जिलानी करना चाहता था बाबरी का सौदा
By एस ए अस्थाना 30/09/2010 14:57:00
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जिलानी करना चाहता था बाबरी का सौदा
बाबरी विध्वंस से दो दिन पहले 4 दिसंबर 1992. स्थान-कच्चा हाता, लखनऊ, जफरयाब जिलानी का आवास. एक तरफ लाखों कारसेवक श्री राम जन्मभूमि पर निर्णायक लड़ाई लड़नें के लिए अयोध्या में एकत्रित हो रहा था, तो दूसरी तरफ देश के करोड़ो मुसलमानों के दिलोदिमाग में विस्फोटक आक्रोश मचल रहा था। इन सबसे बेखबर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जनाब जफरयाब जिलानी लखनऊ के कच्चाहाता स्थित अपने मकान में इस बात को लेकर गमज़दा हो रहे थे कि हमारे उस पत्र पर अशोक सिंघल की क्या प्रतिक्रिया होगी जिसे हमनें अभी-अभी अपने विशेष व्यक्ति के हाथों अशोक सिंघल के पास अयोध्या में भेजी है- देखें खत का मजमून....
आपसे बहुत जरुरी बात करनी थी चूंकि आप मिल नही पा रहे हैं जिसकी वजह से बात नही हो पा रही है। पता चला है कि आप इस वक्त अयोध्या में है इसलिए अपने आदमी के हाथ यह खत भेज रहे हैं। खास बात यह है कि आपसे 'जो बात हुई थी उसकी खबर किसी तरह से हमारे कुछ साथियों को लग गई है।' इसलिए इस वक्त वह काम किसी तरह रुकवा लो जो 'पहले तय' हुआ था, वरना हमारी बहुत बदनामी हो जाएगी। खबरों से पता चल रहा है कि कारसेवक काफी तादात में पहुँच रहे हैं जिन्हें अब रोकने का काम आप का है, हमारी इज्जत आपके हाथों में है। हम आप पर भरोसा कर रहे हैं। बाकी बातें मिलने पर होंगी।’’ आपका- ज़फरयाब जिलानी
1992 में दिसंबर का वह महीना जिन्हें याद होगा उन्हें उस सर्दी की सिहरन आज भी महसूस हो रही थी. एक तरफ पूरा देश, पूरा प्रशासन, राज्य और केन्द्र सरकार के पसीने छूट रहे थे, फिर ठीक उसी वक्त रामजन्मभूमि आंदोलन और बाबरी एक्शन कमेटी के रहनुमा इतने इत्मीनान से किस सौदे को बचाने की बातचीत कर रहे थे? उस वक्त हिन्दुओं और मुसलमानों को सिंहल और जिलानी अपने अपने रहनुमा नजर आ रहे हों लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों ही नेता अपनी अपनी कौमों के साथ धोखा कर रहे थे. जफरयाब जिलानी की दो चिट्ठियों को देखकर किसी को भी अंदाज लग सकता है कि उस वक्त विश्व हिन्दू परिषद किसी भी तरीके से रामजन्मभूमि पर अपना कब्जा चाह रही थी संभवत: उसने जफयरयाब जिलानी से "डील" किया. हालांकि जिलानी की ही चिट्ठी से यह भी पता चलता है कि विश्व हिन्दू परिषद के कुछ और नेता जिलानी के साथ भी धोखाधड़ी का खेल खेल रहे थे. जफरयाब जिलानी को जो कुछ "देने" का आश्वासन दिया गया था उसके बदले में जिलानी बाबरी एक्शन कमेटी से बाबरी मस्जिद पर दावा छोड़ने का दबाव बनाते और अपना केस कमजोर करते. लेकिन विश्व हिन्दू परिषद के नेता इसलिए चूक गये क्योंकि वे इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ भी लेना चाहते थे. जन ज्वार ने हिन्दुओं और मुसलमानों के सरगनाओं दोनों को शर्मसार कर दिया.
