अक्सर ये देखा जाता है की गौमॉस पर लोग लम्बी चौड़ी बाते करते है हमारे मज़हब को गलत कहते है मैने उनको कई बार जवाब भी माकूल दिया है मै एक दिन इसपर अध्यन कर रहा था की अचानक मुझे एक ऐसा मौका मिला ऐसे लोगो को जवाब देने का जिसे मै खोना नहीं चाहता था मुझे गोमास भक्षण का सबूत मिल गया है रिग्वेद में गौमांस भक्षण तक का उदहारण आया है आप खुद देखिये यहाँ मै उचित शब्दार्थ के लिए
द कम्पलीट वर्क आफ स्वामी विवेकानंद . वोल्यूम 3 को शाक्षी रख कर अपनी बाते रख रहा हु जिसके पृष्ट संक्या 174, और ५३६ का वर्णन कर रहा हु जिसमे महान हिन्दू धर्म के स्वामी विकेकानन्दजी ने ऋग्वेद का वर्णन किया है
"उक्षणों ही में पंचदंश साकं पंचंती: विश्तिम् |
उताहंमदिंम् पीव इदुभा कुक्षी प्रणन्ती में विश्व्स्मान्दिन्द्र ||" (उत्तर ऋग्वेद 10-86-14 )
अर्थात :- इन्द्राणी द्वारा प्रेरित यज्ञकर्ता मेरे लिए 15-30बैल काटकर पकाते है , जिन्हें खाकर मै मोटा होता हू |वे मेरी कुक्षियो को सोम (शराब ) से भी भरते है | (ऋग्वेद 10-86-14 )
यहाँ धयान दीजियेगा की बैल को पका कर खाने का वर्णन है बैल नरगए को कहते है न यानि गोमाता के पति या पुत्र को
"मित्र कूवो यक्षसने न् गाव: पृथिव्या |
आपृगामृया शयंते ||" (ऋग्वेद 10-89-14 )
अर्थात :- हे ! इन्द्र जैसे गौ वध के स्थान पर गाये कटी जाती है वैसे ही तुम्हारे इस अस्त्र से मित्र द्वेषी राक्षस कटकर सदैव के लिए सो जांए |(ऋग्वेद 10-89-14 ) यहाँ धयान दे की गोवध की बात कही गयी है
"आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती |
सोमान पिवसित्व मेषा ||"
"पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां |
पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||" (ऋग्वेद 10-28 -3 )
अर्थात :- हे ! इन्द्र अन्न की कमाना से तूम्हारे लिए जिस समय हवन किया जाता है उस समय यजमान पत्थर के टुकडो पर शीघ्रताशीघ्र सोमरस (शराब ) तैयार करते है उसे तुम पीते हो ,यजमान बैल पकाते है और उसे तुम खाते हो | (ऋग्वेद 10-28-3 )
यहाँ धयान दीजिये की केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि आपके इन्द्र भगवन भी गौमांस भक्षण करते है
अब आप निर्णय करो की स्वामी जी ने गलत लिखा है या सही मै तो कहूँगा की स्वामी जी ने एकदम सत्य लिखा है और उनकी बातो का समर्थन करता हु आप बताए |
इसके लिए आपने मेहनत की यह अच्छी बात है.बहुत से हिन्दू इस बात को नहीं जानते हैं कि गौ मांस खाना एक सामान्य बात रही है. सभी यज्ञ में बलि के लिए गाय काटी जाती थी चाहे वो राम के द्वारा किया गया यज्ञ हो या कृष्ण उसमे भाग ले रहे हो. बाद में बलि को ही पका कर परसा जाता था
ReplyDeleteBhai adhura gyan hamesha dukhdai hota hai. pagle Rishi Dayanand ki Satyarth Prakash tatha Rigvedadi Bhasya Bhumika patho. Uske bad apna tark tyar karna. Vivekanand to paschatya Sanskriti se prerit tha usne to vedo ka arth nahi anarth kiya tha jiske karan aaj ke nojawan bhatkte hain. Gomegh Yagna ka matlab Go vadh se nahi balki budhipurvak sudhvani se yagna karna hai. Agar nahi pata to pahle Satyarth Prakash padho ya hamare do diwsiya satra ki bahash m bhag lo agar aap ki baat sahi hui to ham bhi tumhare sath ho jayenge nahi to tum hamare saath ho jana.
DeleteApne muslim bhaiyon se Arbi me Hindu sabd ka arth puchhna tab tumeh apne ko hindu kahne main bhi lajja aayegi. Hindu ka arth hota hai Kala, Kafir, Chor or lutera. parantu ye paschatya shiksha vale kate hain ki muslim Sindu nadi ko hindu nadi kahte the kyoki vo s ko hai bolte the unse puchhna ki muslman sindh prant ko hind prant kyon nahi kate.
in bathon par dhyan do
1. Muslim desho m shanti kyon nahi h.
2. vahan sarkaren kyon gir jati hain.
3. agar muslim sanvidhan Kuran hi sacha sanvidhan hai to 1600 sal se pahle ye duniya bina sanvidhan k chanl rahi thi.
Jai Arya , Jai Aryavart
Mera name Ram Narayan CHANDEL hai.
DeleteMai aapki bat se sahmat hoon. Kuch akl k dushmanon ko kuch bhi Pta nhi fir bhi mante nhi li Sanatan hi sarshreshth hai
ऋगवेद ८.१०१.१५ – मैं समझदार मनुष्य कोकहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गायकी हत्या मत कर, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.
Deleteऋगवेद ८.१०१.१६ – मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.
अथर्ववेद १०.१.२९ – तू हमारे गाय, घोरेऔर पुरुष को मत मार.
अथर्ववेद १२.४.३८ -जो (वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं.
अथर्ववेद ४.११.३- जो बैलो को नहीं खातावह कस्त में नहीं पड़ता हैं
ऋगवेद ६.२८.४ – गोए वधालय में न जाये
अथर्ववेद ८.३.२४ – जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे , तलवार से उसका सर काट दो
यजुर्वेद १३.४३ – गाय का वध मत कर , जो अखंडनिय हैं
अथर्ववेद ७.५.५ – वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं
यजुर्वेद ३०.१८- गोहत्यारे को प्राण दंड दो
वेदों से गो रक्षा के प्रमाण दर्शा करस्वामी दयानन्द जी ने महीधर के यजुर्वेद भाष्य में दर्शाए गए अश्लील,मांसाहार के समर्थक, भोझिल कर्म कांड का खंडन कर उसका सही अर्थ दर्शा कर न केवल वेदों को अपमान से बचा लिया अपितु उनकी रक्षा कर मानव जाती पर भारी उपकार भी किया.
Ye na khali bate h
Deletedharmik bedo or gomata ki jay: good luk
DeleteSharwani Thakur- dare bidwan ap Sab ko Mera namaskar... Par Veda to manusyon ne likhi.... Pehle to lipi thi hi nhi.... Sirf sunke vedon ko hawan kund ki app to sidh krke ved ratbayi jati thi... Guruwon dwara siya ko .... Jab lipi astitwa me aye... West Bengal me sabse pehle kisi bachhe ne nariyal ki khudai ke dawran lipi ka aviskar huwa.... Uske bad Sanskrit ke 14 akshar se jo ki Mahadev ke damru se nikla usi se sand air akshar air lipi bani. 100 sal India angrejon ka Ghulam tha.... Swarg me log havya khakar rehte hai... Unhen bhukh pays nhi last. Marne ke bad bigot jyada punyaban log yam Puri me nhi balki dharma Raj ki dharma Puri me chand ki rosni prapt Kate hai... Havya Kate hai... Ek hi bar uske bad jab tak swarg me rehte bhukh nhi last unhen... We log karma bandhan se muqt hai...
DeleteSharwani Thakur- sorry wo priadication on hone ke Karan sabd apne ap Badal gye.. Kuchh 2-4 uske liye mafi chatting hun... Mere ghar me mere do Chacha Sanskrit ke professor hain. Jo ki retair kar gye... Mere dada let Pandit Shri Mahan and Thakur pure Uttar Bharat me Sanskrit ke sabse bare bidwan the... Unhone Sanskrit ke 4 subject se aacharya ( M. A) kiya tha... Rastriya puraskar se Uttar Bharat ke sabse bare bidwan hone ka rastriya puraskar Mila tha. Mai unki poti keh rhi ap se trust me swarg me kisi ko bhukh nhi lagti. Na unhen upke punya ka fal milta hai na pap ka... Trust me.... Karma bhumi sirf manusya ko prabhabit karti hai...
