Monday 19 December 2011

आम आदमी से जुडी समस्या ..... घुमक्कड़ जिज्ञासा----------2

अपनी घुमक्कड़ जिज्ञासा लिए मै १७ दसंबर को रात ९ बजे कानपुर स्टेशन पंहुचा और बनारस का टिकट ले लिया फिर ट्रेनों का हाल पता चला तो मैने मुगलसराई का भी टिकट ले लिया और प्लेटफार्म पर टहलने लगा रात को ठण्ड काफी थी हड्डिय हिला देने वाली हवाई चल रही थे प्रतीक्षालय ट्रेनों के देरी से चलने की वजह से पूरा भरा हुवा था यहाँ तक की लोग खडे थे उससे जादा भीड़ प्लेटफार्म पर थी कोई इंतज़ाम नहीं था पुरवा ट्रेन का बताया गया की १ घंटा विलम्ब से चल रही है प्रतीक्षा का समय समाप्त हुवा तभी एलान हुवा की पुरवा आधा घंटा और देरी से आयेगी मै टहलते हुवे ASM के कार्यालय पहुच गया और पता किया तो पता चला की पूर्वा अभी इटावा नहीं पहुची है मैने ASM साहेब से पूछा की मान्यवर इटावा से कानपुर का रन लगभग डेढ़ घंटे का है और आप बता रहे है आधा घंटा की देरी साहेब ऐसा क्यों उन्हों ने कहा भाई साहेब पूर्वा लगभग सुबह ३ बजे के पहले नहीं आयेगी और अभी से अगर घोसडा कर दिया तो जनता को दिक्कत आ सकती है मैने कहा मान्यवर रात का १२:३० हो रहा है और आप तो गरम कमरों में बैठे है आम जनता वह ठण्ड में मर रही है अगर उचित समय बता देते तो जनता हो सकता है अपना कुछ इंतज़ाम कर लेती उन्हों ने कहा की जनता इंतज़ाम नहीं करती टिकट वापस कर देती है और फिर वापसी करवा कर मै रेल का नुक्सान क्यों करू ASM साहेब थोडा सभ्य थे उन्हों ने मुझसे कहा की वैसे भाई साहेब आप चाहे तो यहाँ बैठ कर ट्रेन का इंतज़ार कर सकते है मैने मुस्कुराकर उनका धन्यवाद दिया और कहा मै आम जनता हु मरना मुझे आता है और बहार निकल आया 
मैने सोचा चलो बाहर चाय पी जाती है मै बाहर निकला तो देखा की एक जगह ऑटो स्टैंड के पास अलाव लगा हुवा है जहा जनता बैठी है और २ पोलिस वाले भी खडे है मुझे ख़ुशी हुई की चलो सरकार ने कुछ अच्छा किया है मै भी पास पंहुचा तभी एक ने ५ रुपया माँगा मैने कहा काहे का भाई बोला की ये अलाव का है इसके पास baithana है तो ५ रुपया dena hoga मैने ५ रूपया निकाल कर उसको दिया देखा उसने उस कांस्टेबल को वो पैसे दे दिया मतलग दीवान जी का लगाया हुवा एक प्रयोजन था खैर मै आग के पास खड़ा भी नहीं हुवा और चाय की दूकान पर चाय पि कर वापस अगया प्लेटफोर्म पर तभी घोसणा होती है की बसपा रैली पिकप ट्रेन प्लेटफोर्म नंबर ६ पर आरही है मै उत्सुकता वश प्लेटफोर्म नंबर ६ पर पंहुचा तभी एक लम्बी सी ट्रेन आकार रुकी उस ट्रेन पर चारो तरफ मायावती और फिरोजाबाद के विधायक का फोटो था | पता चला की विधायक महोदय यह ट्रेन आगरा से बुक करवाकर लखनऊ लेकर जा रहे है कल रैली के बाद इसकी वापसी भी है मैने पता किया तो पता चला की यह ट्रेन अप एंड डाउन के लिए ३० लाख में पड़ी है तभी प्लेटफोर्म पर हुदंग हनी लगा और ट्रेन सवार कार्यकर्ता ने एक बुढे