सांप्रदायिकता की राजनीति करनेवाले लोगों की असलियत क्या होती है, वह इस पूरे मामले में जफरयाब जिलानी को देखकर समझा जा सकता है. एक ओर वे अशोक सिंहल से बाबरी का सौदा कर रहे थे और सौदे पर खलल पड़ता देख अशोक सिंहल को कहते हैं कि कारसेवकों को रोकें, नहीं तो वे बदनाम हो जाएंगे तो दूसरी ओर जब छह दिसंबर को बाबरी गिरा दी जाती है तो 10 दिसंबर को वे संयुक्त राष्ट्र संघ को एक तार भेजते हैं जिसमें कहते हैं कि भारत में मुसलमानों का कत्लेआम किया जा रहा है. साक्ष्यों के अनुसार-जिस समय पूरा देश दिसम्बर 1992 के पहले हप्ते में साम्प्रदायिकता की आग में पूरी तरह से तप रहा था उस समय दोनों ही सम्प्रदायों के कथित मठाधीश बाबरी मस्जिद के नाम पर सौदेबाजी का घिनौना खेल-खेल रहे थे। दोनों ही कथित धर्मध्वजा वाहकों के बीच लेन-देन का खेल कैसे खेला गया यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि विवादित ढ़ॉचे के ध्वस्त होनें के दिन (06 दिसम्बर-1992) से ठीक दो दिन पहले ही मुस्लिमों के कथित पुरोधा जफरयाब जिलानी नें 04 दिसम्बर 1992 को अशोक सिघल (जो उस समय अयोध्या में मौजूद थे) के नाम एक खत लिख कर अपने विशेष पत्रवाहक के हाथों भेजा जिसमें स्पष्ट रुप से लिखा गया है कि ‘‘आप मिल नही पा रहे है, जिसकी वजह से बात नही हो पा रही है। पता चला है कि आप इस वक्त अयोध्या में हैं। खास बात यह है कि आपसे जों बात हुई थी उसकी खबर किसी तरह से हमारे कुछ साथियों को लग गयी है। इसलिए इस वक्त वह काम किसी तरह रूकवा लो जो पहले तय हुआ था, वरना हमारी बहुत बदनामी हो जाएगी। खबरों से पता चल रहा है कि कारसेवक काफी तादात में पहुंच रहे है जिन्हें अब रोकनें का काम आपका है, हमारी इज्जत आपके हाथों में है। हम आप पर भरोसा कर रहे है। शेष बातें मिलने पर होंगी।’’ अब जरा अपने दिमाग पर जोर डालिये और याद करिए कि आखिर क्या कारण था कि अशोक सिंहल कारसेवकों से उग्र न होने की अपील कर रहे थे? क्या 6 दिसम्बर को अयोध्या में कुछ कर गुजरने के लिए कटिबद्ध उग्र कारसेवकों को रोकने का काम अशोक सिंघल जिलानी के इसी पत्र के आ जाने के दबाव में कर रहे थे?
अब बात उस "बात" की जिसका हवाला जिलानी दे रहे हैं. बाबरी मस्जिद को बचाने की जंग लड़नेवाले अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम का अस्तित्व स्वीकार न करनेवाले जिलानी का भला रामनाम के किसी भवन में क्या दिलचस्पी हो सकती है? अशोक सिंहल ने लखनऊ के मॉडल हाउस स्थित रामभवन को आखिर जिलानी को क्यों दे दिया था? चाहे जिन भी कारणों से अशोक सिंघल ने ही जिलानी को दिया हो, जिलानी को मिला ‘‘राम भवन’’ उन दिनों मुस्लिम राजनीति में काफी चर्चा का विषय बना था। बताया जाता है कि मॉडल हाउस का यह ‘‘राम भवन’’ मकान हिन्दू धर्म के कथित ठेकेदार एवम् विश्व हिन्दू परिषद् के महासचिव अशोक सिंघल ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फरयाब जिलानी को दोस्ती नें 'उपहार' स्वरूप प्रदान किया है। इस मकान ‘‘राम भवन’’ के संदर्भ में चर्चा यह है कि इसके पूर्व के मालिक ‘‘जोधा राम’’ से मकान का सौदा विश्व हिन्दू परिषद् के महासचिव अशोक सिंघल ने किया, फिर इस मकान को सिंघल ने बतौर उपहार जिलानी को देने की पेशकश की, जिस पर जिलानी ने यह कह कर आपत्ति की कि यदि देना ही है तो उपहार स्वरूप न देकर ‘‘रजिस्ट्री’’ की जाय जिस पर संभवतः अशोक सिंघल को झुकना पड़ा था। अपने पत्र में जिलानी ने लिखा है- "मैंने आपको पहले ही कह दिया है कि लेन-देन किस प्रकार से होगा. इसे गिफ्ट के रूप में नहीं किया जाएगा."