DeleteAgar aisa hai jo gyan pelte hain jiv hatya par to un ko belt , purse , har wo chiz jo chamra se banti hai band kardena chaiye..beaf export me india 3 number par hai un ko roko jo bare bare brahman log ki company chal rahi hai ..
DeleteDusri baat log padhte nahi hain or gyan aukat se zada rakhte hain..
Aj adhar card se chiken ,mutton ,fish ki shop par sail ho to sab pata chal jaega kiski bheer zada hai..pura sawan nahi khanege baad me sab gatak jaenge ye kon sa dharam kahta hai
भाई इस मन्त्र को खुद जाकर पढो ऋग्वेद उठाकर यह मन्त्र ही गलत लिखा है अर्थ भी अपनी मर्जी से लिखा है मै इस मन्त्र को पढा हूं यह बेफकूफ बना रहा है । खुद पढो और बढो।
Deletebahut khub ...!!! aap ke pryaas se bahut purana jawaab mil gaya hai..!! hamare hindu bhai gumrah hai ...! unhe to apne dharm ke bare me bhi nahi maloom ...!
ReplyDeleteधर्म के पीछे आर्थिक, सामाजिक, और मनोविज्ञानिक तर्क छुपे होते हैं, जिसे समझे बिना बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल पाते. धर्म को समझने का उत्साह खुद के लिये भी जरूरी है, सिर्फ दूसरों को आघात पहुँचाने के लिये किया गया शोध समाज में सिर्फ नकारात्मक प्रभाव फैलाता है. बाकी, नीचे भी देख सकते हैं !
Deleteजैसे तुम्हारा मोहमद गधी पे बैठकर गुमता था वैसे तू बी गधा है । तुम अर्थ ही गलत बोल रहे हो
Deleteउ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् । उ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
Deleteअर्थ
आकाश में जिन ग्रहों-उपग्रहों की गति नष्ट होती देखी जाती है, वे पैंतीस हैं। आरम्भ सृष्टि में सारे ग्रह-उपग्रह रेवती तारा के अन्तिम भाग पर अवलम्बित थे, वे ईश्वरीय नियम से गति करने लगे, रेवती तारे से पृथक् होते चले गये। विश्व के उत्तर गोलार्ध और दक्षिण गोलार्ध में फैल गये, यह स्थिति सृष्टि के उत्पत्तिकाल की वेद में वर्णित है ॥१३-१४॥
badhiya hai lekin ise zero jaise fb group me bhejne se kuch fayda nahi kyuki wo fir mazhabe islam par galat aur vahiuyat comments karte hain
ReplyDeleteShukriya dosto
ReplyDeleteमांस खाना हराम है और ये कुरान शरीफ हो या वेद पुराण इनमें जहां जहां मांस खाने का प्रकरण है वह परमात्मा या अल्लाह का आदेश नहीं है वह शैतान अर्थात काल ब्रह्म का आदेश है।
DeleteRigved ke 1st Mandal me Mans bhakshan ka nishedh kiya gaya he wo mantra bhi to likh dijiye. Q dusro ko nicha dikhane ki koshish me swayam hi niche gir jate ho???
ReplyDeleteYe. Aisa nahi karega...sanatan ko khatm karne ki inki koshishen kabhi kamayab nahi hongi
DeleteIndira dev badalo ke devta hai aur som ras pani ko bolte hain bevkoofo vo koi manushy nhi jo gay ka mans aur sarab piyenge
Deleteसोमरस क्या है इसको पढ लेना पता चल जाएगा
DeleteDownload link 👇
https://drive.google.com/file/d/15pDrLajP1FU3ZcGD3aQpNrsrA_7R1mVS/view?usp=drivesdk
It is foolishness to read few lines in between and concluding that sacrifices ( bali system ) were for satisying taste buds , explanation of lines can only done by going through context start to end, How it can be concluded that SOM is sharab ( Whisky) ,In Vedas there is description that SOM was made up of Gur,Leaves , Butter,Milk etc -what kind of sharab is this.Similarly sacrifices have very broad meaning which can not be understood by a person who is fond of eating garbage etc
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसम्भवतः, गोमांश-भक्षण आर्यों के बीच आरंभ में, उस समय प्रचलित रहा हो, जब वो मध्य-एशियायी खाना-बदोश जीवन जी रहे थे. ऋक वेद का सबसे पुराना भाग आर्यों के भारतीय भूमि में प्रवेश से पहले रचित माना जाता हैं. इसके सबूत हमें ऋग्वैदिक देवताओं का पश्चिम एशिया के कुछ अभिलेखों में वर्णन के रूप में मिलता है. खानाबदोश जीवन में गोवंश का महत्व कृषि के सापेक्ष बहुत कम था. ऐसा माना जाता है, कि भारतीय भूमि में कृषि के विकास के साथ गोवंश का महत्व काफी बढा, और इसके परिप्रेक्ष्य में मांस के लिये इसकी हत्या का विरोध बढने लगा. साथ ही, यह गौर करने की बात है, कि ठंडे प्रदेश में मांसाहार का महत्व, भारतीय सन्दर्भ में बदल जाता है. सम्भव है, कि भारतीय जलवायु में गोमांश भक्षण का मानवीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव भी लोगों में इसके विपरीत जाने को बाध्य किया हो. इसका सबूत यह है, कि भारत में जन्में सभी पंथों में अहिंसा का महत्व रहा है. आर्यों के भारत आगमन के बाद ऋग्वेद के वे बाद वाले अंश, और अन्य तीनों वेदों, वेदांत और वेदांगों में गोवंश को अघ्न्या मानकर वर्णन आया है. आर्यों से पहले भारत में बसी हुई संस्कृतियों का आर्यों के साथ मिलकर जो सांस्कृतिक स्वरूप सामने आया, वही मुख्यरूप से आज की हिन्दू धर्म की मान्यताओं में स्थापित पाई जाती हैं. भारत आने से पहले के आर्य, भारत में आकर यहाँ के पूर्व-वासित लोगों के साथ –हिन्दू-संस्कृति का विकास करने वाले आर्य, इन दोनों को भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अलग कर के देखना पड़ेगा. भारत में आर्य-संस्कृति वास्तव में आर्यों एवं, आर्यों से पूर्व से स्थापित हिन्दुओं के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुआ है. इस अंतर को तो ऋग्वेद और अन्य वेदों की विषय-वस्तु में अंतर से ही समझा जा सकता है. सिन्धु-घाटी सभ्यता के लोगों की धार्मिक आस्था, आर्यों की मूल आस्था से काफी भिन्न मालूम पड़ती हैं. वृक्षों, पशुओं, मातृदेवों, पशुपति, लिंग-पूजा आदि आरम्भिक आर्य-संस्कृति में नहीं पाया जाता. मूर्ति-पूजा, स्तूप-पूजा जैसी चीजें भी आरम्भिक आर्य-संस्कृति का हिस्सा नहीं थी.
ReplyDeleteअत:, आरम्भिक भारतीय भूमि में प्रवेश से पहले की आर्य-संस्कृति, भारत भूमि पर आर्य-संस्कृति के बीच अंतर को समझने के बाद, गोमांसाहार और उसके प्रति वर्जना को अच्छी तरह समझा जा सकता है. भारतीय आर्य-संस्कृति का इस भूमि में पूर्व से स्थापित संस्कृतियों से मिलन के बाद जो संस्कृति उभरकर आती है, उसमें गोमांश एक वर्जना के रूप में सामने आता है. अतः, हिन्दू संस्कृति में पाई जाने वाली यह वर्जना, सम्भवतः सिन्धु-घाटी सभ्यता के योगदान से पैदा हुई.
मनुस्मृति में आया है " यक्षरक्ष: पिशाचान्न मघ मॉस सुराssसवम (मनु ११/९५ )"
Deleteमॉस और मध राक्षसो और पिशाचो का आहार है |
यहा मॉस को पिशाचो का आहार कहा है जबकि भारतीय संस्कृति का प्राचीन काल से अतिथि के लिए निम्न वाक्य प्रयुक्त होता आया है " अतिथि देवोभव:" अर्थात अतिथि को देव माना है अब भला कोई देवो को पिशाचो का आहार खिलायेगा ...