वेंडर को लूट लिया है फिर क्या ट्रेन को आनन फानन में प्लेटफोर्म से रवाना किया गया मैने वेंडर को जाकर देखा बुढा इंसान अपना पेट पालने को बैठ कर रात में चाय और नमकीन बेच रहा था उसको ये लोग देश के भविष्य लूट गए वो रो रहा था और GRP वाले उसको दन्त रहे थे की दूकान क्यों खोल कर बैठे थे बंद कर देते मुझे दया ई और मैने पूछा चाचा कितना नुक्सान हुवा है वो बोले बाबु लगभग २ हज़ार का उनकी आँखों का अनसु देख मुझे दया आगे और मैने बंद मुट्ठी से कुछ उनके हाथो में रखकर कहा चाचा चाय नहीं पिलाओगे वो अभी चाय देने वाले थे की एक और रैली पिकप ट्रेन क आने की घोसदा hui मै चाय pikar wahi खड़ा रहा तभी एक और ट्रेन आकार रुकी ये ट्रेन एक आगरा के बसपा प्रत्याशी की थी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो साहेब ने ट्रेन बुक करवाई थी मै सोच रहा था की ये इंसान अभी चुनाव लड़ा भी नहीं है इतना खर्चा किया चुनाव में और भी खर्च करेगा तो इसका चुनाव तो लगभग एक करोड़ का पड़ा ये जीतने के बाद क्या करेगा पहले तो अपना एक करोड़ को कई करोड़ में घर में लायेगा फिर सोचेगा जनता के बारे में |
खैर वक्त कट गया और फिर घोसडा हुई की पुरवा आने वाली है मगर उससे पहले नईदिल्ली - भागलपुर सुपर फास्ट ट्रेन आकार रुकी इस ट्रेन का आनंद विहार से पटना तक का टिकट ही अल्लाओ है बीच का नहीं मैने कुछ महीन करने की सोचा ट्रेन के TT के पास जाकर बोला सर जी मुगाल्सरये जाना था TT साहेब ने कहा S -५ में सीट नंबर ५२ पर जाकर बैठ जाओ ३०० लगता है २५० देदेना | मैने हा में सर हिलाया और आकार बैठ गया ट्रेन चल दी और वो साहेब आकार अपना भाडा लेकर चलते बने मै बाथरूम जाने के लिए उठा देखा की एक माँ बेटी बैठी है gate के पास और एक मौलाना बेचारे खडे है मैने उनसे पूछा क्यों यहाँ बोले टिकट वेटिंग का है सीट कहा मिली मैने कहा जाकर मेरी सीट पर बैठ जाओ आप और उन तीनो को अपने पास बैठाल लिया और मै भी वही बैठ गया उन्होने बताया की वो लोग आनंद विहार से ऐसे ही आ रहे है कई बार TT से कहा मगर सीट नहीं दिया मुझे ताज्जुब हुवा तभी TT साहेब ने आकार मुझसे मित्रवत आकार पूछा भाई सिगरेट है क्या मैने उनको एक निकाल कर दी उन्होने कहा आइये gate पर आप भी पी ले | मैने उनके साथ आकार gate पर सिगरेट जलाकर पूछा की भाई ये लोगो को सीट नहीं दी तो उन्होने अपने अंदाज़ में कहा की ये सीट पर कोई आया नहीं था और ये मिया लोग पैसा देते नहीं है मैने घूर कर उनको देखते हुवे कहा की क्या करू साहेब मै भी मियां हु और मैने आपको दिया है पैसा और रही बात ये तो मानवता नाम की कोई चीज़ होती है या नहीं .......
वो निरुत्तर होकर अपने रास्ते चले गए और मै अपनी खरीदी हुई सीट पर दिमाग में कई सवाल थे की भरष्टाचार की दुहाई देने वाले लोगो की नज़र इनपर क्यों नहीं पड़ती है आखिर कब तक ऐसे आम जनता मरती रहेगी 
आखिर कब तक