यहॉ यह काबिले गौर है कि विश्व हिन्दू परिषद् के अशोक सिंघल व बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी के संयोजक ज़फरयाब जिलानी के बीच लेन-देन का यह वार्तालाप ‘‘गुप्तपत्र’’ के माध्यम से ही होता रहा। बावरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी के संयोजक द्वारा अशोक सिंघल को लिखे गए पत्र से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि अपने-अपने धर्म के दोनों कथित ठेकेदारों के कुछ बीच लेन-देन की राजनीति जरूर चलती रही है। क्योंकि सिंघल को लिखे गए पत्र में जिलानी ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि ‘‘हमारे बीच में जो लेन-देन हो वह उपहार स्वरूप न होकर वह विधिवत् बिक्री के रूप में दर्शाया जाये।" पत्र में जिलानी ने सिंघल के उन प्रश्नों का उत्तर भी दिया है, जिनका जवाब सिंघल ने अपने पत्रों के माध्यम से मांगा हैं, जिलानी ने उन प्रश्नों का भी उत्तर दिया है जो सिंघल ने कल्याण सिंह मंत्रिमण्डल के उर्जा एवम नगर विकास मंत्री लाल जी टंडन से मौखिक रूप से जिलानी तक पहुचाया था। पत्र में बाबरी एक्शन कमेटी के सदस्यों के विषय में जिलानी ने अशोक सिंघल को कुछ इन शब्दों में आश्वस्त किया है ‘‘अब्दुल मन्नान को तो हम किसी न किसी तरह समझौते के लिए मना लेंगे, रही बात मौलाना मुजफ्फर हुसैन किछौछवी की तो किछौछवी को मुसलमान अपना नेता मानता ही नही जिससे उनसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है, हॉ आज़म खॉ की भावुकता पर विश्वास नहीं किया जा सकता। फिर भी उन्हें समझाने का क्रम चल रहा है।" इस पत्र के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया कि शुरू से ही दोनों कथित धार्मिक नेताओं में मित्रवत् एवं लेन-देन का व्यवहार चल रहा था। अगर ऐसा नहीं था तो जिलानी अपनी एक और चिट्ठी में अशोक सिंहल को भला क्यों लिख रहे हैं कि "मैंने अपना काम कर दिया है. और आगे भी हमारे आपके बीच जो तय हुआ है उसी के अनुसार काम करेंगे."