तो फिर ऋग्वेद के हिसाब से इंद्र क्या हुए जो बैल खाते थे❓
Deleteभाइयो ऋग्वेद या किसी भी वेद में अगर ये लिखा हा की गोमांस खाना सही है तो कुरान में कहा लिखा है की गोमांस का ही भक्षण करो गाय अगर किसी धरम में पवित्र है तो जरुरी नहीं की मजहबी बातो को बढ़ावा देने के लिए उसका भक्षण किया जाये आज अगर हमारे आस पास कोई मर जाये तो क्या आप लग जश्न मानते हो नहीं न फिर इतनी लम्बी चौड़ी बाते क्यों आज खाने के लिए बहुत कुछ है फिर गाय ही क्यों सुवर क्यों नहीं मांस भी बहुत अच्छा होता है ज्यादा होता है आज इतनी लम्बी चौड़ी बाटे लिखे वाला ये इंसान कहा से ऋग्वेद पढ़ आया कोनसे पंडित से इसने संस्कृत सीखी ? पहले इस बात का जवाब दे फिर मै बताऊंगा की ऋग्वेद में क्या लिखा हुआ है
ReplyDeleteyahan baith kar faltu bate kar ke apne jiwan ko bekar karne se jyda accha hi kisi majloom ki madad karo...
ReplyDeletejin ke peet bhare hote hai sirrf or sirrf un logo ko hi ladai karane ya uksane ka time milta hia...
Sahi h
Deleteयह बहस का मुद्दा ही नहीं है। जब तक किसी बात की तह तक नहीं जाया जाएगा, तब तक ऊपरी बातों से कयास लगाने से क्या मतलब! वेदों में कही गई उस बात का सही अर्थ समक्षें, उसे पूरी तरह जानें तब कोई अपनी राय दें तो बेहतर रहेगा।
ReplyDeleteये गलत अर्थ निकाला है।
Deleteआकाश में जिन ग्रहों-उपग्रहों की गति नष्ट होती देखी जाती है, वे पैंतीस हैं। आरम्भ सृष्टि में सारे ग्रह-उपग्रह रेवती तारा के अन्तिम भाग पर अवलम्बित थे, वे ईश्वरीय नियम से गति करने लगे, रेवती तारे से पृथक् होते चले गये। विश्व के उत्तर गोलार्ध और दक्षिण गोलार्ध में फैल गये, यह स्थिति सृष्टि के उत्पत्तिकाल की वेद में वर्णित है ॥१३-१४॥
यह बहस का मुद्दा ही नहीं है। जब तक किसी बात की तह तक नहीं जाया जाएगा, तब तक ऊपरी बातों से कयास लगाने से क्या मतलब! वेदों में कही गई उस बात का सही अर्थ समक्षें, उसे पूरी तरह जानें तब कोई अपनी राय दें तो बेहतर रहेगा।
ReplyDeleteमामद तारिक क्या वेद मे अर्थ के साथ गोवध लिखा हे ??
ReplyDeleteया तुने अर्थ निकाला ??
मुर्ख लोगो के द्वारा अर्थ निकाले गए है।कहाँ पर,किस अर्थ से,पूरा अध्ययन करें तब पता चले।हिन्दू द्वेष से जो भी अर्थ निकलेगा वह गलत ही होगा।श्रद्धा व अपने कल्याण के निमित्त जो अर्थ निकलेंगे वही अर्थ सही है।
ReplyDeleteअर्थ तो साफ है,आपको अगर गोल गोल घुमा के अर्थ निकालने कि आदत है तो कोई आपको कुछ नहीं बोलेगा ।।
Deleteनिकालिए आपके ओर से जो निकालना है निकालिए।।
पर सबको को दिखता है उषिके आधार पर यह तय होगा ।।
हिंदू कोई धर्म नहि हे ।
ReplyDeleteये मात्र विदेशी आर्यो द्वारा भारतिय मूलनिवासियों को गुलाम बनाये रखने का षडयंत्र मात्र हे।हिन्दू कहलाने वाली कम्यूनिटी मनूस्म्रती की देन चातूरूवर्ण को मानति हे जो की अमानविय हे ।पशू ओर इंसान में मात्र एक ही अंतर होता हे बूद्धी का ओर बूद्धी शिक्षा से आती हे हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनूसार शूद्रों एवं नारियों को चाहे किसी भी वर्ण की हो ईन्हे शिक्षा ग्रहण करने का कोई अविकार ही नही था।
तो क्या हमें हिन्दू को धर्म कहना चाहीये?
कोई जो अपने आप को हिन्दू कहता हे,उससे मेरा एक ही प्रश्न हे की वो हिन्दू धर्म की कोई एसी परिभाषा दे की उसे सभी हिंदू कहे जाने वाले स्विकार कर लेवे।मेरा दावा हे की कोई हिन्दू की परिभाषा नही दे सकता।
BILKUL SAHI.....
Deleteबेफकूफ हो क्या बकवास बाजी है क्या संविधान मे देखो हिन्दु किसे कहते है
Deleteप्राचीन काल में हिन्दू गोमांस खाते थे'
ReplyDelete14 अप्रैल 2016
साझा कीजिए
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भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माताओं में से एक डॉक्टर बीआर अंबेडकर अच्छे शोधकर्ता भी थे. उन्होंने गोमांस खाने के संबंध में एक निबंध लिखा था, 'क्या हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया?'
यह निबंध उनकी किताब, 'अछूतः कौन थे और वे अछूत क्यों बने?' में है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर शम्सुल इस्लाम ने इस निबंध को संपादित कर इसके कुछ हिस्से बीबीसी हिंदी के पाठकों के लिए उपलब्ध करवाए हैं.
'पवित्र है इसलिए खाओ'
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अपने इस लेख में अंबेडकर हिंदुओं के इस दावे को चुनौती देते हैं कि हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया और गाय को हमेशा पवित्र माना है और उसे अघन्य (जिसे मारा नहीं जा सकता) की श्रेणी में रखा है.
अंबेडकर ने प्राचीन काल में हिंदुओं के गोमांस खाने की बात को साबित करने के लिए हिन्दू और बौद्ध धर्मग्रंथों का सहारा लिया.
उनके मुताबिक, "गाय को पवित्र माने जाने से पहले गाय को मारा जाता था. उन्होंने हिन्दू धर्मशास्त्रों के विख्यात विद्वान पीवी काणे का हवाला दिया. काणे ने लिखा है, ऐसा नहीं है कि वैदिक काल में गाय पवित्र नहीं थी, लेकिन उसकी पवित्रता के कारण ही बाजसनेई संहिता में कहा गया कि गोमांस को खाया जाना चाहिए." (मराठी में धर्म शास्त्र विचार, पृष्ठ-180).
अंबेडकर ने लिखा है, "ऋगवेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, जो खुद ऋगवेद से ही स्पष्ट है."
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ऋगवेद में (10. 86.14) में इंद्र कहते हैं, "उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए'. ऋगवेद (10. 91.14) कहता है कि अग्नि के लिए घोड़े, बैल, सांड, बांझ गायों और भेड़ों की बलि दी गई. ऋगवेद (10. 72.6) से ऐसा लगता है कि गाय को तलवार या कुल्हाड़ी से मारा जाता था."
'अतिथि यानि गाय का हत्यारा'
अंबेडकर ने वैदिक ऋचाओं का हवाला दिया है जिनमें बलि देने के लिए गाय और सांड में से चुनने को कहा गया है.
अंबेडकर ने लिखा "तैत्रीय ब्राह्मण में बताई गई कामयेष्टियों में न सिर्फ़ बैल और गाय की बलि का उल्लेख है बल्कि यह भी बताया गया है कि किस देवता को किस तरह के बैल या गाय की बलि दी जानी चाहिए."
वो लिखते हैं, "विष्णु को बलि चढ़ाने के लिए बौना बैल, वृत्रासुर के संहारक के रूप में इंद्र को लटकते सींग वाले और माथे पर चमक वाले सांड, पुशन के लिए काली गाय, रुद्र के लिए लाल गाय आदि."
"तैत्रीय ब्राह्मण में एक और बलि का उल्लेख है जिसे पंचस्रदीय-सेवा बताया गया है. इसका सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, पांच साल के बगैर कूबड़ वाले 17 बौने बैलों का बलिदान और जितनी चाहें उतनी तीन साल की बौनी बछियों का बलिदान."
अंबेडकर ने जिन वैदिक ग्रंथों का उल्लेख किया है उनके अनुसार मधुपर्क नाम का एक व्यंजन इन लोगों को अवश्य दिया जाना चाहिए- (1) ऋत्विज या बलि देने वाले ब्राह्मण (2) आचार्य-शिक्षक (3) दूल्हे (4) राजा (5) स्नातक और (6) मेज़बान को प्रिय कोई भी व्यक्ति.