आम आदमी से जुडी समस्या ..... घुमक्कड़ जिज्ञासा

सुना था की असली समाज आम ज़िन्दगी से होकर गुज़रता है आम इंसानों की आम समस्या की झलक देखने के लिए अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा लेकर मै बिना किसी आरक्षण के निकल पड़ा सबसे पहले पंहुचा मै लखनऊ के छोटी लाइन प्लेटफोर्म नंबर ६ पर मुझे कानपुर के लिए चित्रकूट एक्सप्रेस से सफ़र करने के लिए वह देखा की प्लेटफोर्म के किनारे एक लम्बी लाइन लगी है औरते बच्चे और बुधे सभी उस खुले मैदान के ओस पड़ती शाम में सुसुवा रहे थे कुछ TC वह खडे थे और स्टेशन के अन्दर आने वाले सभी का टिकट जांच रहे थे नियम के तहत सिर्फ जाने वाले अथवा वह मौजूद संदिग्ध का टिकट ही पूछ सकते है मुझसे पूछा गया टिकट कहा है मैने निकाल कर दिखा दिया पूछा गया की वेटिंग बनवाना है मैने जवाब दिया नहीं मुझसे कहा गया वह लाइन में खडे हो जाओ मैने पूछा क्यों आप किस बात की ये लाइन लगवाई है जवाब आया नेतागिरी न करो और जाकर खडे हो जाओ मैने उसी अंदाज़ से जवाब दिया की अगर मै नेतागिरी करूँगा तो आप खडे नहीं हो पायेंगे भारी patthar देख कर एक bola sir आप मैने सच जानने के लिए बैग अपना काच में रक्खा और आकार उनलोगों के बगल में खड़ा हो गया तभी एक लड़की जींस और जैकेट पहने निकली एक TC ne अश्लील आह भरी अचानक उसने मुझे देखा और bola thand thoda zaadaa है मैने जवाब दिया हा उम्र का तकाजा है aapki maloom करने पर pata chala की mumbai जाने wali train में sadharan टिकट लेकर chaley walo ko ये  लाइन की वजह जानने के लिए मै बेकरार हो रहा था मैने पता किया तो पता चला की ये साधारण टिकट लेकर चलने वाले साधारण लोग है और इनको ऐसे ही परेशां किया जाता है अभी यहाँ कुछ कुली आयेंगे और साधारण डिब्बो की सीट पर बैठे रहेंगे फिर उस सीट को २०० के हिसाब से बेचेंगे और आधा हिस्सा इनका होगा

फिर देखा हुवा भी ऐसा ही ट्रेन आई और फिर चालू हुवा यात्रियों को लूटने का जुगाड़ मनचले TC की मटरगस्ती 
फिर भी कई यात्री छुक गए ट्रेन पकडने से यह है आम आमदी को लूटने का सबसे आसान जुगाड़ क्या कोई इनकी कभी सुननेगा ..........?
ये था इस सफ़र का पहला हिस्सा ................\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\ यात्रा अभी बाकि है मेरे दोस्त 

Wednesday 14 December 2011

ऋग्वेद में गोमांस भक्षण

अक्सर ये देखा जाता है की गौमॉस पर लोग लम्बी चौड़ी बाते करते है हमारे मज़हब को गलत कहते है मैने उनको कई बार जवाब भी माकूल दिया है मै एक दिन इसपर अध्यन कर रहा था की अचानक मुझे एक ऐसा मौका मिला ऐसे लोगो को जवाब देने का जिसे मै खोना नहीं चाहता था मुझे गोमास भक्षण का सबूत मिल गया है रिग्वेद में गौमांस भक्षण तक का उदहारण आया है आप खुद देखिये यहाँ मै उचित शब्दार्थ के लिए 
द कम्पलीट वर्क आफ स्वामी विवेकानंद . वोल्यूम 3 को शाक्षी रख कर अपनी बाते रख रहा हु जिसके पृष्ट संक्या 174, और ५३६ का वर्णन कर रहा हु  जिसमे महान हिन्दू धर्म के  स्वामी विकेकानन्दजी ने ऋग्वेद का वर्णन किया है 
 