यहां यह जान लेना आवश्यक है कि- बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फरयाब जिलानी वकालत करते है। 1986 में ऐक्शन कमेटी के गठन से पूर्व मुसलमानों के इस कथित धर्म के बहुरुएिपए की आर्थिक स्थित कुछ विशेष अच्छी नहीं थी। पूर्व में जिलानी से जुड़े कुछ लोगों के अनुसार 86 से पूर्व जिलानी के पास 51- कच्चा हाता, अमीनाबाद, लखनऊ का ही एक मकान था जहॉ इस घटना तक जिलानी रहते थे। पर ऐक्शन कमेटी का गठन होने के बाद जिलानी के पास अकूत सम्पत्तियों की भरमार हो गई है। जिलानी से जब यह पूछा गया की इन सम्पतियों का रहस्य क्या है तो जिलानी के अनुसार मैंने हाउसिंग बोर्ड से एक मकान अपनी धर्म पत्नी श्रीमती अज़राज़फर के नाम ए-835इन्दिरा नगर में लिया था, जिसे भी बाद में बेंच कर एक दूसरा मकान ले लिया। उस समय जिलानी की अकूत अचल सम्पत्तियों के रूप में लखनऊ-फैजाबाद मार्ग पर स्थित चिनहट का वह बाग भी काफी चर्चित रहा है जिसके सन्दर्भ में कहा जाता है कि ज़फरयाब जिलानी के भाई कमरयाब जिलानी ने ख्याति प्राप्त टुबैकों मर्चैन्ट अहमद हुसैन-दिलदार हुसैन से करीब 85 लाख रूपये में तीन चार वर्ष पूर्व खरीदा था।
इस समूचे प्रकरण पर जब जिलानी द्वारा अशोक सिंघल को लिखे गए पत्र की असलियत के लिए पूछा गया तो उनका जवाब यही था कि उनका लेटरपैड और उनके हस्ताक्षर है तो असली लेकिन पत्र गलत है। जब उनसे यह कहा गया कि जब आप स्वयं इस पत्र के लेटरपैड एवं हस्ताक्षर को सही मान रहे है तो यह गलत कैसे हो गया इस पर जनाब ज़फरयाब जिलानी का कहना था हमारे हस्ताक्षर को किसी ने कॉपी करके इस लेटरपैड पर लगा कर हमें बदनाम करने का प्रयास किया है। हमारे द्वारा जब यह कहा गया कि इस प्रकरण पर आपका भी पक्ष प्रस्तुत करते हुए खबर को लिखा जायेगा तो जिलानी साहब तैश में आकर वह फाइल दिखाने लगे जो वे अपने साथ लाये थे और धमकी देने के अंदाज में कहने लगे कि आपने अगर इस खबर को लिखा तो मैं आप पर भी मानहानी का मुकदमा दायर कर दूॅगा। क्योंकि इसी खबर पर हमने लखनऊ से एक निकलने वाले अखबार एवं बनारस से निकलने वाले एक अखबार पर मानहानी का मुकदमा दायर कर रखा था।
दो दिन बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट का लखनऊ बेंच अपना फैसला सुनाने जा रहा कि जमीन पर मालिकाना हक किसका होगा. अयोध्या से लेकर देवबंद तक एक ही आवाज सुनाई दे रही है कि अदालत का जो फैसला होगा वह मान्य होगा. जिसे स्वीकार नहीं होगा वह ऊंची अदालत का दरवाजा खटखटाएगा. अदालत जो भी फैसला दे, लेकिन जनता की अदालत का फैसला क्या होगा? अगर हिन्दू और मुसलमानों के रहनुमाओं ने देश के भावनाओं को भड़कानेवाले सबसे विवादास्पद मुद्दे को अपनी किसी डील का विषय बना दिया था तो क्या इसलिए कि वे अमन चैन चाहते थे? या फिर देश को सांप्रदायिक आग में झोंककर अपनी राजनीतिक और आर्थिक मजबूती सुनिश्चित कर रहे थे. बाबरी विध्वंस के बाद देश दुनिया में जितनी लाशें गिरी, जितने घर उजड़े, दिलों में जितनी दूरियां बढ़ीं क्या उसकी भरपाई कभी की जा सकेगी? या फिर जो लोग बाबरी को सांप्रदायिक उन्माद का प्रतीक बनाने में कामयाब रहे उन सियासतदानों को हम सिर्फ यह कहकर माफ कर देंगे कि-
‘‘कुछ भी कहो इन पर असर नही होता।
खानाबदोस आदमी का कोई घर नहीं होता।।
ये सियासत की तवायफ का दुपट्टा हैं साहिब।
जो किसी की आसुओं से तर नही होता।।’’
By एस ए अस्थाना 30/09/2010 14:57:00
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जिलानी करना चाहता था बाबरी का सौदा
बाबरी विध्वंस से दो दिन पहले 4 दिसंबर 1992. स्थान-कच्चा हाता, लखनऊ, जफरयाब जिलानी का आवास. एक तरफ लाखों कारसेवक श्री राम जन्मभूमि पर निर्णायक लड़ाई लड़नें के लिए अयोध्या में एकत्रित हो रहा था, तो दूसरी तरफ देश के करोड़ो मुसलमानों के दिलोदिमाग में विस्फोटक आक्रोश मचल रहा था। इन सबसे बेखबर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जनाब जफरयाब जिलानी लखनऊ के कच्चाहाता स्थित अपने मकान में इस बात को लेकर गमज़दा हो रहे थे कि हमारे उस पत्र पर अशोक सिंघल की क्या प्रतिक्रिया होगी जिसे हमनें अभी-अभी अपने विशेष व्यक्ति के हाथों अशोक सिंघल के पास अयोध्या में भेजी है- देखें खत का मजमून....
