवतार बताया गया है।
‘ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ है-
सबको संदेश देनेवाले महात्मा का पृथ्वी पर जन्म लेना।
कल्कि अवतार को ईश्वर का अन्तिम अवतार बताया गया है।
‘ईश्वर का अवतार’ शब्द में ‘का’ शब्द सम्बंध कारक चिन्ह है, अतः ज़ाहिर है कि ईश्वर से संबद्ध व्यक्ति का अवतीर्ण होना। ईश्वर से संबद्ध कौन है? उसका भक्त ही सबसे संबद्ध हो सकता है। ऋग्वेद में ऐसे व्यक्ति को ‘कीरि’ कहा गया है। हिन्दी में ‘कीरि’ शब्द का अर्थ ‘ईश्वर का प्रशंसक’ और अरबी में ‘अहमद’ होता है।लेकिन क्या ईश्वर का प्रशंसक ‘कीरि’ या ‘अहमद’ एक नहीं हो सकता।
हर देश और समय के लिए अलग-अलग अवतार हुए हैं क्योंकि एक अवतार से पूरे विश्व का कल्याण नहीं हो सकता था। कुरआन में है कि हर भाग में रसूल (संदेशवाहक) भेजे गए। अंतिम अवतार कल्कि की अलग विशेषता है। वे किसी एक हिस्से के लिए नहीं वरन् समय विश्व के लिए भेजे गए।
जब लोग वास्तविक धर्म से विमुख होकर अधर्म की राह पकड़ लेते हैं या धर्म को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ देते हैं, तो उन्हें फिर सही मार्ग दिखाने के लिए ईश्वर अपने अवतार या पैग़म्बर भेजता है।
हर देश और समय के लिए अलग-अलग अवतार हुए हैं क्योंकि एक अवतार से पूरे विश्व का कल्याण नहीं हो सकता था। कुरआन में है कि हर भाग में रसूल (संदेशवाहक) भेजे गए। अंतिम अवतार कल्कि की अलग विशेषता है। वे किसी एक हिस्से के लिए नहीं वरन् समय विश्व के लिए भेजे गए।
जब लोग वास्तविक धर्म से विमुख होकर अधर्म की राह पकड़ लेते हैं या धर्म को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ देते हैं, तो उन्हें फिर सही मार्ग दिखाने के लिए ईश्वर अपने अवतार या पैग़म्बर भेजता है।
अंतिम अवतार के आने का लक्षण
कल्कि के अवतरित होने का समय उस माहौल में बताया गया है, जबकि बर्बरता का साम्राज्य होगा। लोगों में हिंसा व अराजकता का बोलबाला होगा। पेड़ों का न फलना, न फूलना। अगर फल-फूल आएं भी तो बहुत कम। दूसरों को मारकर उनका धन लूट लेना और लड़कियों को पैदा होते ही पृथ्वी में गाड़ देना।
एक ईश्वर को छोड़कर कई देवी-देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को भगवान मानने की प्रवृत्ति, भलाई की आड़ में बुराई करने की प्रवृत्ति, असमानता आदि है।
ऐसे ही नाजुक दौर में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए थे।
एक ईश्वर को छोड़कर कई देवी-देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को भगवान मानने की प्रवृत्ति, भलाई की आड़ में बुराई करने की प्रवृत्ति, असमानता आदि है।
ऐसे ही नाजुक दौर में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए थे।
सातवीं शताब्दी के शुरू में रोमन और पर्सियन साम्राज्यों की जितनी बुरी अवस्था थी, उतनी शायद कभी नहीं हुई। बाइजेन्टाइन साम्राज्य के क्षीण हो जाने से सम्पूर्ण शासन नष्ट हो चुका था। पादरियों के दुष्कर्मों और दुष्टताओं के फलस्वरूप ईसाई धर्म बहुत गिर गया था। पारस्परिक संघर्षों और शत्रुता के कारण अफ़रा-तफ़री का आलम था। इस समय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए। इस्लाम धर्म रोमन साम्राज्य के संघार्षों से दूर था। इस धर्म के भाग्य में यही लिखा था कि यह तूफ़ान की तरह से सम्पूर्ण पृथ्वी पर छा जाएगा और अपने समक्ष बहुत-से साम्राज्यों, शासकों और प्रथाओं को इस तरह उड़ा देगा जैसे कि आंधी मिट्टी को उड़ा देती है। ('Apology for Mohammed' b Gofrey Higgins,2)
इसी प्रकार सेल ने कुरआन के अनुवाद की प्रस्तावना में लिखा है-
‘‘गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां लुप्त हो गई थीं। वे मूल धर्म को भूल गए थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाए हुए परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी में रोमन गिरजाघरों में बहुत-सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगीं और मूर्ती-पूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी। (Translation of the Qur'an, by Gorage Sale, First Tranlation/Preface on pages 25/26)’’
इसके परिणाम स्वरूप एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर हो गए और मरयम को ईश्वर की मां समझा जाने लगा। अज्ञानता के इस दौर में अल्लाह ने अपना अंतिम रसूल भेजा।
इसी प्रकार सेल ने कुरआन के अनुवाद की प्रस्तावना में लिखा है-
‘‘गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां लुप्त हो गई थीं। वे मूल धर्म को भूल गए थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाए हुए परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी में रोमन गिरजाघरों में बहुत-सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगीं और मूर्ती-पूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी। (Translation of the Qur'an, by Gorage Sale, First Tranlation/Preface on pages 25/26)’’
