हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी सामने आई हैं । उसका अंदेशा सबको होगा और वही जानकारी मिली हैं जो राजनीतिक दलों से उम्मीद की जा सकती हैं। देश में कांग्रेस पार्टी सबसे अमीर दल के रूप में उभरकर सामने आई हैं । हालाँकि पिछले एक साल के दौरान खजाने में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी सर्व धर्म सुखाय सर्व धर्म हिताय का नारा देने वाली बहुजन समाज पार्टी ने किया हैं। आंकड़ों के अनुसार ३१ मार्च २००९ तक छह सालों के दौरान कांग्रेस को सबसे अधिक ४९७ करोड़ रुपये कि कमाई हुयी है। २००२ से २००९ के बीच कांग्रेस की कुल संपत्ति १५१८ करोड़ रुपये की आंकी गयी हैं। वहीँ २००९ से १० के दौरान भाजपा के खजाने में २२० करोड़ रुपये व बसपा के खजाने में १८२ करोड़ रूपये की कमाई दर्ज हैं। पिछले ६ सालों के दौरान कुल आय वृद्धि दर के मामले में बसपा ने सबको पीछे छोड़ दिया। बसपा ने २००२ से ०९ के बीच ५९ फीसदी की दर से अपनी आय बढाई है। जब कि कांग्रेस की आय ४२ फीसदी की दर से बढ़ी है । कांग्रेस की सहयोगी एन.सी.पी.ने अपना खजाना भरने में ५१% की दर से बढ़ोत्तरी की हैं। वहीँ सपा ने ४४% की वृद्धि दर के साथ खजाना भरा है। असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रेफोर्म्स ( ए.डी.आर.) ने सूचना के अधिकार के तहत सभी राजनीतिक पार्टियों का आयकर और अचल संपत्ति के आधार पर उक्त विश्लेषण किया हैं । केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के बाद सभी प्रमुख पार्टियों ने अपनी सम्पत्ति और आय का ब्यौरा दिया। वहीँ पिछले एक साल में सीपीआई ने एक करोड़, समाजवादी पार्टी ने ४० करोड़, सीपीएम ने ६३ करोड़ व राजद ने ४ करोड़ का फंड जुटाया।
२००२ - २००३ से लेकर २००९-१० के अंतराल में कुल संपत्ति के मामले में भी कांग्रेस सबसे आगे है । इस दौरान कांग्रेस की कुल संपत्ति १५१८ करोड़ रुपये रही। जब कि भाजपा की इस अवधि में ७५४ करोड़ रुपये की कुल संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर है। बसपा की कुल संपत्ति की कीमत ३५८ करोड़ रुपये आंकी गयी है। पिछले छह सालों के दौरान सीपीएम की कुल संपत्ति ३३९ करोड़ रुपये सपा की २६३ करोड़ रुपये रही जब कि राजद की संपत्ति १५ करोड़ और सीपीआई की कुल संपत्ति महज ७ करोड़ आंकी गयी।
यक्ष अब सवाल यहाँ से ये उठता है कि जो भी पार्टी सत्ता में आती है उसका वित्तीय मामले में रोना शुरू हो जता है। अच्छी योजनाओं के लिए फंड में कमी,कानूनी दांव पेंच जैसे मामले की वजह से योजनायें अधर में लटक जाती हैं। जबकि सत्ता का नशा चढ़ते ही पार्टी मालामाल होना शुरू हो जाती हैं। रिकॉर्ड तोड़ कमाई करने वाली मायावती की पार्टी की बात की जाए तो वो नोटों की माला पहनने में ही सम्मान समझती है। और दलील देती हैं कि दलित की बेटी हूँ। मेरे कार्यकर्ताओं ने धन एकत्र करके दिया है, जब आपके कार्यकर्ताओं में इतनी कूवत है तो उन्हें निर्धन, असहाय लोगों की सेवा में क्यों नहीं लगाया जाता है? उल्टे जूं बन कर उन्हीं का खून चूसने निकल पड़ते है॥ आज हर एक राजनीतिक दल का यही हाल है। बड़े नेता जिस भी अमुक जगह में पहुँचते हैं रुपयों की पोटली बाँध कर विदा किया जाता हैं.जबकि उसी जगह कितने लोग जीवन निर्वाह के लिए अपने शरीर की हड्डियों का ढांचा ढोनेके लिए मजबूर होते हैं। इसको देने वाले और खर्च करने वाले ही आज देश के भस्मासुर है ।