कुछ लोग इस सूची में अतिथि को भी जोड़ते हैं.
मधुपर्क में "मांस, और वह भी गाय के मांस होता था. मेहमानों के लिए गाय को मारा जाना इस हद तक बढ़ गया था कि मेहमानों को 'गोघ्न' कहा जाने लगा था, जिसका अर्थ है गाय का हत्यारा."
'सब खाते थे गोमांस'
इस शोध के आधार पर अंबेडकर ने लिखा कि एक समय हिंदू गायों को मारा करते थे और गोमांस खाया करते थे जो बौद्ध सूत्रों में दिए गए यज्ञ के ब्यौरों से साफ़ है.
अंबेडकर ने लिखा है, "कुतादंत सुत्त से एक रेखाचित्र तैयार किया जा सकता है जिसमें गौतम बुद्ध एक ब्राह्मण कुतादंत से जानवरों की बलि न देने की प्रार्थना करते हैं."
अंबेडकर ने बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय(111. .1-9) के उस अंश का हवाला भी दिया है जिसमें कौशल के राजा पसेंडी के यज्ञ का ब्यौरा मिलता है.
संयुक्त निकाय में लिखा है, "पांच सौ सांड, पांच सौ बछड़े और कई बछियों, बकरियों और भेड़ों को बलि के लिए खंभे की ओर ले जाया गया."
अंत में अंबेडकर लिखते हैं, "इस सुबूत के साथ कोई संदेह नहीं कर सकता कि एक समय ऐसा था जब हिंदू, जिनमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों थे, न सिर्फ़ मांस बल्कि गोमांस भी खाते थे."
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श्रीमान मोहन जी
Deleteआर्य बाहर से आये हैं यह सिदांत बदल गया हैं
हम पाश्चिमात्य विदवानो मानने वाले कुकुर हैं
अभी उन्होने नया सिदांत दिया हैं आर्य का मूल निवास भारत वर्ष ही है थोडा दिमाग लगाकर गूगूल में सर्च करो
It is matter of past.at present you kill human being because he is of other caste ,religion, culture and Faith. On the name of religion you kill innocent child ,women,weak person is it right? Is it religion? To help other without any lust is true religion.
ReplyDeleteIt is matter of past.at present you kill human being because he is of other caste ,religion, culture and Faith. On the name of religion you kill innocent child ,women,weak person is it right? Is it religion? To help other without any lust is true religion.
ReplyDeleteIt is matter of past.at present you kill human being because he is of other caste ,religion, culture and Faith. On the name of religion you kill innocent child ,women,weak person is it right? Is it religion? To help other without any lust is true religion.
ReplyDeleteAdami ko itna nahi gire....ki...? god ko bhi sharam ane lage ki Maine मुर्ख लोगो Ko janam Kyu diya...
ReplyDeleteAdami ko itna nahi gire....ki...? god ko bhi sharam ane lage ki Maine मुर्ख लोगो and dharmaheen Ko janam Kyu diya...
ReplyDeleteAre MadarChodo Rigved me aisa kuch nahi likha tum sab Sanatan(HINDU) dharm ko badnam kyo kar rahe ho....
ReplyDeleteअरे ..... किसी भी धर्म मे जीव हत्या करना नहीं लिखा ....अगर किसी गर्ंथ मे लिखा है तो गलत है...
ReplyDeleteअरे ..... किसी भी धर्म मे जीव हत्या करना नहीं लिखा ....अगर किसी गर्ंथ मे लिखा है तो गलत है...
ReplyDeleteयहाँ मैं टिप्पणियाँ नहीं देना चाहता हूँ सिर्फ श्रीमान आस्तिक जी का लेख पेस्ट कर रहा हु उत्तर इस प्रकार हैं वह पढ़ लो तो आपका संस्कृत ज्ञान किस प्रकार हैं उसपर मंथन कर ले
ReplyDeleteबाकि महोदय आप लोग भी कॉमेंट देने से पहले स्वामी दयानंद जी का भाष्य पढ़ ले
इस ब्लॉग मास्टर के लिये एक कुलीन शब्द हैं स्वर्णपात्र में नरोटि तो ब्लॉग मास्टर इस शब्द को ढूढ़ कर वापस कॉमेंट देना आपको इसी गूगूल संसार से एक अच्छी सी भेट पेस्ट कर देंगे
धन्यवाद
ॐ श्री महा गणेशाय नमः महाज्ञानी जी का लिखा श्लोक अशुद्ध है अनेक गलतियाँ हैं इनहोने लिखा है
"आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती सोमान पिवसित्व मेषा ||"
"पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||" (ऋग्वेद 10-28 -3 )
जबकि श्लोक यह है -
अद्रिणा ते मन्दिन इन्द्र तुयान्त्सुन्वन्ति सोमान्पिबसि त्वमेषाम ।
पचन्ति ते वृषभाँ अत्सी तेषां पृक्षेण यन्मधवनहूयमान : ।। (ऋग्वेद 10-28 -3 )
एक ही श्लोक मे अनेक गलतियाँ है जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है और इसका अर्थ है - ( ऋषि का कथन ) हे इन्द्र देव ! आपके लिए पाषाण खंडों पर शीघ्रतापूर्वक अभिषवित आनंदप्रद सोम को जब यजमान लोग तैयार करते हैं , एसे मे आप उनके द्वारा प्रदत्त सोमरस का पान करते हैं । हे एश्वर्य सम्पन्न इन्द्र देव ! जिस समय सत्कार-पूर्वक हविष्यन्नों से यज्ञ किया जाता है , उस समय साधक गण वृषभ ( शक्ति सम्पन्न हव्य ) को पकाते ( हविष्यान्न को यज्ञ मे अंगारों पर भूनने की क्रिया ) है और आप उनका सेवन करते हैं
यंहा यह भी नही भूलना चाहिए की एक राशी का नाम भी वृष है वंहा भी कोई 4 पैरों वाला जीव नही है ।हिंदुओं मे सभी देवताओं और उनके वाहनो के नाम गुणो के आधार पर रखे गए हैं ।
संस्कृत शब्दकोश से वृषभ के सभी अर्थ लिख रहा हूँ
वृषभ vRSabha m. ox
वृषभ vRSabha m. bull
वृषभ vRSabha adj. vigorous
वृषभ vRSabha adj. strong
वृषभ vRSabha adj. manly
वृषभ vRSabha adj. mighty
वृषभ vRSabha m. zodiacal sign Taurus
वृषभ vRSabha m. most excellent or eminent
वृषभ vRSabha m. bullock
वृषभ vRSabha m. Mucuna Pruriens
वृषभ vRSabha m. chief edit
वृषभ vRSabha m. of the 28th muhUrta
वृषभ vRSabha m. hollow or orifice of the ear
वृषभ vRSabha m. particular drug
वृषभ vRSabha m. lord or best among
अब सभी को विश्वाश हो जाएगा की में सही कह रहा हूँ या नही
इसके आगे तो विवेकानंद का भी ज्ञान संकुचित दिखता है मेरी माँ कहती थी उन्होने की मेरे गर्भ मे होने के समय विवेकानद की किताबें पढ़ी तो मुझे लगता है मेरे साथ बहुत बड़ा छल हो गया है इसकी जगह यदि किसी धर्म ग्रंथ और ऋषि मुनि की किताब पढ़ी जाती तो में आज और भी अधिक गुणवान और ज्ञानवान होता है मुझे बहुत दुख है मेरे साथ हुये इस छल का ,में एसे सभी मूर्खों का मुह बंद करके निश्चय ही इस कमी को पूरा करूंगा
ब्राह्मणो की जय हो अब्राह्मणो का नाश हो
