Saturday 9 March 2013

हिन्दू धर्म का सच या झूठ


 

हिन्दू  अरबी का शब्द है । हिन्दू शब्द न तो वेद में है न पुराण में नउपनिषद में न आरण्यक में न रामायण

 में न ही महाभारत में । स्वयं दयानन्द सरस्वती कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है । 

1875 में ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की हिन्दू समाज की नहीं । अनपढ़ ब्राह्मण 

भी यह बात जानता है । ब्राह्मणो ने स्वयं को हिन्दूकभी नहीं कहा । आज भी वे स्वयं को ब्राह्मण कहते हैं 

लेकिन सभी शूद्रों को हिन्दू कहते हैं । जब शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे तथा 

तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे तब भी पूना के ब्राह्मणो ने उन्हें शूद्र कह राजतिलक से इंकार कर दिया। 

घूस का लालच देकर ब्राह्मण गागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया ।गगाभट्ट ने"गागाभट्टी" लिखा उसमें 

उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन राजतिलक के दौरान मंत्र "पुराणों" के ही पढे गए 

वेदों के नहीं ।तो शिवाजी को हिन्दू तब नहीं माना । ब्राह्मणो ने मुगलों से कहा हम हिन्दू नहीं हैं बल्कि 

तुम्हारी तरह ही विदे

सिन्धु से हिन्दू बना है, बहुत से लोग "स" को "ह" और "य" जो "ज" बोलते हैं. सिन्धु नदी के दक्षिण और 

हिमालय के दक्षिण मे रहने वालों को "सिंधू / हिन्दू" कहा गया. इस क्षेत्र के रहने वाले सभी लोग "सिंधू / 

हिन्दू" हैं. हम भी उन्हीं में से हैं, राष्ट्री यता हमारी, भारतीय है, धर्म हमारा इस्लाम है. स्वामी विवेकानन्द, 

जो स्वयं आर्य समाजी थे, ने कहा कि हिन्दू शब्द एक " मीसनॉमा " (गलत दिया हुआ नाम) है, सही मायनों 

में में "वेदान्ती" होना चाहिये. इस्लाम केवल मुसलमानों के लिये नहीं, सारी क़ायनात के लिये है, दुनियाँ के 

हर व्यक्ति के लिये है. इस्लाम का अर्थ है, "अपनी ईक्षाओं को अल्लाह / ईश्वर की ईक्षा को समर्पित कर देना 

अर्थात्, ईश्वर के बताये हुए क़ानून के हिसाब से चलना. जो इसको अपना लेता है, उसको मुसलमान कहते 

हैं. इस्लाम एक ऐसा धर्म है, जो गैर मुस्लिमों को न सिर्फ जीने का अधिकार देता है बल्कि उनकी आर्थिक, 

शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा का भी प्रबंध करता है. एक मुसलमान यदि खाना खा कर सो 

जाता है और उसका पड़ोसी (चाहे किसी भी धर्म का हो) भूखा सो गया तो मुसलमान का खाना हराम हो 

जाता है, (आस-पास के 40 घर पड़ोसी होते हैं). ज़कात, जज़ियाह, फ़ितरा, सदक़ा और दान यह सब इसी 

लिये हैं. आज़ादी के बाद "हिन्दू पॅनल कोड नहीं" "इंडियन / भारतीय पॅनल कोड" बना. उसमें अलग-अलग 

मज़हब के लिये अलग-अलग प्रावधान किये गये. मुस्लिम के पास अपनी एक बेहतरीन क़ानून व्यवस्था थी 

इस लिये उसको मुस्लिम पर्सानला ला की तरह ले लिया, क्यूंकि हिन्दू व्यवस्था में कोई ऐसा क़ानून नहीं 

था, तो उस के लिये एक क़ानून बनाना पड़ा. "हिन्दू मेरिज एक्ट" और टॅक्स के लिये "हिन्दू अविभाजित 

परिवार" की व्यवस्था इस का उदाहरण हैं. हम मुसलमान समान सिविल कोड के लिये तैय्यार हैं, लेकिन 

उस के लिये पहले विद्वानों को बैठा कर संवाद होना चाहिये और सबसे अच्छी व्यवस्था ले ली जाये. अगर 

यह साबित हो गया कि फेरों की जगा "निकाह" और शव को जलाने की जगह दफनाना सही है तो, सब को 

मानना पड़ेगा. बात धर्म शास्त्रों के आधार पर होगी न कि अपनी-अपनी आस्था और कहते हैं सुनते हैं और 

मान्यता है के आधार पर. -- अंत में आप को खुली चुनौती है कि क़ुरान से एक भी बात, रेफरेन्स और संदर्भ 

के साथ, मानवता के विरुद्ध बता दें
सिन्धु से हिन्दू बना है, बहुत से लोग "स" को "ह" और "य" जो "ज" बोलते हैं. सिन्धु नदी के दक्षिण और 

हिमालय के दक्षिण मे रहने वालों को "सिंधू / हिन्दू" कहा गया. इस क्षेत्र के रहने वाले सभी लोग "सिंधू / 

हिन्दू" हैं. हम भी उन्हीं में से हैं, राष्ट्री यता हमारी, भारतीय है, धर्म हमारा इस्लाम है. स्वामी विवेकानन्द, 

जो स्वयं आर्य समाजी थे, ने कहा कि हिन्दू शब्द एक " मीसनॉमा " (गलत दिया हुआ नाम) है, सही मायनों 

में में "वेदान्ती" होना चाहिये. इस्लाम केवल मुसलमानों के लिये नहीं, सारी क़ायनात के लिये है, दुनियाँ के 

हर व्यक्ति के लिये है. इस्लाम का अर्थ है, "अपनी ईक्षाओं को अल्लाह / ईश्वर की ईक्षा को समर्पित कर देना 