आपसे बहुत जरुरी बात करनी थी चूंकि आप मिल नही पा रहे हैं जिसकी वजह से बात नही हो पा रही है। पता चला है कि आप इस वक्त अयोध्या में है इसलिए अपने आदमी के हाथ यह खत भेज रहे हैं। खास बात यह है कि आपसे 'जो बात हुई थी उसकी खबर किसी तरह से हमारे कुछ साथियों को लग गई है।' इसलिए इस वक्त वह काम किसी तरह रुकवा लो जो 'पहले तय' हुआ था, वरना हमारी बहुत बदनामी हो जाएगी। खबरों से पता चल रहा है कि कारसेवक काफी तादात में पहुँच रहे हैं जिन्हें अब रोकने का काम आप का है, हमारी इज्जत आपके हाथों में है। हम आप पर भरोसा कर रहे हैं। बाकी बातें मिलने पर होंगी।’’ आपका- ज़फरयाब जिलानी
1992 में दिसंबर का वह महीना जिन्हें याद होगा उन्हें उस सर्दी की सिहरन आज भी महसूस हो रही थी. एक तरफ पूरा देश, पूरा प्रशासन, राज्य और केन्द्र सरकार के पसीने छूट रहे थे, फिर ठीक उसी वक्त रामजन्मभूमि आंदोलन और बाबरी एक्शन कमेटी के रहनुमा इतने इत्मीनान से किस सौदे को बचाने की बातचीत कर रहे थे? उस वक्त हिन्दुओं और मुसलमानों को सिंहल और जिलानी अपने अपने रहनुमा नजर आ रहे हों लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों ही नेता अपनी अपनी कौमों के साथ धोखा कर रहे थे. जफरयाब जिलानी की दो चिट्ठियों को देखकर किसी को भी अंदाज लग सकता है कि उस वक्त विश्व हिन्दू परिषद किसी भी तरीके से रामजन्मभूमि पर अपना कब्जा चाह रही थी संभवत: उसने जफयरयाब जिलानी से "डील" किया. हालांकि जिलानी की ही चिट्ठी से यह भी पता चलता है कि विश्व हिन्दू परिषद के कुछ और नेता जिलानी के साथ भी धोखाधड़ी का खेल खेल रहे थे. जफरयाब जिलानी को जो कुछ "देने" का आश्वासन दिया गया था उसके बदले में जिलानी बाबरी एक्शन कमेटी से बाबरी मस्जिद पर दावा छोड़ने का दबाव बनाते और अपना केस कमजोर करते. लेकिन विश्व हिन्दू परिषद के नेता इसलिए चूक गये क्योंकि वे इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ भी लेना चाहते थे. जन ज्वार ने हिन्दुओं और मुसलमानों के सरगनाओं दोनों को शर्मसार कर दिया.