ब्राह्मणो की जय हो अब्राह्मणो का नाश हो अर्थात में सभी को उस स्थान पर देखना चाहता हूँ ब्राह्मण का उद्देशया सुधार है न की विनाश यह तो अंतिम रास्ता है जो देवताओं के द्वारा किया जाता है
बाकि मंत्रो का भी अर्थ गूगूल संसार में चाहो तो पेस्ट कर देता हु और
ReplyDeleteबाकि सभी स्वर्ण पात्र में नरोटि यो को
गं गणपतये
अति उत्तम्
Deleteअगर यही बात है तो आप डॉ भीमराव अम्बेडकर से भी ज्ञानी है उनको भी संस्क्रत का नही था अगर आप उस समय होते तो शायद यह बहस का विषय ही नही होता
ReplyDeleteपहले पाणिनि अस्ताधायी पढ़ी जाय तब ज्ञान बात जाय ,,सत्वेय to यह है वेदों में मांस भक्षण नहीं है
Deleteअगर यही बात है तो आप डॉ भीमराव अम्बेडकर से भी ज्ञानी है उनको भी संस्क्रत का नही था अगर आप उस समय होते तो शायद यह बहस का विषय ही नही होता
ReplyDeleteअगर यही बात है तो आप डॉ भीमराव अम्बेडकर से भी ज्ञानी है उनको भी संस्क्रत का नही था अगर आप उस समय होते तो शायद यह बहस का विषय ही नही होता
ReplyDeleteविदेशी आकांताओं और लुटेरों के कुचक्र में फंसा भारत का बुद्धिजीवी जिसकी सनातन संस्कृति के प्रमाण सम्पूर्ण विश्व में मिल रहे हैं, आज वह वास्तविकता को जाने बिना अंग्रेजों द्वारा अपनी खोज को विश्वसनीय मानता है। आज आर्यों को बाहर का बतलाने वाले अब उन्हें भारत का बता रहे हैं, कल कहीं और का बताएंगे तो वही मान लेना क्योंकि तुम्हारे पास तो अक्ल है नहीं कि सारी खोजें आर्यों और उनके धर्मग्रंथों की ईर्द-गिर्द क्यों घूमती हैं? संस्कृत को तो आक्रमणकारियों द्वारा बहुत पहले नष्ट किया जा चुका है बाकि जो बचा है वह ऐसे अधर्मियों द्वारा हो जाएगा जो अपने पूर्वजोंं के सत्यापन के लिए बाहरी लोगों की ओर देखते हैं।
ReplyDeleteमहाराज पूर्ण और असली वेद तो पढ़ पाना ही नामुमकिन है ये कौन लोग हैं जो इसकी ब्याख्या करते है वो कहां से सीखे क्या सीखे उसमे खुद के मन की और स्वार्थ की बातें कितनी थी और कितनी बातें सत्य थी कौन जनता है इसलिए किसी धर्म की गलत तुलना करना महापाप है आये तो थे इंसान बनके और उस परमात्मा को खोजने की बजाय माया में अंधे होकर अज्ञान की अग्नि में खुद को झोंककर उस परमात्मा पर कीचड़ उछाल रहे हो जिसके लिए तुम एक मिट्टी मात्र हो जो अगर खिलौना बनाना जानता है तो उसे बापस मिट्टी बनाना भी जानता है
ReplyDeleteमेरी मुस्लिम भाइयो से अपील है की वो जाकर अपने धर्म की बातों पे गौर दें तुम इस्लाम पढ़ो चाहे क़ुरान क्या हम तुमसे ये पूछने आये की तुम्हारे नवी ने अपनी 9 साल की बेटी से संभोग किया तो तुम क्यों नही करते??
ReplyDeleteये महज एक दूसरे के धर्म को गाली देना है इस्लाम आया है मात्र 2000 साल पहले और हमारे धर्म में तो लाखो अरबो साल पहले तक की उत्पत्ति और फिर विनाश तक के बारे में लिखा है लेकिन पढ़े कौन ये हक़ीक़त है की तुम अपने धर्म के प्रति वफादार हो आपके हर एक मुस्लिम भाई ने यहां कमेन्ट में इस्लाम का समर्थन किया है लेकिन हमारे धर्म के कुछ लोग तुम्हारी इस बात पे समर्थन कर बैठे लेकिन सत्य कितनो ने जान ना चाहा किसी ने क्या पब्लिश कर दिया वो पढ़ लिया मान लिया जाओ पहले संस्कृत सीख कर उच्च कोटि की फिर असली बेद पढ़ो तब निरीक्षण करना दुसरो के प्रश्नों का तुम्हें कोई अधिकार नही किसी धर्म की बातों का विश्लेषण करने का अगर कभी तुमने उसको जाना ही नही।। हिन्दू धर्म पूर्ण रूप से जानवरों पर होने वाली हिंसा के विरुद्ध है गौ माता के तो अभी गुणों का ही पता नही तुम लोगों को
पहले आप भी अरबी सीखो। किसी भी धर्म पर टिप्पणी करना बिना उसके बारे में जानकारी किये गलत है।
DeleteRaam ne 6 saal ki Sita
DeleteSita ki choti bahen raam ke bhai ke shathye galat nahi hai
Suar ek esa janvar he jo bakri ki noiyat se aata aur isme darindagi bhi pai jati aur ye dusre janvar bhi khajata
ReplyDeleteIsi kaaran suar insaani khane ke liye thik nahi he
Gaay bakri bakra bhensa katra ye sab ghas patti khate he aur inme darindagi nahi pai jati aur ye dusre janvar ko nahi khate isi liye ye insaani khane ke liye sahi he
Insaan jo kuch bhi khata he uska asar uspar parta he yani insaan ek darinde janvar ko khayega to darindagi hi usme zahir hogi
Aur gaay bakra bhensa katra ye saant svabhav ke janvar he inko khane se insani jism par sirf bal dikhai deta darindagi nahi
I hope you're understand
और ज्यादा तैयारी से डिबेट करें
ReplyDeleteप्रामाणिक बात को स्वीकार करे चाहे किसी भी धर्म की हो।
और ज्यादा तैयारी से डिबेट करें
ReplyDeleteप्रामाणिक बात को स्वीकार करे चाहे किसी भी धर्म की हो।
भाई तब तो इस्लाम ही नही था । तब लोग अल्लाह का नाम ही नही सुने थे तब आज क्यों चिल्लाते हो अल्लाह अल्लाह
ReplyDeleteतुम्हारी बाते हम सिरे से खारिज करते हैं हवाला दीजिये तब मानेंगे।
ReplyDeleteहमने भी आज तक नह पूछा की ब्रह्म ने अपनी बेटी की सुन्दरता से आकर्षित होकर सरस्वती से विवाह क्यों किया।
इंद्र ने अहिल्या का बलात्कार किया।
द्रोपदी ने 5 मर्दो के साथ संभोग किया।
हमे इससे क्या लेना ऐसे धर्म का नाम भी लेना गुनाह है।
मेरे भाई अपनी कमियों को नजरअंदाज करके दुसरो में जो कमी खोजता है वो महामूर्ख होता है।
सुन बे ब्रम्हा अपनी बेटी से शादी नही किया
Deleteसरस्वती दॊ थे एक परा और एक अपरा
जिस्से विवाह किया वे विष्णु जी के बहन थी।
tumhari maa ka bosda katuo bhan ki chut tumhar
ReplyDeletealha dala hai
ReplyDeletego through..... www.onlineved.com
ReplyDeleteआपका अनुवाद ही गलत हे
ReplyDeleteवैदिक काल में गाय बड़े चाव से खाया जाता था और अतिथियों को भी परोसा जाता था. इसीलिए अतिथियों को गोधन अर्थात गाय के हत्यारे कहा जाने लगा.कमउम्र की बछिया पसंदीदा होती थी. धीरे धीरे पशुधन की संख्या अतिथि सत्कार और हवन बलि के कारण कम होने लगी.जिससे दूध धृत और इत्यादि की उपलब्धता कम होने लगी.इसीलिए ऋषियों को इसकी फिकर हुई और गौवध के खिलाफ श्लोक और मंत्र गढ़े गए.जैसे विलुप्ति के कगार पर खड़े जीवों के संरक्षण के लिए अभियान चलाया जाता है.
ReplyDeleteवेदों में इसीलिए गाय को मां और गाय को मारने वालों के सिर कलम करने जैसे फरमानी मंत्र बनाये गए.गाय को अघन्या घोषित किया गया.
बिल्कुल ठीक..