इसके परिणाम स्वरूप एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर हो गए और मरयम को ईश्वर की मां समझा जाने लगा। अज्ञानता के इस दौर में अल्लाह ने अपना अंतिम रसूल भेजा।
दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि अंतिम अवतार उस समय होगा जबकि युद्धों में तलवार का इस्तेमाल होता होगा और घोड़ों की सवारी की जाती हो।
भागवत पुराण में उल्लेख है कि ‘देवताओं द्वारा दिए गए वेगगामी घोड़े पर चढ़कर आठों ऐश्वर्यों और गुणों से युक्त जगत्पति तलवार से दुष्टों का दमन करेंगे।
(अश्वमाशुगमारुह्य देवदत्तं जगत्पतिः।
असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्य गुणान्वितः।।)
(भागवत् पुराण, 12 स्कंध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक)
तलवारों और घोड़ों का युग तो अब समाप्त हो चुका है। आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पूर्व तलवारों और घोड़ों का प्रयोग होता था। उसके लगभग सौ वर्ष बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला मिलाकर होने लगा था। वर्तमान समय में तो घोड़ों और तलवारों का स्थान टैंकों और मिसाइलों आदि ने ले लिया है।’
असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्य गुणान्वितः।।)
(भागवत् पुराण, 12 स्कंध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक)
तलवारों और घोड़ों का युग तो अब समाप्त हो चुका है। आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पूर्व तलवारों और घोड़ों का प्रयोग होता था। उसके लगभग सौ वर्ष बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला मिलाकर होने लगा था। वर्तमान समय में तो घोड़ों और तलवारों का स्थान टैंकों और मिसाइलों आदि ने ले लिया है।’
कल्कि का अवतार-
स्थान कल्कि के अवतार का स्थान शम्भल ग्राम में होने का उल्लेख कल्कि एवं भागवत् पुराण में किया गया है। यहां पहले यह निश्चय करना आवश्यक है कि शम्भल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशलेषण। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय के मतानुसार ‘शम्भल’ किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को ‘शम्भल’ नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बताई गई होती। भारत में खोजने पर यदि कोई ‘शम्भल’ नामक ग्राम लिखता है तो वहां आज से लगभग चौदह सौ वर्ष पहले कोई पुरुष ऐसा नहीं पैदा हुआ जो लोगों का उद्धारक हो। फिर अंतिम अवतार कोई खेल तो नहीं है कि अवतार हो जाए और समाज में ज़रा-सा परिवर्तन भी न हो, अतः ‘शम्भल’ शब्द को विशेषण मानकर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है।
(1) ‘शम्भल’ शब्द ‘शम्’ (शांत करना) धातु से बना है अर्थात, जिस स्थान में शान्ति मिले।
(2) सम् उप सर्गपूर्वक ‘वृ’ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द ‘संवर’ हुआ। वबयोरभेदः और रलयोरभेदः के सिद्धांत से शम्भल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ ‘जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है’।
(3) ‘शम्वर’ शब्द का निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों के पाठ हैं। ‘र’ और ‘ल’ में अभेद होने के कारण शम्भल का अर्थ होगा जल का समीपवर्ती स्थान’। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 30)
इस प्रकार वह स्थान जिसके आसपास जल हो और वह स्थान अत्यंत आकर्षण एवं शांतिदायक हो, वही शम्भल होगा। अवतार की भूमि पवित्र होती है। ‘शम्भल’ का शाब्दिक अर्थ है- शांति का स्थान। मक्का को अरबी में ‘दारूल अमन’ कहा जाता है, जिसका अर्थ शांति का घर होता है। मक्का मुहम्मद (सल्ल.) का कार्यस्थल रहा है।
जन्म तिथि
कल्कि पुराण में अंतिम अवतार के जन्म का भी उल्लेख किया गया है। इस पुराण के द्वितीय अध्याय के श्लोक 15 में वर्णित है-‘‘द्वादश्यां शुक्ल पक्षस्य, माधवे मासि माधवम्।
जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ ह्रष्टमानसौ।।
अर्थात ‘‘जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथि को होगा।’’
जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ ह्रष्टमानसौ।।
अर्थात ‘‘जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथि को होगा।’’
एक अन्य श्लोक में है कि कल्कि शम्भल में विष्णुयश नामक पुरोहित के यहां जन्म लेंगे।
(शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।)
(भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वाँ श्लोक)
मुहम्मद साहब (सल्ल.) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता हैः मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा = अर्थात अल्लाह का बन्दा = अब्दुल्लाह।
इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ है - शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल.) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।)
(भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वाँ श्लोक)