सांप्रदायिकता की राजनीति करनेवाले लोगों की असलियत क्या होती है, वह इस पूरे मामले में जफरयाब जिलानी को देखकर समझा जा सकता है. एक ओर वे अशोक सिंहल से बाबरी का सौदा कर रहे थे और सौदे पर खलल पड़ता देख अशोक सिंहल को कहते हैं कि कारसेवकों को रोकें, नहीं तो वे बदनाम हो जाएंगे तो दूसरी ओर जब छह दिसंबर को बाबरी गिरा दी जाती है तो 10 दिसंबर को वे संयुक्त राष्ट्र संघ को एक तार भेजते हैं जिसमें कहते हैं कि भारत में मुसलमानों का कत्लेआम किया जा रहा है. साक्ष्यों के अनुसार-जिस समय पूरा देश दिसम्बर 1992 के पहले हप्ते में साम्प्रदायिकता की आग में पूरी तरह से तप रहा था उस समय दोनों ही सम्प्रदायों के कथित मठाधीश बाबरी मस्जिद के नाम पर सौदेबाजी का घिनौना खेल-खेल रहे थे। दोनों ही कथित धर्मध्वजा वाहकों के बीच लेन-देन का खेल कैसे खेला गया यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि विवादित ढ़ॉचे के ध्वस्त होनें के दिन (06 दिसम्बर-1992) से ठीक दो दिन पहले ही मुस्लिमों के कथित पुरोधा जफरयाब जिलानी नें 04 दिसम्बर 1992 को अशोक सिघल (जो उस समय अयोध्या में मौजूद थे) के नाम एक खत लिख कर अपने विशेष पत्रवाहक के हाथों भेजा जिसमें स्पष्ट रुप से लिखा गया है कि ‘‘आप मिल नही पा रहे है, जिसकी वजह से बात नही हो पा रही है। पता चला है कि आप इस वक्त अयोध्या में हैं। खास बात यह है कि आपसे जों बात हुई थी उसकी खबर किसी तरह से हमारे कुछ साथियों को लग गयी है। इसलिए इस वक्त वह काम किसी तरह रूकवा लो जो पहले तय हुआ था, वरना हमारी बहुत बदनामी हो जाएगी। खबरों से पता चल रहा है कि कारसेवक काफी तादात में पहुंच रहे है जिन्हें अब रोकनें का काम आपका है, हमारी इज्जत आपके हाथों में है। हम आप पर भरोसा कर रहे है। शेष बातें मिलने पर होंगी।’’ अब जरा अपने दिमाग पर जोर डालिये और याद करिए कि आखिर क्या कारण था कि अशोक सिंहल कारसेवकों से उग्र न होने की अपील कर रहे थे? क्या 6 दिसम्बर को अयोध्या में कुछ कर गुजरने के लिए कटिबद्ध उग्र कारसेवकों को रोकने का काम अशोक सिंघल जिलानी के इसी पत्र के आ जाने के दबाव में कर रहे थे?
अब बात उस "बात" की जिसका हवाला जिलानी दे रहे हैं. बाबरी मस्जिद को बचाने की जंग लड़नेवाले अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम का अस्तित्व स्वीकार न करनेवाले जिलानी का भला रामनाम के किसी भवन में क्या दिलचस्पी हो सकती है? अशोक सिंहल ने लखनऊ के मॉडल हाउस स्थित रामभवन को आखिर जिलानी को क्यों दे दिया था? चाहे जिन भी कारणों से अशोक सिंघल ने ही जिलानी को दिया हो, जिलानी को मिला ‘‘राम भवन’’ उन दिनों मुस्लिम राजनीति में काफी चर्चा का विषय बना था। बताया जाता है कि मॉडल हाउस का यह ‘‘राम भवन’’ मकान हिन्दू धर्म के कथित ठेकेदार एवम् विश्व हिन्दू परिषद् के महासचिव अशोक सिंघल ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फरयाब जिलानी को दोस्ती नें 'उपहार' स्वरूप प्रदान किया है। इस मकान ‘‘राम भवन’’ के संदर्भ में चर्चा यह है कि इसके पूर्व के मालिक ‘‘जोधा राम’’ से मकान का सौदा विश्व हिन्दू परिषद् के महासचिव अशोक सिंघल ने किया, फिर इस मकान को सिंघल ने बतौर उपहार जिलानी को देने की पेशकश की, जिस पर जिलानी ने यह कह कर आपत्ति की कि यदि देना ही है तो उपहार स्वरूप न देकर ‘‘रजिस्ट्री’’ की जाय जिस पर संभवतः अशोक सिंघल को झुकना पड़ा था। अपने पत्र में जिलानी ने लिखा है- "मैंने आपको पहले ही कह दिया है कि लेन-देन किस प्रकार से होगा. इसे गिफ्ट के रूप में नहीं किया जाएगा."