अर्थात्, ईश्वर के बताये हुए क़ानून के हिसाब से चलना. जो इसको अपना लेता है, उसको मुसलमान कहते 

हैं. इस्लाम एक ऐसा धर्म है, जो गैर मुस्लिमों को न सिर्फ जीने का अधिकार देता है बल्कि उनकी आर्थिक, 

शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा का भी प्रबंध करता है. एक मुसलमान यदि खाना खा कर सो 

जाता है और उसका पड़ोसी (चाहे किसी भी धर्म का हो) भूखा सो गया तो मुसलमान का खाना हराम हो 

जाता है, (आस-पास के 40 घर पड़ोसी होते हैं). ज़कात, जज़ियाह, फ़ितरा, सदक़ा और दान यह सब इसी 

लिये हैं. आज़ादी के बाद "हिन्दू पॅनल कोड नहीं" "इंडियन / भारतीय पॅनल कोड" बना. उसमें अलग-अलग 

मज़हब के लिये अलग-अलग प्रावधान किये गये. मुस्लिम के पास अपनी एक बेहतरीन क़ानून व्यवस्था थी 

इस लिये उसको मुस्लिम पर्सानला ला की तरह ले लिया, क्यूंकि हिन्दू व्यवस्था में कोई ऐसा क़ानून नहीं 

था, तो उस के लिये एक क़ानून बनाना पड़ा. "हिन्दू मेरिज एक्ट" और टॅक्स के लिये "हिन्दू अविभाजित 

परिवार" की व्यवस्था इस का उदाहरण हैं. हम मुसलमान समान सिविल कोड के लिये तैय्यार हैं, लेकिन 

उस के लिये पहले विद्वानों को बैठा कर संवाद होना चाहिये और सबसे अच्छी व्यवस्था ले ली जाये. अगर 

यह साबित हो गया कि फेरों की जगा "निकाह" और शव को जलाने की जगह दफनाना सही है तो, सब को 

मानना पड़ेगा. बात धर्म शास्त्रों के आधार पर होगी न कि अपनी-अपनी आस्था और कहते हैं सुनते हैं और 

मान्यता है के आधार पर. -- अंत में आप को खुली चुनौती है कि क़ुरान से एक भी बात, रेफरेन्स और संदर्भ 

के साथ, मानवता के विरुद्ध बता दें

सिन्धु से हिन्दू बना है, बहुत से लोग "स" को "ह" और "य" जो "ज" बोलते हैं. सिन्धु नदी के दक्षिण और 

हिमालय के दक्षिण मे रहने वालों को "सिंधू / हिन्दू" कहा गया. इस क्षेत्र के रहने वाले सभी लोग "सिंधू / 

हिन्दू" हैं. हम भी उन्हीं में से हैं, राष्ट्री यता हमारी, भारतीय है, धर्म हमारा इस्लाम है. स्वामी विवेकानन्द, 

जो स्वयं आर्य समाजी थे, ने कहा कि हिन्दू शब्द एक " मीसनॉमा " (गलत दिया हुआ नाम) है, सही मायनों 

में में "वेदान्ती" होना चाहिये. इस्लाम केवल मुसलमानों के लिये नहीं, सारी क़ायनात के लिये है, दुनियाँ के 

हर व्यक्ति के लिये है. इस्लाम का अर्थ है, "अपनी ईक्षाओं को अल्लाह / ईश्वर की ईक्षा को समर्पित कर देना 

अर्थात्, ईश्वर के बताये हुए क़ानून के हिसाब से चलना. जो इसको अपना लेता है, उसको मुसलमान कहते 

हैं. इस्लाम एक ऐसा धर्म है, जो गैर मुस्लिमों को न सिर्फ जीने का अधिकार देता है बल्कि उनकी आर्थिक, 

शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा का भी प्रबंध करता है. एक मुसलमान यदि खाना खा कर सो 

जाता है और उसका पड़ोसी (चाहे किसी भी धर्म का हो) भूखा सो गया तो मुसलमान का खाना हराम हो 

जाता है, (आस-पास के 40 घर पड़ोसी होते हैं). ज़कात, जज़ियाह, फ़ितरा, सदक़ा और दान यह सब इसी 

लिये हैं. आज़ादी के बाद "हिन्दू पॅनल कोड नहीं" "इंडियन / भारतीय पॅनल कोड" बना. उसमें अलग-अलग 

मज़हब के लिये अलग-अलग प्रावधान किये गये. मुस्लिम के पास अपनी एक बेहतरीन क़ानून व्यवस्था थी 

इस लिये उसको मुस्लिम पर्सानला ला की तरह ले लिया, क्यूंकि हिन्दू व्यवस्था में कोई ऐसा क़ानून नहीं 

था, तो उस के लिये एक क़ानून बनाना पड़ा. "हिन्दू मेरिज एक्ट" और टॅक्स के लिये "हिन्दू अविभाजित 

परिवार" की व्यवस्था इस का उदाहरण हैं. हम मुसलमान समान सिविल कोड के लिये तैय्यार हैं, लेकिन 

उस के लिये पहले विद्वानों को बैठा कर संवाद होना चाहिये और सबसे अच्छी व्यवस्था ले ली जाये. अगर 

यह साबित हो गया कि फेरों की जगा "निकाह" और शव को जलाने की जगह दफनाना सही है तो, सब को 

मानना पड़ेगा. बात धर्म शास्त्रों के आधार पर होगी न कि अपनी-अपनी आस्था और कहते हैं सुनते हैं और 

मान्यता है के आधार पर. -- अंत में आप को खुली चुनौती है कि क़ुरान से एक भी बात, रेफरेन्स और संदर्भ 

के साथ, मानवता के विरुद्ध बता दें