अब ज़रुरत हैं लोकतंत्र के जिस ढाँचे को पीढ़ियों से ढोया जा रहा है उसमें बदलाव करने की। कितना गलत पढ़ाया जा रहा है कि सरकार जनता ने चुना हैं जबकि जनता ने सिर्फ विधायक और सांसद चुने हैं न कि प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री नहीं। देश का कोई आम नागरिक कह दे कि ,मैंने प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री का चयन किया हैं। और यहीं से भ्रष्टाचार पनपना शुरू हो जाता हैं। और हकीकत जानना है तो कहते हैं बहमत प्राप्त दल के सदस्य अपना नेता चुनते हैं। कितने सदस्यों ने अपना नेता स्वतंत्र रूप से चुना है। आज देश के नेताओं की शैक्षिक योग्यता निर्धारित होना अनिवार्य हैं तभी कहा जाए कि लोकतंत्र प्रधान देश है। नहीं तो संसद भवन में नोटों की गड्डी लहराना अभी तो एक बानगी हैं। आगे क्या होगा देश के मालामाल नेता और मालामाल राजनीतिक दल जानें। क्योंकि भविष्य निर्माता यही हैं। देश का झंडा इन्हें भाता नहीं हैं इनके कार्यालयों में पार्टी का झंडा लहराएगा। इसी लिए राजनीतिक पार्टियों के तरफ से झंडा ऊंचा रहे हमारा देश फिरै चाहे मारा-मारा ।
२००२ - २००३ से लेकर २००९-१० के अंतराल में कुल संपत्ति के मामले में भी कांग्रेस सबसे आगे है । इस दौरान कांग्रेस की कुल संपत्ति १५१८ करोड़ रुपये रही। जब कि भाजपा की इस अवधि में ७५४ करोड़ रुपये की कुल संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर है। बसपा की कुल संपत्ति की कीमत ३५८ करोड़ रुपये आंकी गयी है। पिछले छह सालों के दौरान सीपीएम की कुल संपत्ति ३३९ करोड़ रुपये सपा की २६३ करोड़ रुपये रही जब कि राजद की संपत्ति १५ करोड़ और सीपीआई की कुल संपत्ति महज ७ करोड़ आंकी गयी।
यक्ष अब सवाल यहाँ से ये उठता है कि जो भी पार्टी सत्ता में आती है उसका वित्तीय मामले में रोना शुरू हो जता है। अच्छी योजनाओं के लिए फंड में कमी,कानूनी दांव पेंच जैसे मामले की वजह से योजनायें अधर में लटक जाती हैं। जबकि सत्ता का नशा चढ़ते ही पार्टी मालामाल होना शुरू हो जाती हैं। रिकॉर्ड तोड़ कमाई करने वाली मायावती की पार्टी की बात की जाए तो वो नोटों की माला पहनने में ही सम्मान समझती है। और दलील देती हैं कि दलित की बेटी हूँ। मेरे कार्यकर्ताओं ने धन एकत्र करके दिया है, जब आपके कार्यकर्ताओं में इतनी कूवत है तो उन्हें निर्धन, असहाय लोगों की सेवा में क्यों नहीं लगाया जाता है? उल्टे जूं बन कर उन्हीं का खून चूसने निकल पड़ते है॥ आज हर एक राजनीतिक दल का यही हाल है। बड़े नेता जिस भी अमुक जगह में पहुँचते हैं रुपयों की पोटली बाँध कर विदा किया जाता हैं.जबकि उसी जगह कितने लोग जीवन निर्वाह के लिए अपने शरीर की हड्डियों का ढांचा ढोनेके लिए मजबूर होते हैं। इसको देने वाले और खर्च करने वाले ही आज देश के भस्मासुर है ।
अब ज़रुरत हैं लोकतंत्र के जिस ढाँचे को पीढ़ियों से ढोया जा रहा है उसमें बदलाव करने की। कितना गलत पढ़ाया जा रहा है कि सरकार जनता ने चुना हैं जबकि जनता ने सिर्फ विधायक और सांसद चुने हैं न कि प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री नहीं। देश का कोई आम नागरिक कह दे कि ,मैंने प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री का चयन किया हैं। और यहीं से भ्रष्टाचार पनपना शुरू हो जाता हैं। और हकीकत जानना है तो कहते हैं बहमत प्राप्त दल के सदस्य अपना नेता चुनते हैं। कितने सदस्यों ने अपना नेता स्वतंत्र रूप से चुना है। आज देश के नेताओं की शैक्षिक योग्यता निर्धारित होना अनिवार्य हैं तभी कहा जाए कि लोकतंत्र प्रधान देश है। नहीं तो संसद भवन में नोटों की गड्डी लहराना अभी तो एक बानगी हैं। आगे क्या होगा देश के मालामाल नेता और मालामाल राजनीतिक दल जानें। क्योंकि भविष्य निर्माता यही हैं। देश का झंडा इन्हें भाता नहीं हैं इनके कार्यालयों में पार्टी का झंडा लहराएगा। इसी लिए राजनीतिक पार्टियों के तरफ से झंडा ऊंचा रहे हमारा देश फिरै चाहे मारा-मारा ।
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