"उक्षणों ही में पंचदंश साकं पंचंती: विश्तिम् |
उताहंमदिंम् पीव इदुभा कुक्षी प्रणन्ती में विश्व्स्मान्दिन्द्र ||" (उत्तर ऋग्वेद 10-86-14 )
र्थात :- इन्द्राणी द्वारा प्रेरित यज्ञकर्ता मेरे लिए 15-30बैल काटकर पकाते है , जिन्हें खाकर मै मोटा होता हू |वे मेरी कुक्षियो को सोम (शराब ) से भी भरते है | (ऋग्वेद 10-86-14 ) 
यहाँ धयान दीजियेगा की बैल को पका कर खाने का वर्णन है बैल नरगए को कहते है न यानि गोमाता के पति या पुत्र को
"मित्र कूवो यक्षसने न् गाव: पृथिव्या |
आपृगामृया शयंते ||" (ऋग्वेद 10-89-14 )

अर्थात :- हे ! इन्द्र जैसे गौ वध के स्थान पर गाये कटी जाती है वैसे ही तुम्हारे इस अस्त्र से मित्र द्वेषी राक्षस कटकर सदैव के लिए सो जांए |(ऋग्वेद 10-89-14 ) यहाँ धयान दे की गोवध की बात कही गयी है
"आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती |
सोमान पिवसित्व मेषा ||"

"पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां |
पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||" (ऋग्वेद 10-28 -3 )

अर्थात :- हे ! इन्द्र अन्न की कमाना से तूम्हारे लिए जिस समय हवन किया जाता है उस समय यजमान पत्थर के टुकडो पर शीघ्रताशीघ्र सोमरस (शराब ) तैयार करते है उसे तुम पीते हो ,यजमान बैल पकाते है और उसे तुम खाते हो | (ऋग्वेद 10-28-3 )
यहाँ धयान दीजिये की केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि आपके इन्द्र भगवन भी गौमांस भक्षण करते है
अब आप निर्णय करो की स्वामी जी ने गलत लिखा है या सही मै तो कहूँगा की स्वामी जी ने एकदम सत्य लिखा है और उनकी बातो का समर्थन करता हु आप बताए |

लखनऊ शहर में फिर मुसलमानों पर ज़ुल्म हुवा

लखनऊ की कल सुबह सुहानी थी ठण्ड ने अपनी दस्तक जोर से दी और सभी ठिठुर रहे थे की तभी दोपहर में सूरज ने अपनी झलक लखनऊ वालो की दिखाई थी अचानक कुछ गर्म माहोल समझ में आया पता करने पर पता चला की चारबाग में कुछ माहोल गरम है मै तुरंत वह पंहुचा हालात काफी तनाव वाले थे मुस्लमान सड़क पर मस्जिद के आगे भीड़ लगा कर खडे थे मैने वजह पता की जानकर ताज्जुब हुवा
चारबाग स्टेशन के ठीक सामने एक मस्जिद है जिसकी तामीर हो रही है वह उससे सटा हुवा एक होटल है किसी सरदार का उसने मस्जिद की पीछे वाली दिवार गिरा दी थी और पुलिस वालो के मौजूदगी में ......... मस्जिद में मीटिंग चल रही थी मैने वह जाकर शिरकत की SDM साहेब भी मौजूद थे उनका कहना यह था की उस होटल वाले ने गलत किया है काफी देर तक सिर्फ बात होती रही असर का वक्त हो गया नमाज़ हुई उसके बाद फिर बात का दौर चला मैने महोदय से पूछा की जनाब अगर ये होटल किसी मुस्लमान का होता और उसने मंदिर की दिवार तोड़ दी होती तो अब तक उसके खानदान की माँ बहन एक हो गयी होती और यहाँ ये हालात है की आप २ बजे से सिर्फ बाते कर रहे है बातो के अलावा कुछ नहीं कर रहे है यह सुनकर वो महोदय कुछ बोलते तभी अलिमो ने मेरी बात का समर्थन किया और कहा अब बात नहीं होगी एक्शन होगा अलीम मेरे साथ बहार निकले और नारा बुलंद करते हुवे सती हुवे चारबाग चौराहे पर अगये | पीछे पीछे हजारो की तादात में मुस्लमान चौराहे पर जाम कर दिया और शांति से नारा लगा रहे थे तभी पुलिस वालो की तरफ से हवाई फायरिंग चालू हो गयी लोगो को बचा कर और अलिमो को बचा कर किनारे किया फिर पुलिस का तांडव लाठी चार्ज और रास्ता बंदी मगर मुस्लमान पीछे नहीं हटे देर रात तक हालात काफी नाज़ुक थे कुछ पोलिस वालो का खाना पूर्ति के लिए ट्रान्सफर हुवा है
हालात अभी भी तनाव में है |