यहॉ यह काबिले गौर है कि विश्व हिन्दू परिषद् के अशोक सिंघल व बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी के संयोजक ज़फरयाब जिलानी के बीच लेन-देन का यह वार्तालाप ‘‘गुप्तपत्र’’ के माध्यम से ही होता रहा। बावरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी के संयोजक द्वारा अशोक सिंघल को लिखे गए पत्र से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि अपने-अपने धर्म के दोनों कथित ठेकेदारों के कुछ बीच लेन-देन की राजनीति जरूर चलती रही है। क्योंकि सिंघल को लिखे गए पत्र में जिलानी ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि ‘‘हमारे बीच में जो लेन-देन हो वह उपहार स्वरूप न होकर वह विधिवत् बिक्री के रूप में दर्शाया जाये।" पत्र में जिलानी ने सिंघल के उन प्रश्नों का उत्तर भी दिया है, जिनका जवाब सिंघल ने अपने पत्रों के माध्यम से मांगा हैं, जिलानी ने उन प्रश्नों का भी उत्तर दिया है जो सिंघल ने कल्याण सिंह मंत्रिमण्डल के उर्जा एवम नगर विकास मंत्री लाल जी टंडन से मौखिक रूप से जिलानी तक पहुचाया था। पत्र में बाबरी एक्शन कमेटी के सदस्यों के विषय में जिलानी ने अशोक सिंघल को कुछ इन शब्दों में आश्वस्त किया है ‘‘अब्दुल मन्नान को तो हम किसी न किसी तरह समझौते के लिए मना लेंगे, रही बात मौलाना मुजफ्फर हुसैन किछौछवी की तो किछौछवी को मुसलमान अपना नेता मानता ही नही जिससे उनसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है, हॉ आज़म खॉ की भावुकता पर विश्वास नहीं किया जा सकता। फिर भी उन्हें समझाने का क्रम चल रहा है।" इस पत्र के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया कि शुरू से ही दोनों कथित धार्मिक नेताओं में मित्रवत् एवं लेन-देन का व्यवहार चल रहा था। अगर ऐसा नहीं था तो जिलानी अपनी एक और चिट्ठी में अशोक सिंहल को भला क्यों लिख रहे हैं कि "मैंने अपना काम कर दिया है. और आगे भी हमारे आपके बीच जो तय हुआ है उसी के अनुसार काम करेंगे."