मुहम्मद साहब (सल्ल.) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता हैः मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा = अर्थात अल्लाह का बन्दा = अब्दुल्लाह।
इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ है - शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल.) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।
अन्तिम अवतार की विशेषताएंकल्कि की विशेषताएं हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.) के जीवन (सीरत) से मिलती-जुलती हैं। इन विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन यहां पेश किया जा रहा है।
1. अश्वारोही और खड्गधारी -
पहले लिखा जा चुका है कि भागवत पुराण में अंतिम अवतार के अश्वारोही और खड्गधारी होने का उल्लेख है। उसकी सवारी ऐसे घोड़े की होगी जो तेज़ गति से चलने वाला होगा और देवताओं द्वारा प्रदत्त होगा। तलवार से वह दुष्टों का संहार करेगा। घोड़े पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दमन करेगा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को भी फ़रिश्तों द्वारा घोड़ा प्राप्त हुआ था, जिसका नाम बुर्राक़ था। उसपर बैठकर अंतिम रसूल ने रात्रि को तीर्थयात्रा की थी। इसे ‘मेराज’ भी कहते हैं। इस रात आपकी अल्लाह से बातचीत हुई थी और आपको बैतुलमक्किदस (यरूशलम) भी ले जाया गया था।मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। आपके पास सात घोड़े थे। हज़रत अनस (रजि.) से रिवायत है कि मैंने मुहम्मद (सल्ल.) को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे। (बुख़ारी शरीफ़ की हदीस) आपके पास नौ तलवारें थीं। कुल परम्परा से प्राप्त तलवारें जुल्फ़िक़ार नामक तलवार, क़लईया नामवाली तलवार।
पहले लिखा जा चुका है कि भागवत पुराण में अंतिम अवतार के अश्वारोही और खड्गधारी होने का उल्लेख है। उसकी सवारी ऐसे घोड़े की होगी जो तेज़ गति से चलने वाला होगा और देवताओं द्वारा प्रदत्त होगा। तलवार से वह दुष्टों का संहार करेगा। घोड़े पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दमन करेगा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को भी फ़रिश्तों द्वारा घोड़ा प्राप्त हुआ था, जिसका नाम बुर्राक़ था। उसपर बैठकर अंतिम रसूल ने रात्रि को तीर्थयात्रा की थी। इसे ‘मेराज’ भी कहते हैं। इस रात आपकी अल्लाह से बातचीत हुई थी और आपको बैतुलमक्किदस (यरूशलम) भी ले जाया गया था।मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। आपके पास सात घोड़े थे। हज़रत अनस (रजि.) से रिवायत है कि मैंने मुहम्मद (सल्ल.) को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे। (बुख़ारी शरीफ़ की हदीस) आपके पास नौ तलवारें थीं। कुल परम्परा से प्राप्त तलवारें जुल्फ़िक़ार नामक तलवार, क़लईया नामवाली तलवार।
2. दुष्टों का दमन -
कल्कि के प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि यह दुष्टों का ही दमन करेगा।(भागवत पुराण 12-2-19)धर्म के प्रसार और दुष्टों के दमन में मदद के लिए देवता भी आकाश से उतर आएंगे; (यात यूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रताः।)
(कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7)
कल्कि के प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि यह दुष्टों का ही दमन करेगा।(भागवत पुराण 12-2-19)धर्म के प्रसार और दुष्टों के दमन में मदद के लिए देवता भी आकाश से उतर आएंगे; (यात यूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रताः।)
(कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने दुष्टो का दमन किया। उन्होंने डकैतों, लुटेरों और अन्य असामाजिक तत्वों को सुधारकर मानवता का पाठ पढ़ाया और उन्हें सत्य मार्ग दिखाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ऐसे कुसंस्कृत लोगों का सुसंस्कृत से रहना सिखाया। औरतों को उनका हक़ दिलाया। एकेश्वर के साथ तमाम देवताओं के घालमेल का आपने ज़ोरदार खंडन किया तथा कहा कि इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है, बल्कि सनातन धर्म है। दुष्टों के दमन में आपको फ़रिश्तों की मदद मिली। कुरआन मजीद में अल्लाह कहता है कि अल्लाह ने तुमको बद्र की लड़ाई में मदद दी और तुम बहुत कम संख्या में थे, तो तुमको चाहिए कि तुम अल्लाह ही से डरो और उसी के शुक्रगुज़ार होओ। जब तुम मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा रब तुमको तीन हज़ार फरिश्ते भेजकर करे, बल्कि अगर उसपर सब्र करो और अल्लाह से डरते रहो, तो अल्लाह तुम्हारी मदद पांच हज़ार फ़रिश्तों से करेगा। (कुरआन, सूरा आले इमरान, आयत संख्या 123, 124 और 125)।सूरा अहज़ाब में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को ईश्वर की मदद मिलने का उल्लेख है। इस सूरह की आयत संख्या 9 में वर्णित है कि ‘‘ऐ ईमानवालों! अल्लाह की उस कृपा का स्मरण करो, जब तुम्हारे विरूद्ध सेनाएं आईं तो हमने भी उनके विरुद्ध पवन और ऐसी सेनाएं भेजीं, जिनको तुम नहीं देखते थे, और जो कुछ तुम कर रहे थे, वह अल्लाह देख रहा था।’’