Deleteजितने भी संस्कृत श्लोकों का हिंदी अनुवाद किया गया है वह गलत है एक भी अनुवाद सही नहीं है यह कोई मूर्ख व्यक्ति वेद को बदनाम करने के उद्देश्य से मूर्खतापूर्ण कार्य किया है उसे संस्कृत यह हिंदी का भी ठीक से ज्ञान नहीं है
ReplyDeleteGood sir aise hi logo ne sab ka contract le Liya hai
Deleteये अनुवाद आपके महा ज्ञानियो ने किए है ऐसा है तो सही अनुवाद आप करदो
DeletePoora conversation baatayi na ki aadha adhura . Shaloka ke 2- 4 bar padhane se pasta lag Raha hai ki ye adhura hai.logo Ko bargalane ki koshish na kare.you are on society media galat message dekar logo Ko galat guide mat kare.request hai,jo his Dharam ka hai usse Apne Dharam ke bare Mai itni jaankar Rehti hai.trust on your religion.aur galat prachar par Shayan mat do
ReplyDeleteबैल अर्थात लता पता और सोमरस शराब नही होती है,अपने मतलब के लिए परिभाषा मत बदलो । सोमरस के बारे में जान ले फिर लिखे 🙏
ReplyDeleteDojakh me jayega yaad rakhna
ReplyDeleteJo tu kar raha hai na uska fal tune bo diya marte time pata lagega
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ReplyDeleteपहले दो जवाब मे बहुत सी टंकण त्रुटि थी इसलिए विलोपित करना पड़ा माफी _/\_
ReplyDeleteजितनी शिद्दत से आपने वेद की व्याख्या कर डाली थोड़ी शिद्दत से सही व्याख्या कर लेते | अंबेडकर ने कुछ लिखा आपने उसे उठाया मन माफिक अनुवाद किए और शुरू हो गए | बस एक विनती थी वेदिक काल मे एक शब्द उपयोग होता था गौ | काश आप इसका सही अर्थ बता देते | चलो ये नहीं कर पाओ तो ये बता दो की सूर्य के इतने नाम क्यों थे, आदित्य, विवस्वान,रवि मार्तंड,अर्क, भानु, सवित्र, भास्कर| एक ही नाम से काम चला लेना था ना |
अब थोड़ी अकल लगाओ और गौ यानि गाय ही नहीं पृथ्वी को भी गौ कहा गया है |
अगर मैं ये कहूँ की कोई युद्ध मे एक सैनिक दुश्मन सैनिक से हार जाए और मौत न मिले इस डर से वो इस्लाम इस्लाम चिल्लाए तो उससे वो मुसलमान नहीं हो जाता है | इस्लाम कबूल करने का अर्थ हौ मात्र समर्पण कबूल करना और उसक दूसरा अर्थ है अल्लाह के सामने समर्पण कबूल करना |
तो कोई आदमी ये बोले मैने इस्लाम कबूल किया है तो मे ये बोल दूँ की ये डरपोक है मौत के डर से हथियार बंद आदमी की गुलामी कबूल करके आया है तो उस आदमी के इस्लाम धर्म कबूने के अर्थ का सत्यानाश हो जाएगा ना |
बोलिए सही है न |
अब थोड़ी कुरान पर बात कर लेते है | ये काले नीले सफ़ेद लबादे मुस्लिम महिलाएं ओढ़ती है जिसको आप बुरखा या नकाब या हिजाब कहते हो इसका तो कोई उल्लेख नहीं है कुरान मे | कुरान मे तो हिजाब यानि आखों की शर्म होता है न की सर पर लबादे रंग बिरंगे ओड़ना |
जब आपके धर्म के लोग अपने आयतों की सही व्याख्या नहीं कर पाते हैं तो आप वेद की व्याखाया वो भी एक अल्प ज्ञान से उपजे लेख को संदर्भ मान कर कैसे कर लेते हो ?
पहले बहुत गहरे ज्ञान को प्राप्त करो फिर लिखो नहीं तो सामाजिक नफरत के अलावा कुछ नहीं करोगे और खुद को अल्लाह के सामने किस मूंह से ले जाओगे | दूसरों के धर्म की व्याख्या से पहले उसको सर्वांगीणता से समझो नहीं तो दुख आपको होगा अपनी मूर्खता का किसी और को नहीं |
जिन महान ज्ञानियों को ऊपर का कचरा लेख सच लगता है उनके लिए
ReplyDeletehttps://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-article/vedas-cow-115102000024_1.html
Had hai..... Ye dusra zakir nayak hai..... Ab ye bolega bhawishya puran me inke MOHD. ka naam bhi hai..... MOHD. ne bhi गऊँ ka कत्ल karne ko nh kaha..... Tariq Quran ke kis kalme me... Ya kon se shura me likha hai गऊँ का कत्ल करना..... Proof de sakta hai....
ReplyDeleteयह बहस का मुद्दा ही नहीं है। जब तक किसी बात की तह तक नहीं जाया जाएगा, तब तक ऊपरी बातों से कयास लगाने से क्या मतलब! वेदों में कही गई उस बात का सही अर्थ समक्षें, उसे पूरी तरह जानें तब कोई अपनी राय दें तो बेहतर रहेगा।
ReplyDeleteबुद्ध धर्म जैसे भारत मे विस्तार पाने लगा वैसेही धीरे धीरे ब्राम्हण लोगोंने गोमांस खाना बंद किया और गाय को ईश्वर का दर्जा दिया.मानव का पूर्वज तो मांसाहारीही था. वो बडी बात नही है.सिर्फ कौनसा प्राणी उपलब्ध है ,टेस्टी है,पाचक है इतना फर्क था.
ReplyDeleteमियां, आप कृपया मुझे स्वामी विवेकानंद जी का
ReplyDeleteद कम्पलीट वर्क आफ स्वामी विवेकानंद का pdf email करें।
email ID - debalsinha@yahoo.co.in
bhaiji swami vivekanand ne aisa koi translation nahi kiya yeh sab ved virodhi logo ka kaam hai
Deletetaarique bhai ji en saare slok ka arth galat nikaalaa gaya hai isme kisi devta yaa devi ke baare me yaa maas ke baare me koi baat nahi ho rahi yeh slok ka arth aisa nikaalaa jaise bina haath paer awaaj ke insaan
ReplyDeleteपहले पाणिनि अस्ताधायी पढ़ी जाय तब ज्ञान बात जाय ,,सत्वेय to यह है वेदों में मांस भक्षण नहीं है
ReplyDeleteपहले पाणिनि अस्ताधायी व्याकरण 10 साल तक पढ़े तब समाज में ज्ञान बाटा जाय ,,सत्य तो यह है वेदों में मांस भक्षण नहीं है
ReplyDeletePuri Dunuya me hr burai ki suruvaat India m hi q huyi h. ek bhi yaise crime ni h jiska itihas bharat m ni h. Hm duniya ko visvaguru kahte h lekin Kis baat ka gyan diya. Ridved k mantro m virodh ho sakta h qki vaha alag alag muni h. Kuchh ne meat ko sahi mana kuchh ne glt. Vaise sabko pta honi chahiye ki Jb koi bridge bnta tha to bali di jaati thi ye kisne btaya logo ko? us time kevel muni pde the. Angrejo se pahle mandiro me bali di jaati thi. Bakre ki bali dena prachin kaal se juda h. Ved kya batata h ye jaruri ni h lekin us time k mahapurus jo inko likhe usne kabhi insaan ko insaan ni mana ye sab jante h isliye Ved me yaisa likha ho sakta h. Vaise bhi ved puran ki kaun se baat sahi hoti h. Brahma ne duniya banaya h sabse bda jhuth jise aaj bhi logo ko dara rhe h