यहां यह जान लेना आवश्यक है कि- बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फरयाब जिलानी वकालत करते है। 1986 में ऐक्शन कमेटी के गठन से पूर्व मुसलमानों के इस कथित धर्म के बहुरुएिपए की आर्थिक स्थित कुछ विशेष अच्छी नहीं थी। पूर्व में जिलानी से जुड़े कुछ लोगों के अनुसार 86 से पूर्व जिलानी के पास 51- कच्चा हाता, अमीनाबाद, लखनऊ का ही एक मकान था जहॉ इस घटना तक जिलानी रहते थे। पर ऐक्शन कमेटी का गठन होने के बाद जिलानी के पास अकूत सम्पत्तियों की भरमार हो गई है। जिलानी से जब यह पूछा गया की इन सम्पतियों का रहस्य क्या है तो जिलानी के अनुसार मैंने हाउसिंग बोर्ड से एक मकान अपनी धर्म पत्नी श्रीमती अज़राज़फर के नाम ए-835इन्दिरा नगर में लिया था, जिसे भी बाद में बेंच कर एक दूसरा मकान ले लिया। उस समय जिलानी की अकूत अचल सम्पत्तियों के रूप में लखनऊ-फैजाबाद मार्ग पर स्थित चिनहट का वह बाग भी काफी चर्चित रहा है जिसके सन्दर्भ में कहा जाता है कि ज़फरयाब जिलानी के भाई कमरयाब जिलानी ने ख्याति प्राप्त टुबैकों मर्चैन्ट अहमद हुसैन-दिलदार हुसैन से करीब 85 लाख रूपये में तीन चार वर्ष पूर्व खरीदा था।
इस समूचे प्रकरण पर जब जिलानी द्वारा अशोक सिंघल को लिखे गए पत्र की असलियत के लिए पूछा गया तो उनका जवाब यही था कि उनका लेटरपैड और उनके हस्ताक्षर है तो असली लेकिन पत्र गलत है। जब उनसे यह कहा गया कि जब आप स्वयं इस पत्र के लेटरपैड एवं हस्ताक्षर को सही मान रहे है तो यह गलत कैसे हो गया इस पर जनाब ज़फरयाब जिलानी का कहना था हमारे हस्ताक्षर को किसी ने कॉपी करके इस लेटरपैड पर लगा कर हमें बदनाम करने का प्रयास किया है। हमारे द्वारा जब यह कहा गया कि इस प्रकरण पर आपका भी पक्ष प्रस्तुत करते हुए खबर को लिखा जायेगा तो जिलानी साहब तैश में आकर वह फाइल दिखाने लगे जो वे अपने साथ लाये थे और धमकी देने के अंदाज में कहने लगे कि आपने अगर इस खबर को लिखा तो मैं आप पर भी मानहानी का मुकदमा दायर कर दूॅगा। क्योंकि इसी खबर पर हमने लखनऊ से एक निकलने वाले अखबार एवं बनारस से निकलने वाले एक अखबार पर मानहानी का मुकदमा दायर कर रखा था।
दो दिन बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट का लखनऊ बेंच अपना फैसला सुनाने जा रहा कि जमीन पर मालिकाना हक किसका होगा. अयोध्या से लेकर देवबंद तक एक ही आवाज सुनाई दे रही है कि अदालत का जो फैसला होगा वह मान्य होगा. जिसे स्वीकार नहीं होगा वह ऊंची अदालत का दरवाजा खटखटाएगा. अदालत जो भी फैसला दे, लेकिन जनता की अदालत का फैसला क्या होगा? अगर हिन्दू और मुसलमानों के रहनुमाओं ने देश के भावनाओं को भड़कानेवाले सबसे विवादास्पद मुद्दे को अपनी किसी डील का विषय बना दिया था तो क्या इसलिए कि वे अमन चैन चाहते थे? या फिर देश को सांप्रदायिक आग में झोंककर अपनी राजनीतिक और आर्थिक मजबूती सुनिश्चित कर रहे थे. बाबरी विध्वंस के बाद देश दुनिया में जितनी लाशें गिरी, जितने घर उजड़े, दिलों में जितनी दूरियां बढ़ीं क्या उसकी भरपाई कभी की जा सकेगी? या फिर जो लोग बाबरी को सांप्रदायिक उन्माद का प्रतीक बनाने में कामयाब रहे उन सियासतदानों को हम सिर्फ यह कहकर माफ कर देंगे कि-
‘‘कुछ भी कहो इन पर असर नही होता।
खानाबदोस आदमी का कोई घर नहीं होता।।
ये सियासत की तवायफ का दुपट्टा हैं साहिब।
जो किसी की आसुओं से तर नही होता।।’’
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