इस प्रकार दुष्टों का नाश करने में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मदद के लिए अपने फ़रिश्ते और अपनी सेनाएं भेजी। 3. जगत्पति - पति शब्द ‘पा’ (रक्षा करना) धातु में उति ‘प्रत्यय’ के संयोग से बना है। जगह का अर्थ है संसार। अतः जगत्पति का अर्थ हुआ संसार की रक्षा करने वाला। भागवत पुराण में अंतिम अवतार कल्कि को जगत्पति भी कहा गया है। (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 19 वां श्लोक)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जगत्पति (संस्कृत के व्याकरणाचार्य वामन शिवराम आप्टे ने ‘‘पति’’ शब्द का अर्थ ‘‘प्रधानता करनेवाला’’ भी बताया है (देखिए, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 568, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स संस्करण 1989)। इस प्रकार जगत्पति का अर्थ हुआ: संसार में प्रधानता करनेवाला। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जिस इस्लाम धर्म को लेकर आए, वह यद्यपि मानव जीवन के आरंभ से विद्यमान था, परन्तु आप (सल्ल.) के ज़रिए इसे पूर्णता और प्रधानता प्राप्त हुई। कुरआन में अल्लाह का कथन है: ‘‘आज मैंने तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, और तुम्हारे लिए इस्लाम को ‘‘दीन’’ (धर्म) की हैसियत से पसंद किया।’’) (5ः3)(अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने संसार में सत्य को प्रधानता दी, उसे फैलाया और लोगों को इसके लिए उभारा कि स्वयं भी सत्य का अनुसरण करें और दूसरों तक सत्य-संदेश पहुंचाएं। आप (सल्ल.) के द्वारा नेकियों और अच्छाइयों को प्रधानता मिली। अच्छे शील स्वभाव और नैतिकता की पूर्ति हुई। एक हदीस में आप (सल्ल.) ने कहा: ‘‘अल्लाह ने मुझे नैतिक गुणों और अच्छे कामों की पूर्ति के लिए भेजा है।’’)
इस प्रकार दुष्टों का नाश करने में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मदद के लिए अपने फ़रिश्ते और अपनी सेनाएं भेजी। 3. जगत्पति - पति शब्द ‘पा’ (रक्षा करना) धातु में उति ‘प्रत्यय’ के संयोग से बना है। जगह का अर्थ है संसार। अतः जगत्पति का अर्थ हुआ संसार की रक्षा करने वाला। भागवत पुराण में अंतिम अवतार कल्कि को जगत्पति भी कहा गया है। (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 19 वां श्लोक)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जगत्पति (संस्कृत के व्याकरणाचार्य वामन शिवराम आप्टे ने ‘‘पति’’ शब्द का अर्थ ‘‘प्रधानता करनेवाला’’ भी बताया है (देखिए, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 568, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स संस्करण 1989)। इस प्रकार जगत्पति का अर्थ हुआ: संसार में प्रधानता करनेवाला। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जिस इस्लाम धर्म को लेकर आए, वह यद्यपि मानव जीवन के आरंभ से विद्यमान था, परन्तु आप (सल्ल.) के ज़रिए इसे पूर्णता और प्रधानता प्राप्त हुई। कुरआन में अल्लाह का कथन है: ‘‘आज मैंने तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, और तुम्हारे लिए इस्लाम को ‘‘दीन’’ (धर्म) की हैसियत से पसंद किया।’’) (5ः3)(अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने संसार में सत्य को प्रधानता दी, उसे फैलाया और लोगों को इसके लिए उभारा कि स्वयं भी सत्य का अनुसरण करें और दूसरों तक सत्य-संदेश पहुंचाएं। आप (सल्ल.) के द्वारा नेकियों और अच्छाइयों को प्रधानता मिली। अच्छे शील स्वभाव और नैतिकता की पूर्ति हुई। एक हदीस में आप (सल्ल.) ने कहा: ‘‘अल्लाह ने मुझे नैतिक गुणों और अच्छे कामों की पूर्ति के लिए भेजा है।’’)
(शरहुस्सुन्नह) हैं, क्योंकि उन्होंने पतनशील समाज को बचाया। उसकी रक्षा की और संमार्ग दिखाया। आप सारे संसार के लोगों के लिए ईश्वर का संदेश लेकर आए। कुरआन में है-‘‘ऐ मुहम्मद एलान कर दो कि सारी दुनिया के लिए नबी होकर तुम आए हो।’’ (कुरआन, सूरा आराफ़, आयत संख्या 158) एक अन्य स्थान पर है-‘‘अत्यंत बरकतवाला है वह जिसने अपने बंदे पर पवित्रा ग्रन्थ कुरआन उतारा ताकि सम्पूर्ण संसार के लिए वह पापों का डर दिखानेवाला हो।’’ (कुरआन, सूरा फुरक़ान, आयत संख्या 1)
4. चार भाइयों के सहयोग से युक्त - कल्कि पुराण के अनुसार चार भाइयों के साथ कल्कि कलि (शैतान) का निवारण करेंगे। (चतुर्भिभ्र्रातृभिर्देव करिष्यामि कलिक्षयम्।)
(कल्कि पुराण अध्याय 2, श्लोक 5)
मुहम्मद (सल्ल.) ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। ये चार साथी थे-अबू बक्र (रजि.), उमर (रजि.), उसमान (रजि.) और अली (रजि.)।
(कल्कि पुराण अध्याय 2, श्लोक 5)
मुहम्मद (सल्ल.) ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। ये चार साथी थे-अबू बक्र (रजि.), उमर (रजि.), उसमान (रजि.) और अली (रजि.)।
5. अंतिम अवतार -कल्कि को अंतिम युग का अंतिम अवतार बताया है।
(भागवत पुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अंतिम अवतार हैं।)