Tuesday 6 December 2011

कालेधन के कारोबारी बाबा नाटकदेव उर्फ़ रामदेव को बेनकाब किया तहलका ने

 

बाबा रामदेव काफी समय से देश भर में काले धन के खिलाफ अभियान चला रहे हैं. लेकिन तहलका की पड़ताल बताती है कि असल में उनका खुद का हाल पर उपदेश कुशल बहुतेरे जैसा है. काले धन को लेकर सरकारों को पानी पी-पीकर कोसने वाले बाबा रामदेव खुद उसी काले धन के पहाड़ पर विराजमान हैं. मनोज रावत की रिपोर्ट साभार
साल 2004 की बात है. बाबा रामदेव योगगुरु के रूप में मशहूर हुए ही थे. चारों तरफ उनकी चर्चा हो रही थी. टीवी चैनलों पर उनकी धूम थी. देश के अलग-अलग शहरों में चलने वाले उनके योग शिविरों में पांव रखने की जगह नहीं मिल रही थी और बाबा के औद्योगिक प्रतिष्ठान दिव्य फार्मेसी की दवाओं पर लोग टूटे पड़ रहे थे.लेकिन फार्मेसी ने उस वित्तीय वर्ष में सिर्फ छह लाख 73 हजार मूल्य की दवाओं की बिक्री दिखाई और इस पर करीब 54 हजार रुपये बिक्री कर दिया गया. यह तब था जब रामदेव के हरिद्वार स्थित आश्रम में रोगियों का तांता लगा था और हरिद्वार के बाहर लगने वाले शिविरों में भी उनकी दवाओं की खूब बिक्री हो रही थी. इसके अलावा डाक से भी दवाइयां भेजी जा रही थीं.
रामदेव के चहुंओर प्रचार और देश भर में उनकी दवाओं की मांग को देखकर उत्तराखंड के वाणिज्य कर विभाग को संदेह हुआ कि बिक्री का आंकड़ा इतना कम नहीं हो सकता. उसने हरिद्वार के डाकघरों  से सूचनाएं मंगवाईं. पता चला कि दिव्य फार्मेसी ने उस साल 3353 पार्सलों के जरिए 2509.256 किग्रा माल बाहर भेजा था. इन पार्सलों के अलावा 13 लाख 13 हजार मूल्य के वीपीपी पार्सल भेजे गए थे. इसी साल फार्मेसी को 17 लाख 50 हजार के मनीऑर्डर भी आए थे.
सभी सूचनाओं के आधार पर राज्य के वाणिज्य कर विभाग की विशेष जांच सेल (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी पर छापा मारा. इसमें बिक्रीकर की बड़ी चोरी पकड़ी गई. छापे को अंजाम देने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा बताते हैं, 'तब तक हम भी रामदेव जी के अच्छे कार्यों के लिए उनकी इज्जत करते थे. लेकिन कर प्रशासक के रूप में हमें मामला साफ-साफ कर चोरी का दिखा.' राणा आगे बताते हैं कि मामला कम से कम पांच करोड़ रु के बिक्रीकर की चोरी का था.
भ्रष्टाचार और काले धन को मुद्दा बनाकर रामदेव पिछले दिनों भारत स्वाभिमान यात्रा पर निकले हुए थे. इस यात्रा का पहला चरण खत्म होने के बाद 23 नवंबर को वे दिल्ली में थे. यहां बाबा का कहना था कि यदि संसद के शीतकालीन सत्र में लोकपाल और काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने वाले बिल पारित नहीं होते हैं तो वे उन पांच राज्यों में आंदोलन करेंगे जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में उनका कहना था, ‘जिस दिन काले धन पर कार्रवाई शुरू होगी, उस दिन पता चलेगा कि जिन्हें हम खानदानी नेता समझ रहे थे उनमें से 99 प्रतिशत तो खानदानी लुटेरे हैं.’
अब सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार और काले धन की जिस सरिता के खिलाफ रामदेव अभियान छेड़े हुए हैं उसी में अगर वे खुद भी आचमन कर रहे हों तो? फिर तो वही बात हुई कि औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत. तहलका की यह पड़ताल कुछ ऐसा ही इशारा करती है.