ReplyDeletekya? manusmriti pade ho vastav me tab to yebhi pata hona chahiye ki 4 varn jo vedon ke anusar hai jiski charcha manusmriti ki gayi hai jisko khud prmatma yani ishwar ne banaya hai ex iswar ke prtek ang se manusya ka srijan hota hai mukh se bhramn,bhuja se kshtriya,udar yani pet se vaisya, paad yani pair se shudra
ReplyDeletejinke karm ke adhar pe hi bada chota bola gaya hai.isi ksrn shudra ko chota aur bhraman ko bada bataya gaya hai
इसके व्याकरण को ठीक से पढ़ो क्योंकि ये पाणिनि के पहले की संस्कृत है
ReplyDeleteयहाँ मंत्र ही सही नहीं लिखा हैं तो अर्थ कहा सही होगा, अब सबको पहले असली श्लोक बताइये अर्थ क्या है ये हम बता देंगे
ReplyDeleteBhaiya gay bhains ye sab baad wali baat hai sabse pahle us maa ki dekh bhal karo na jo tumhe janam diya hai
ReplyDeleteAur us bibi ki jise tum shadi kar late ho
मादरचोद कटवा तेरी अम्मी बहन को एक खटिया मे चोद कर तेरे ताला चाबी के पास भेज दूंगा
ReplyDeleteमदरचोद गलत बात को लिखता है लोगों को गलत चीज सोचने के लिए मजबूर करता है भोसडीके पड़ोसी के मेहनत का पैदाइशी कटवा
ये पढ मादरचोद तेरा अम्मी और तेरे बहन को चोद चोड कर लिखा हुआ एक एक लिखा हुआ सत्य है
पढ़ सकता है तो पढ़ भोसडीके कोई कुछ नहीं बोलता बोलके तुम मादरचोदों की अम्मी बहन की चूत फड़फड़ाती जाती है ना तो ले पढ़ रे गांडू
उ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् । उ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ukṣṇo hi me pañcadaśa sākam pacanti viṁśatim | utāham admi pīva id ubhā kukṣī pṛṇanti me viśvasmād indra uttaraḥ ||
पद पाठ
उ॒क्ष्णः । हि । मे॒ । पञ्च॑ऽदश । सा॒कम् । पच॑न्ति । विं॒श॒तिम् । उ॒त । अ॒हम् । अ॒द्मि॒ । पीवः॑ । इत् । उ॒भा । कु॒क्षी इति॑ । पृ॒ण॒न्ति॒ । मे॒ । विश्व॑स्मात् । इन्द्रः॑ । उत्ऽत॑रः ॥ १०.८६.१४
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:86» मन्त्र:14 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:14
ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः -
(वृषाकपायि रेवति) हे वृषाकपि-सूर्य की पत्नी रेवती तारा नक्षत्र ! (सुपुत्रे-आत् सुस्नुषे) अच्छे पुत्रोंवाली तथा अच्छी सुपुत्रवधू (ते-उक्षणः) तेरे वीर्यसेचक सूर्य आदियों को (प्रियं काचित्करं हविः) प्रिय सुखकर हवि-ग्रहण करने योग्य भेंट को (इन्द्रः-घसत्) उत्तरध्रुव ग्रहण कर लेता है-मैं उत्तर ध्रुव खगोलरूप पार्श्व में धारण कर लेता हूँ, तू चिन्ता मत कर (मे हि पञ्चदश साकं विंशतिम्) मेरे लिये ही पन्द्रह और साथ बीस अर्थात् पैंतीस (उक्ष्णः पचन्ति) ग्रहों को प्रकृतिक नियम सम्पन्न करते हैं (उत-अहम्-अद्मि) हाँ, मैं उन्हें खगोल में ग्रहण करता हूँ (पीवः) इसलिये मैं प्रवृद्ध हो गया हूँ (मे-उभा कुक्षी-इत् पृणन्ति) मेरे दोनों पार्श्व अर्थात् उत्तर गोलार्ध दक्षिण गोलार्धों को उन ग्रह-उपग्रहों से प्राकृतिक नियम भर देते हैं ॥१३-१४॥
भावार्थभाषाः -
आकाश में जिन ग्रहों-उपग्रहों की गति नष्ट होती देखी जाती है, वे पैंतीस हैं। आरम्भ सृष्टि में सारे ग्रह-उपग्रह रेवती तारा के अन्तिम भाग पर अवलम्बित थे, वे ईश्वरीय नियम से गति करने लगे, रेवती तारे से पृथक् होते चले गये। विश्व के उत्तर गोलार्ध और दक्षिण गोलार्ध में फैल गये, यह स्थिति सृष्टि के उत्पत्तिकाल की वेद में वर्णित है ॥१३-१४॥
आप लोगों को मूरख बना रहे है एक तो आपका मन्त्र ही गलत है जो लिखे है अर्थ तो गलत होंगे ही।जो मन्त्र संख्या आप बता रहे उस मन्त्र को हटाये नहीं तो कानूनी कारवाही हो सकती है प्रमाण है यह मन्त्र हटाये।
ReplyDeleteऋग्वेद के कुछ मन्त्र के फोटो देखने की कृपा करें
Delete👇👇👇👇👇
https://drive.google.com/file/d/1m_1yE4HgtmUo2Rh0NGVDlJ2nnmLGpt4M/view?usp=drivesdk
Ye sab fake he... Mene book me sab compare kiya..esa ku6 he hi nahi.. mc sale
ReplyDeleteवेदों के प्रमाण………
ReplyDelete१. ऋग्वेद १०-८६-१४ "उक्षणों ही में पंचदंश साकं पंचंती: विश्तिम् | उताहंमदिंम् पीव इदुभा कुक्षी प्रणन्ती में विश्व्स्मान्दिन्द्र ||"
(इन्द्र देव का कथन, 'यज्ञ करनेवाले यजमान मेरे लिए १५-२० बैल मारकर पकाते हैं, वह खाकर में ताकतवर हो जाता हूँ, वे मेरा पेट मद्य से भी भर देते हैं’)
२. ऋग्वेद १०-८९-१४ "मित्र कूवो यक्षसने न् गाव: पृथिव्या | आपृगामृया शयंते ||"
(हे इन्द्र देव, जिस प्रकार गोवध स्थानपर गायोंको मारा जाता हैं उसीप्रकार आप के इस अस्त्र से मित्रद्वेषी राक्षस मर कर चिरनिद्रित हो जाने दो)
३. ऋग्वेद १०-२८-३ "आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती | सोमान पिवसित्व मेषा || "पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां | पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||"
(हे इन्द्र देव, अत्रा कि कामनासे जिस वक्त आप के लिए हवन किया जाता हैं, उस वक्त यजमान पत्थरों पे जल्द से जल्द सोमरस तैयार करते हैं वह आप प्राशन करते हो, यजमान बैल का मांस पकाते हैं वो आप खाते हैं)
४. ऋग्वेद १०-८९-१४ "कर्हि स्वित् सा ते इन्द्र चेत्या असत् अघस्य यत् भिनदः रक्षः आईषत् मित्र-क्रुवः यत् शसने न गावः पृथिव्याः आपृक् अमुया शयन्ते ॥“
(हे इन्द्र देव, आपने जो अस्त्र और बाण फेंककर राक्षसों कि कत्तल कि हैं, उनको कहा फेके? जिस प्रकार गोवध स्थल पर ही गाय कि कत्तल कि जाती हैं, इसप्रकार आपके इस अस्त्र से घायल हुए मित्रद्वेषी राक्षसों को पृथ्वीपर चिरनिद्रिस्त हो जाने दो)
५. ऋग्वेद १०-७९-६ "किं देवेषु त्यजः एनः चकर्थ अग्ने पृच्चामि नु त्वां अविद्वान् अक्रीळन् क्रीळन् हरिः अत्तवे अदन् वि पर्व-शः चकर्त गाम्-इव असिः ॥"
(जिसप्रकार तलवार गाय के टुकड़े करती हैं)
६. ऋग्वेद १०-९१-१४ "यस्मिन् अश्वासः ऋषभासः उक्षणः वशाः मेषाः अव-सृष्टासः आहुताः कीलाल-पे सोम-पृष्ठाय वेधसे हृदा मतिं जनये चारुं अग्नये ॥"
(जिस में घोड़ा, बैल, वशा गाय, बकरा इ. का हवन किया गया उस अग्निपर थोड़ा मद्य छिड़ककर मै मन से उनका स्तवन करता हूँ)
७. ऋग्वेद १०/१६९/३ "याः देवेषु तन्वं ऐरयन्त यासां सोमः विश्वा रूपाणि वेद ताः अस्मभ्यं पयसा पिन्वमानाः प्रजावतीः इन्द्र गो--स्थे रिरीहि ॥"
(जो गायें देवो के यज्ञ के लिए खुद को अर्पण कर देते हैं, जो गायें आहुति सोम जानती हैं, उन्ह गायों को हे इंद्र देव, दूध से परिपूर्ण और संतती युक्त बनाकर हमारे लिए गौशाला में भेज दो)