(भा.पु. प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक) मुहम्मद (सल्ल.) ने भी एलान किया था कि मैं अंतिम रसूल हूं।‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरु’ में अनार का फल खानेवाले तथा कलंक को धोनेवाले किया गया है। पैग़म्बर (सल्ल.) भी अनार और खजूर का फल खाते थे तथा प्राचीन काल में आगत मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) को धो दिया। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब पृ. 41)
(भागवत पुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अंतिम अवतार हैं।)
(भा.पु. प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक) मुहम्मद (सल्ल.) ने भी एलान किया था कि मैं अंतिम रसूल हूं।‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरु’ में अनार का फल खानेवाले तथा कलंक को धोनेवाले किया गया है। पैग़म्बर (सल्ल.) भी अनार और खजूर का फल खाते थे तथा प्राचीन काल में आगत मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) को धो दिया। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब पृ. 41)
6. उपदेश और उत्तर दिशा की ओर जाना -
कल्कि पैदा होने के पश्चात पहाड़ी की तरफ़ चले जाएंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे। बाद मंे उत्तर की तरफ़ जाकर फिर लौटेंगे। मुहम्मद (सल्ल.) भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ़ चले गए और वहां जिबरील (अलैहि.) के ज़रिए अल्लाह का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण लौटे और अपने को जीत लिया। पुराणों में कल्कि के बारे में ऐसा भी लिखा है।
कल्कि पैदा होने के पश्चात पहाड़ी की तरफ़ चले जाएंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे। बाद मंे उत्तर की तरफ़ जाकर फिर लौटेंगे। मुहम्मद (सल्ल.) भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ़ चले गए और वहां जिबरील (अलैहि.) के ज़रिए अल्लाह का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण लौटे और अपने को जीत लिया। पुराणों में कल्कि के बारे में ऐसा भी लिखा है।
7. आठ सिद्धियों और गुणों से युक्त -
कल्कि अवतार को भागवत पुराण 12 स्कन्ध, द्वितीय अध्याय में ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वितः’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) बताया गया है। ये आठ ईश्वरीय गुण महाभारत में भी उल्लेख किए गए हैं। ये गुण निम्मन हैं-
कल्कि अवतार को भागवत पुराण 12 स्कन्ध, द्वितीय अध्याय में ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वितः’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) बताया गया है। ये आठ ईश्वरीय गुण महाभारत में भी उल्लेख किए गए हैं। ये गुण निम्मन हैं-
1. वह महान ज्ञानी होगा।
2. वह उच्च वंश का होगा।
3. वह आत्मनियंत्रक होगा।
4. वह श्रुतिज्ञानी होगा।
5. वह पराक्रमी होगा।
6. वह अल्पभाषी होगा।
7. वह दानी होगा और
8. वह कृतज्ञ होगा।(अष्टौगुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम श्रुतंच। पराक्रमश्चा बहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च। - महाभारत)अब हम इन गुणों को पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) के गुणों से क्रमवार साम्यता करेंगे।
2. वह उच्च वंश का होगा।
3. वह आत्मनियंत्रक होगा।
4. वह श्रुतिज्ञानी होगा।
5. वह पराक्रमी होगा।
6. वह अल्पभाषी होगा।
7. वह दानी होगा और
8. वह कृतज्ञ होगा।(अष्टौगुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम श्रुतंच। पराक्रमश्चा बहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च। - महाभारत)अब हम इन गुणों को पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) के गुणों से क्रमवार साम्यता करेंगे।
1- मुहम्मद (सल्ल.) महान ज्ञानी थे। उनमें प्रज्ञा दृष्टि थी।
आप (सल्ल.) ने भूत और भविष्य की अनेक बातें बताईं, जो एकदम सत्य सिद्ध हुईं।
पहले उल्लेख किया गया है कि रूमियों की हार और बाद में उनकी जीत की भविष्यवाणी मुहम्मद (सल्ल.) ने की थी।
आपकी दूरदर्शिता से संबंधित अनेक उदाहरण हैं, जो आपके उच्च ज्ञान को सिद्ध करते हैं।
आप (सल्ल.) ने भूत और भविष्य की अनेक बातें बताईं, जो एकदम सत्य सिद्ध हुईं।
पहले उल्लेख किया गया है कि रूमियों की हार और बाद में उनकी जीत की भविष्यवाणी मुहम्मद (सल्ल.) ने की थी।
आपकी दूरदर्शिता से संबंधित अनेक उदाहरण हैं, जो आपके उच्च ज्ञान को सिद्ध करते हैं।
2- मुहम्मद (सल्ल.) उच्च वंश में पैदा हुए। आपका जन्म 571 ई. में कुरैश की पंक्ति में हाशिम परिवार में हुआ था, जो अरब के निवासियों द्वार माननीय और काबा का परम्परागत संरक्षक था।
3- हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को इन्द्रियदमन या आत्मनियंत्राण का ईश्वरीय गुण भी प्राप्त था। आप आम्प्रशंसा से हीन, दयालु, शांत, इन्द्रियजीत और उदार थे। (Modesty and kinliness, patience, self deanial and riveted the affections off all around him, p.525, Life of Mohamed' by Sir Willaim Muir.)