सबसे पहले तो यह सवाल कि काला धन बनता कैसे है. आयकर विभाग के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, 'करों से बचाई गई रकम और ट्रस्टों में दान के नाम पर मिले पैसे से काला धन बनता है. काले धन को दान का पैसा दिखाकर, उस पर टैक्स बचाकर उसे फिर से उद्योगों में निवेश किया जाता है. इससे पैदा होने वाली रकम को पहले देश में जमीनों और जेवरात पर लगाया जाता है. इसके बाद भी वह पूरा न खप सके तो उसे चोरी-छुपे विदेश भेजा जाता है. यह एक अंतहीन श्रृंखला है जिसमें बहुत-से ताकतवर लोगों की हिस्सेदारी होती है.’
दिव्य फार्मेसी पर छापे की कार्रवाई को अंजाम देने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा बताते हैं कि उनकी टीम ने इस छापे से पहले काफी होमवर्क किया था. राणा कहतेे हैं, ‘मेरी याददाश्त के अनुसार लगभग पांच करोड़ रु के राज्य और केंद्रीय बिक्री कर की चोरी का मामला बन रहा था.’ टीम के एक अन्य सदस्य बताते हैं, ‘पुख्ता सबूतों के साथ 2000 किलो कागज सबूत के तौर पर इकट्ठा किए गए थे.’
रामदेव से जुड़ी फार्मेसी पर छापा मारने पर उत्तराखंड के तत्कालीन राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल बड़े नाराज हुए थे. उन्होंने इस छापे की पूरी कार्रवाई की रिपोर्ट सरकार से तलब की थी. उस दौर में प्रदेश के प्रमुख सचिव (वित्त) इंदु कुमार पांडे ने राज्यपाल को भेजी रिपोर्ट में छापे की कार्रवाई को निष्पक्ष और जरूरी बताया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भी इस रिपोर्ट के साथ अपना विशेष नोट लिख कर भेजा था जिसमें उन्होंने प्रमुख सचिव की बात दोहराई थी. रामदेव ने अधिकारियों पर छापे के दौरान बदसलूकी का आरोप लगाया था जिसे राज्य सरकार ने निराधार बताया था.
विभाग के कुछ अधिकारियों का मानना है कि रामदेव के मामले में अनुचित दबाव पड़ने के बाद डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने समय से चार साल पहले ही सेवानिवृत्ति ले ली थी. राणा को तब विभाग के उन उम्दा अधिकारियों में गिना जाता था जो किसी दबाव से डिगते नहीं थे. एसआईबी के इस छापे के बाद राज्य या केंद्र की किसी एजेंसी ने रामदेव के प्रतिष्ठानों पर छापा मारने की हिम्मत नहीं की. इसी के साथ रामदेव का आर्थिक साम्राज्य भी दिनदूनी रात चौगुनी गति से बढ़ने लगा.
लेकिन बिक्री कम दिखाना तो कर चोरी का सिर्फ एक तरीका था. दिव्य फार्मेसी एक और तरीके से भी कर की चोरी कर रही थी. तहलका को मिले दस्तावेज बताते हैं कि उस साल फार्मेसी ने वाणिज्य कर विभाग को दिखाई गई कर योग्य बिक्री से पांच गुना अधिक मूल्य की दवाओं (30 लाख 17 हजार रु) का ‘स्टाॅक हस्तांतरण’ बाबा द्वारा धर्मार्थ चलाए जा रहे ‘दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट’ को किया. रिटर्न में फार्मेसी ने बताया कि ये दवाएं गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त में बांटी गई हैं. लेकिन वाणिज्य कर विभाग के तत्कालीन अधिकारी बताते हैं कि दिव्य फार्मेसी उस समय गरीबों को मुफ्त बांटने के लिए दिखाई जा रही दवाओं को कनखल स्थित दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से बेच रही थी. दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के पास में ही रहने वाले भारत पाल कहते हैं, 'पिछले 16 सालों के दौरान मैंने बाबा के कनखल आश्रम में कभी मुफ्त में दवाएं बंटती नहीं देखीं.’