८. ऋग्वेद ६-१७-११ "वर्धान् यं विश्वे मरुतः सऽजोषाः पचत् छतं महिषान् इन्द्र तुभ्यं । पूषा विष्णुः त्रीणि सरांसि धावन् वृत्रऽहनं मदिरं अंशुं अस्मै ॥"
(हे इंद्र देव, सम्पूर्ण मरुत गण सम्मिलित होकर स्प्रेताद्वारा आपको वचनबद्ध कराते हैं और आपके वजह से पूषा और विष्णू देव शेकडों भैसों का पाक बनाते हैं, उसीप्रकार तीन यात्राएं पूरी करने के लिए मादक और वृत्र नाशक ऐसा सोम उसमे डाल देते हैं)
९. ऋग्वेद १०-८६-१३ "वृषाकपायि रेवति सु-पुत्रे आत् ओं इति सु-स्नुषे घसत् ते इन्द्रः उक्षणः प्रियं काचित्-करं हविः वि श्वस्मात् इन्द्रः उत्-तरः ॥"
(हे वृषकपी पत्नी, आप धन से पूर्ण, गुणों से पूर्ण और सुन्दर सुपुत्रवती हैं. आपके बैलों का इंद्र देव भक्षण करें, आपकी प्यारी और सुखकारक चीजों का बलि का आप भक्षण करें, इन्द्रे देव सर्वश्रेष्ठ हैं)
१०. ऋग्वेद ९-७९-४ "दिवि ते नाभा परमः यः आददे पृथिव्याः ते रुरुहुः सानवि क्षिपः अद्रयः त्वा बप्सति गोः अधि त्वचि अप् सु त्वा हस्तैः दुदुहुः मनीषिणः ॥"
ReplyDelete(हे शोण, आपका परमअंश धुलोकात हैं, वहा से आपकी अंश पृथ्वीपर पर्वतोंपे गिर गये और उनके वृक्ष बन गये. बुद्धिमान लोग आपको हातों से चमड़ों के ऊपर पत्थर से रगड़ते हैं और पानी से धो डालते हैं)
११. ऋग्वेद ८-५-३८ "यः । मे । हिरण्यऽसन्दृशः । दश । राज्ञः । अमंहत । अधःऽपदाः । इत् । चैद्यस्य । कृष्टयः । चर्मऽम्नाः । अभितः । जनाः ॥"
(उन्ह वीर पुत्र नायकों कि संतती पृथ्वीपर जीवित हैं, मदद करनेवाले सारे उनके चारों दिशाए में हैं, वो चमड़े का इस्तेमाल करनेवाले हैं)
१२. ऋग्वेद ९-१० "अव्यः वारेभिः पवते सोमः गव्ये अधि त्वचि कनिक्रदत् वृषा हरिः इन्द्रस्य अभि एति निः कृतम् "
(सोमलता बेल का रस गाय के चमडिपर छानते हैं, पराक्रमी आदमी सोम शब्द का उच्चारण करके इंद्रपदपर विराजमान होता है)
१३. ऋग्वेद १०-१६-७ "अग्नेः वर्म परि गोभिः व्ययस्व सं प्र ऊणुष्व पीवसा मेदसा च न इत् त्वा धृष्णुः हरसा जर्हृषाणः दधृक् वि-धक्ष्यन् परि-अङ्खयाते ॥"
(हे मृतात्मा, तू धर्म के साथ अग्नि कि ज्वाला का कवच धारण कर. तू वपा और मांस से आच्छादित हो)
१४. ऋग्वेद १-१६२-३ "एष छागः पुरः अश्वेन वाजिना पूष्णः भागः नीयते विश्वऽदेव्यः ॥ अभिऽप्रियं यत् पुरोळाशं अर्वता त्वष्टा इत् एनं सौश्रवसाय जिन्वति ॥"
(सभी देवताओं को काम आनेवाला बकरा, जगत्पोषक का ही अंश हैं, उसको शीघ्रगामी घोड़े के सामने लाया जाता हैं, इसलिए देवताओं के उत्कृष्ट भोजन के लिए घोड़े के साथ बकरे का मांस भी पकाना चाहिए)
१५. ऋग्वेद १-१६२-९ "यत् अश्वस्य क्रविषः मक्षिका आश यत् वा स्वरौ स्वऽधितौ रिप्तं अस्ति ॥ यत् हस्तयोः शमितुः यत् नखेषु सर्वा ता ते अपि देवेषु अस्तु ॥"
(घोड़ों का जो कच्चा मांस मक्खियां खाती हैं, काटने या साफ़ करते समय जो हत्यार को लगता हैं, या काटनेवालों के हात और नाख़ून से लगता हैं वो सब देवों के पास जाने दो)
१६. ऋग्वेद १-१६२-१२ “ये वाजिनं परिऽपश्यंति पक्वं ये ईं आहुः सुरभिः निः हर इति ॥ ये च अर्वतः मांसऽभिक्षां उपऽआसत उतो इति तेषां अभिऽगूर्तिः न इन्वतु ॥”
(हे घोड़ों, अग्नि में पकते वक्त तुम्हारे शरीर से जो रस निकलता हैं और उसका जो भाग हत्यार को चिपकके रहता हैं और मिट्टीमे गिर जाता हैं वो घास में मिश्रित ना हो जाए. देवता उसको खाने कि इच्छा कर रहे हैं, बलि का सारा भाग उनको ही मिले)
१७. ऋग्वेद १-१६-२ "इमाः धानाः घृतऽस्नुवः हरी इति इह उप वक्षतः । इंद्रं सुखऽतमे रथे ॥"
(घोड़ों को पकाते वक्त सारे सभी दिशाओं से देख रहे हैं, 'अच्छा सुगंध आ रहा हैं, देवों को अर्पण कीजिये' ऐसा जो कह रहे हैं, जो मांस भिक्षा कि कामना रखते हैं और वो मिलने के लिए उधर बैठे हुए हैं, उनका भाग भी हमें ही मिले).
१८. यजुर्वेद ३५-२० "वह वपां जातवेदः पितृभ्यो यत्रैनान्वेत्थ निहितान्पराके । मेदसः कुल्याऽ उप तान्त्स्रवन्तु सत्याऽ एषामाशिषः सं नमन्ताँ स्वाहा ॥"
(पितरों के लिए आप ख़ास गाय का चमड़ा लेकर जाओ, उस ख़ास चमड़ी से निकलनेवाली वपा का प्रवाह पितरों कि तरफ बहता जाये और उन पितरों के लिए दान करने वालों कि सारी कामनाएं पूरी हो जाये).
१९. अथर्ववेद १४-२-२२, "यं बल्बजंन्यस्यथ चर्म चोपस्तृणीथन। तदा रोहतु सुप्रजा या कन्यासs विन्दतेपतिम् ॥"
(आपके द्वारा रखे गए वल्वजा पर और पति को प्राप्त किये हुए कन्या को चमड़ी के बिस्तर पर बिठाना चाहिए।)
भाषांतर / अनुवाद (डा. एस. एल. सागर).
संदर्भ : हिंदूंनी केलेले गोमांसभक्षण, (हिन्दुओं द्वारा गोमांसभक्षण) ले. डा. एस. एल. सागर, प्रकाशक सुगावा प्रकाशन, पुणे.
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ReplyDeleteउ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् ।
उ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
॥ ऋग्वेद १०/८६/१४ ॥
दश प्राण तथा पन्च तत्त्वको पन्ध्र पदार्थ निर्मित (पञ्च॑दश) मेरो परमेश्वर द्वारा निर्मित (मे॒) शरीरको सुखको प्रदायक (उ॒क्ष्ण:) बिस अङ्गको (विंश॒तिम्) सहयोगले (सा॒कम् हि) अन्तर संयोजन तथा सिंक्रोनाइजेसन गर्ने (पच॑न्ति - पाक शास्त्रमा पकाउने भने जस्तै) र (उ॒त) मेरो प्रदत्त शरीरको (मे॒) दुवै पक्षलाई (उभाकुक्षी) पूर्णता गरिदिन्छ (पृ॑णन्ति)। मेरो (अहम्) प्रलयको समयमा मलाइ सर्वदा सुदृढ (पीव॒ इत्) गर्नको लागि म भित्र (अदिम) परमेश्वर भगवान् प्रभु (ईन्द्र:) उत्कृष्ट सूक्ष्म पदार्थको रूपमा अवस्थित हुनुहुन्छ (विश्वस्मात्)।
Constructed from ten pranas and five elements, totaling fifteen substances (पञ्च॑दश), my God (मे॒)—the bestower of bodily joy (उ॒क्ष्ण:)—skillfully assembles them with the assistance of (सा॒कम् हि) twenty organs (विंश॒तिम् - twenty elements), intermingling and synchronizing (पच॑न्ति - in a manner analogous to the precision of culinary science in extracting essence through perfect cooking) perfectly. Furthermore, they (उ॒त) complete (पृ॑णन्ति) both sides (उभाकुक्षी) of my bestowed body (मे॒). The eternal God (अदिम), Lord Prabhu (ईन्द्र:), resides within me (विश्वस्मात्), perpetually empowering me, especially in times of disharmony (Pralaya - पीव॒ इत्).
(अथर्ववेदाचार्य नारायण घिमिरे।)
(Narayan Ghimire, PhD in Atharvaveda)