4- आप श्रुतिज्ञानी भी थे। श्रुत का अर्थ है, ‘जो ईश्वर के द्वारा सुनाया गया और ऋषियों द्वारा सुना गया हो।’ मुहम्मद (सल्ल.) पर जिबरील (अलैहि.) नामक फ़रिश्ते के ज़रिए ईश्वरीय ज्ञान भेजा जाता था। लेनपूल अपनी पुस्तक ''Introduction, Speeches of Muhammad" में लिखते हैं कि मुहम्मद (सल्ल.) को देवदूत की सहायता से ईश्वरीय वाणी का भेजा जाना निस्संदेह सत्य है। सर विलियम म्योर ने भी लिखा है कि वे सन्देष्टा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे। (He was now the Servant, the Prophet, the vice gerent of God.)
5- रसूलुल्लाह (सल्ल.) काफ़ी पराक्रमी भी थे।
आपके पराक्रम को दर्शाते हुए डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने एक घटना का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है-
आपके पराक्रम को दर्शाते हुए डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने एक घटना का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है-
‘किसी गुफा में अकेले उपस्थित पहलवान, जो कुरैश से सम्बंधित था, से मुहम्मद (सल्ल.) ने ईश्वर से न डरने और ईश्वर पर विश्वास ने करने का कारण पूछा, जिसपर पहलवान ने सत्य की स्पष्टता के लिए कहा। तब मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि तू बड़ा वीर है, यदि कुश्ती में मैं तुझे नीच दिखाऊँ तो क्या विश्वास करेगा? उसेन स्वीकारात्मक उत्तर दिया। तब हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने उसे हरा दिया। (अल्लामा क़ाज़ी सलमान मंसूरपुरी ने अपनी सीरत की किताब ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ में ‘‘शिफ़ा’’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 64 के हवाले से लिखा है कि आप (सल्ल.) ने उसे तीन बार हराया, फिर भी उस पहलवान ने मुहम्मद (सल्ल.) को पैग़म्बर न माना तथा ईश्वर की सत्यता पर विश्वास ने किया।
6- अल्लाह के रसूल (सल्ल.) कम बोलते थे। अधिकतर मौन रहते परन्तु जो कुछ बोलते थे, वह इतना प्रभावोत्पादक होता था कि लोग आपकी बातें नहीं भूलते थे। (Introduction The speeches of Mohammad by Lane-Pool page-24)
7- दान देना महापुरुषों का एक प्रमुख गुण रहा है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) दान देने से पीछे नहीं हटते। यही कारण था कि आपके घर पर ग़रीबों की भीड़ लगी रहती थी। आपके घर से कभी कोई निराश होकर नहीं लौटा।
8- मुहम्मद (सल्ल.) के गुणों में कृतज्ञता भी थी। वे किसी के उपकार को नहीं भूलते। अनसार के प्रति कहे गए वाक्य आपकी कृतज्ञता का प्रमाण पेश करते हैं। (असह उस सियर, पृ. 343) इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि मुहम्मद (सल्ल.) में आठों ईश्वरीय गुणों का समावेश था।
8. शरीर से सुगन्ध का निकलना -
भागवत पुराण में भविष्यवाणी की गई है कल्कि के शरीर से ऐसी सुगंध निकलेगी, जिससे लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। उनके शरीर की सुगंध हवा में मिलकर लोगों के मन को निर्मल करेगी।
(अथ तेषां भविष्यन्ति मनांसि विशदानि वै।
वासु देवांगरागति पुण्यगन्धानिल स्पृशाम्।)
(भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 21वां श्लोक) शिमायल तिरमिज़ी में लिखा है कि मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर की खुशबू तो प्रसिद्ध ही है। मुहम्मद (सल्ल.) जिससे हाथ मिलाते थे, उसके हाथ से दिनभर सुगन्ध आती रहती थी। (पृष्ठ 208, शिमाएल तिरमिज़ी, अनुवाद: मौलाना मुहम्मद ज़करिया)
एक बार उम्मे सुलैत ने मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर का पसीना एकत्रा किया। आप (सल्ल.) के पूछने पर उन्होंने बताया कि इसे हम खुशबूओं में मिलाते हैं क्योंकि यह सभी सुगन्ध से बढ़कर है।
9. अनुपम कान्ति से युक्त - कल्कि अनुपम कान्ति से युक्त होंगे।
(विचरन्नाशुना क्षोण्यां हयेनाप्रतिमद्युतिः।
नृपलिंगच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।।) (भा.पु., द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक)
बुख़ारी शरीफ़ की हदीस के मुताबिक़ मुहम्मद (सल्ल.) सभी व्यक्तियों में अधिक सुंदर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान एवं योद्धा थे। (हज़रत अनस (रजि.) की रिवायत, जमउल फ़वायद, पेज 178) सर विलियम म्योर ने भी मुहम्मद (सल्ल.) को बहुत सुंदर स्वरूपवाला, पराक्रमी और दीनी बताया है। ('e was' says and admiring follwen, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men, P. 523, The Life of Mohammad')
(विचरन्नाशुना क्षोण्यां हयेनाप्रतिमद्युतिः।
नृपलिंगच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।।) (भा.पु., द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक)
बुख़ारी शरीफ़ की हदीस के मुताबिक़ मुहम्मद (सल्ल.) सभी व्यक्तियों में अधिक सुंदर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान एवं योद्धा थे। (हज़रत अनस (रजि.) की रिवायत, जमउल फ़वायद, पेज 178) सर विलियम म्योर ने भी मुहम्मद (सल्ल.) को बहुत सुंदर स्वरूपवाला, पराक्रमी और दीनी बताया है। ('e was' says and admiring follwen, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men, P. 523, The Life of Mohammad')
10. ईश्वरीय वाणी का उपदेष्टा -
डा. वेद प्रकाश उपध्याय ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के पृष्ठ 50, 51 पृष्ठ पर लिखते हैं कि ‘कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय शिक्षाएं होगी। मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा अभिव्यक्त कुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें। क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद में भी है। कुरआन में मूर्ति पूजा भी खण्डन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा, परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है। वेद में ‘एकम् सत्’ तथा विश्वबन्धुत्व की उत्कृष्ट घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और कुरआन की शिक्षा के द्वारा मुसलमान दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं, जबकि ब्राह्मण वर्ग में बिरले लोग ही त्रिकाल संध्या करनेवाले मिलेंगे।यहाँ यह तथ्य उजागर करना उचित होगा कि वेदों और कुरआन की शिक्षाओं में भी बहुत कुछ समानता है। मिसाल के तौर पर वेद, गीता और स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है और अपनी की हुई बुराइयों की क्षमा माँगने के लिए भी उसी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है।क़ुरआन में है:
‘‘ऐ नबी! कह दो, मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य (प्रकाशना) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसी से माँगो। (हा. मीम. अस सजदा आयत संख्या 6।) डा. उपाध्याय कहते हैं कि कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला उसे देखकर आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे आ गए और वही मुहम्मद साहब हैं। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 59)
डा. वेद प्रकाश उपध्याय ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के पृष्ठ 50, 51 पृष्ठ पर लिखते हैं कि ‘कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय शिक्षाएं होगी। मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा अभिव्यक्त कुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें। क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद में भी है। कुरआन में मूर्ति पूजा भी खण्डन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा, परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है। वेद में ‘एकम् सत्’ तथा विश्वबन्धुत्व की उत्कृष्ट घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और कुरआन की शिक्षा के द्वारा मुसलमान दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं, जबकि ब्राह्मण वर्ग में बिरले लोग ही त्रिकाल संध्या करनेवाले मिलेंगे।यहाँ यह तथ्य उजागर करना उचित होगा कि वेदों और कुरआन की शिक्षाओं में भी बहुत कुछ समानता है। मिसाल के तौर पर वेद, गीता और स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है और अपनी की हुई बुराइयों की क्षमा माँगने के लिए भी उसी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है।क़ुरआन में है:
‘‘ऐ नबी! कह दो, मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य (प्रकाशना) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसी से माँगो। (हा. मीम. अस सजदा आयत संख्या 6।) डा. उपाध्याय कहते हैं कि कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला उसे देखकर आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे आ गए और वही मुहम्मद साहब हैं। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 59)
उपनिषद् में भी मुहम्मद (सल्ल.) की चर्चा
-उपनिषदों में भी मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में जहाँ-तहाँ उल्लेख मिलता है। नागेंद्र नाथ बसु द्वारा संपादित विश्वकोष के द्वितीय खण्ड में उपनिषदों के वे श्लोक दिए गए हैं, जो इस्लाम और पैग़म्बर (सल्ल.) से ताल्लुक़ रखते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं ताकि पाठकों वास्तविकता का पता चल सके-
अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्त
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्दुदः।
हयामित्रो इल्लां इल्लां वरुणो मित्रास्तेजस्कामः ।। 1 ।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः
।अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण बह्माणं अल्लाम् ।। 2 ।।
अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।(अल्लोपनिषद 1, 2, 3)अर्थात, ‘‘इस देवता का नाम अल्लाह है। वह एक है। मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषताएँ हैं। वास्तव में अल्लाह वरुण है जो तमाम सृष्टि का बादशाह है। मित्रो! उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो। यह वरुण है और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगों के काम संवारता है। वह इंद्र है, श्रेष्ठ इंद्र। अल्लाह सबसे बड़ा, सबसे बेहतर, सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्रा है। मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’उपयुक्त उद्धरणों से यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एक है और मुहम्मद (सल्ल.) उसके सन्देशवाहक (पैग़म्बर) हैं। इस उपनिषद के अन्य श्लोकों में भी इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल.) की साम्यगत बातें आई हैं। इस उपनिषद में आगे कहा गया है-
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्दुदः।
हयामित्रो इल्लां इल्लां वरुणो मित्रास्तेजस्कामः ।। 1 ।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः
।अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण बह्माणं अल्लाम् ।। 2 ।।
अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।(अल्लोपनिषद 1, 2, 3)अर्थात, ‘‘इस देवता का नाम अल्लाह है। वह एक है। मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषताएँ हैं। वास्तव में अल्लाह वरुण है जो तमाम सृष्टि का बादशाह है। मित्रो! उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो। यह वरुण है और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगों के काम संवारता है। वह इंद्र है, श्रेष्ठ इंद्र। अल्लाह सबसे बड़ा, सबसे बेहतर, सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्रा है। मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’उपयुक्त उद्धरणों से यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एक है और मुहम्मद (सल्ल.) उसके सन्देशवाहक (पैग़म्बर) हैं। इस उपनिषद के अन्य श्लोकों में भी इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल.) की साम्यगत बातें आई हैं। इस उपनिषद में आगे कहा गया है-
आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।
अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।
अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।
अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।
इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांतजलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।
असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।
इति अल्लोपनिषदअर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’
अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।
अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।
अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।
इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांतजलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।
असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।
इति अल्लोपनिषदअर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’
(बहुत थोड़े से विद्वान, जिनका संबंध विशेष रूप से आर्यसमाज से बताया जाता है, अल्लोपनिषद् की गणना उपनिषदों में नहीं करते और इस प्रकार इसका इनकार करते हैं, हालांकि उनके तर्कों में दम नहीं है। इस कारण से भी हिन्दू धर्म के अधिकतर विद्वान और मनीषी अपवादियों के आग्रह पर ध्यान नहीं देते। गीता प्रेस (गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के प्रमाणिक प्रकाशन केंद्र के रूप में अग्रगण्य है। यहां से प्रकाशित ‘‘कल्याण’’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं। इसकी विशेष प्रस्तुति ‘‘उपनिषद अंक’’ में 220 उपनिषदों की सूची दी गई है, जिसमें अल्लोपनिषद् का उल्लेख 15वें नंबर पर किया गया है। 14वें नंबर पर अमत बिन्दूपनिषद् और 16वें नंबर पर अवधूतोपनिषद् (पद्य) उल्लिखित है।
डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी अल्लोपनिषद को प्रामाणिक उपनिषद् माना है। ‘देखिए: वैदिक साहित्य: एक विवेचन, प्रदीप प्रकाशन, पृ. 101, संस्करण 1989।)
प्राणनाथी (प्रणामी) सम्प्रदाय की शिक्षा
हिन्दुओं के वैष्णव समुदाय में प्राणनाथी सम्प्रदाय उल्लेखनीय है। इसके संस्थापक एंव प्रवर्तक महामति प्राणनाथ थे। आपका जन्म का नाम मेहराज ठाकुर था। प्राणनाथ जी का जन्म 1618 ई. में गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। आपने इन्सानों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और एक ही निराकार ईश्वर की पूजा-उपासना पर बल दिया। आपने नुबूव्वत अर्थात ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया और इसे सही ठहराया। प्राणनाथ जी कहते हैं-
कै बड़े कहे पैगमंर, पर एक महमंद पर खतम।
अर्थात, धर्मग्रंथों में अनेकों पैग़म्बर बड़े कहे गए, किन्तु मुहम्मद साहब पर ईशदूतों की श्रृंखला समाप्त हुई। रसूल मुहम्मद (सल्ल.) आख़िरी पैग़म्बर हुए। (मारफ़त सागर, पृ. 39, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)
प्राणनाथ जी ने एक स्थान पर लिखा-
रसूल आवेगा तुम पर, ले मेरा फुरमान।आए मेर अरस की, देखी सब पेहेचान।।अर्थात, (ईश्वर ने कहाः) मेरा रसूल मुहम्मद तुम्हारे पास मेरा संदेश लेकर आएगा। वह संसार में आकर तुम्हें मेरे अर्श या परमधाम की सब तरह से पहचान कराने के लिए कुछ संकेत देगा। (मारफ़त सागर, पृ. 19, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)अधिक जानकारी के लिये पढें पुस्तकः
"नराशंस और अंतिम ऋषि" (एेतिहासकि शोध) --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्याय
कल्कि अवतार और मुहम्मद सल्ल. --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्याय
हिन्दुओं के वैष्णव समुदाय में प्राणनाथी सम्प्रदाय उल्लेखनीय है। इसके संस्थापक एंव प्रवर्तक महामति प्राणनाथ थे। आपका जन्म का नाम मेहराज ठाकुर था। प्राणनाथ जी का जन्म 1618 ई. में गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। आपने इन्सानों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और एक ही निराकार ईश्वर की पूजा-उपासना पर बल दिया। आपने नुबूव्वत अर्थात ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया और इसे सही ठहराया। प्राणनाथ जी कहते हैं-
कै बड़े कहे पैगमंर, पर एक महमंद पर खतम।
अर्थात, धर्मग्रंथों में अनेकों पैग़म्बर बड़े कहे गए, किन्तु मुहम्मद साहब पर ईशदूतों की श्रृंखला समाप्त हुई। रसूल मुहम्मद (सल्ल.) आख़िरी पैग़म्बर हुए। (मारफ़त सागर, पृ. 39, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)
प्राणनाथ जी ने एक स्थान पर लिखा-
रसूल आवेगा तुम पर, ले मेरा फुरमान।आए मेर अरस की, देखी सब पेहेचान।।अर्थात, (ईश्वर ने कहाः) मेरा रसूल मुहम्मद तुम्हारे पास मेरा संदेश लेकर आएगा। वह संसार में आकर तुम्हें मेरे अर्श या परमधाम की सब तरह से पहचान कराने के लिए कुछ संकेत देगा। (मारफ़त सागर, पृ. 19, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)अधिक जानकारी के लिये पढें पुस्तकः
"नराशंस और अंतिम ऋषि" (एेतिहासकि शोध) --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्याय
कल्कि अवतार और मुहम्मद सल्ल. --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्याय
साभार जनाब आफ़ताब फाजिल
No comments:
Post a Comment