इसी तर्ज पर आज भी दिव्य फार्मेसी रामदेव द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न ट्रस्टों को गरीबों को मुफ्त दवाएं बांटने के नाम पर मोटा स्टॉक ट्रांसफर कर रही है. अभी तक दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट का उत्तराखंड राज्य में वाणिज्य कर में पंजीयन तक नहीं है. नियमानुसार बिना पंजीयन के ये ट्रस्ट किसी सामान की बिक्री नहीं कर सकते, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन ट्रस्टों में स्थित केंद्रों से हर दिन लाखों की दवाएं और अन्य माल बिकता है. पिछले कुछ सालों के दौरान दिव्य फार्मेसी से दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट और अन्य स्थानों में अरबों रुपये मूल्य का स्टाॅक ट्रांसफर हुआ है जिसकी बिक्री पर नियमानुसार बिक्री कर देना जरूरी है. ट्रस्टों के अलावा देश भर मेंे रामदेव के शिविरों में दवाओं के मुफ्त बंटने के दावे की जांच करना मुश्किल है, परंतु इन शिविरों में हिस्सा लेने वाले श्रद्धालु जानते और बताते हैं कि यहां दवाएं मुफ्त में नहीं बांटी जातीं. अब दिव्य फार्मेसी द्वारा बनाई जा रही 285 तरह की दवाएं और अन्य उत्पाद इंटरनेट से भी भेजे जाने लगे हैं. इंटरनेट पर बिकने वाली दवाओं पर कैसे बिक्री कर लगे, यह उत्तराखंड का वाणिज्य कर विभाग नहीं जानता. इन दिनों नोएडा में रह रहे जगदीश राणा कहते हैं, ‘रामदेव को जितना बिक्री कर देना चाहिए, वे उसका एक अंश भी नहीं दे रहे.’
उत्तराखंड में बिक्री कर ही राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा है. उत्तराखंड सरकार के कर सलाहकार चंद्रशेखर सेमवाल बताते हैं, ‘पिछले साल राज्य में बिक्री कर से कुल 2940 करोड़ रु की कर राशि इकट्ठा हुई थी, यह राशि राज्य के कुल राजस्व का 60 प्रतिशत है.’ इसी पैसे से सरकार राज्य में सड़कें बनाती है , गांवों में पीने का पानी पहुंचाया जाता है, अस्पतालों में दवाएं जाती हैं , सरकारी स्कूल खुलते हैं और ऐसे ही जनकल्याण के दूसरे काम चलाए जाते हैं. रामदेव नेताओं पर आरोप लगाते हैं कि उन्हें देश के विकास से कोई मतलब नहीं है, वे बस अपनी झोली भरना चाहते हैं. लेकिन जब रामदेव का अपना ही ट्रस्ट इतने बड़े पैमाने पर करों की चोरी कर रहा हो तो क्या यह सवाल उनसे नहीं पूछा जाना चाहिए?
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के एक पूर्व सदस्य बताते हैं, ‘करों को बचा कर ही काला धन पैदा होता है और इस काले धन का सबसे अधिक निवेश जमीनों में किया जाता है.’ पिछले सात-आठ साल के दौरान हरिद्वार जिले में रामदेव के ट्रस्टों ने हरिद्वार और रुड़की तहसील के कई गांवों, नगर क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्र में जमकर जमीनें और संपत्तियां ली हैं. अखाड़ा परिषद के प्रवक्ता बाबा हठयोगी कहते हैं, ‘रामदेव ने इन जमीनों के अलावा बेनामी जमीनों और महंगे आवासीय प्रोजेक्टों में भी भारी निवेश किया है.’ हठयोगी आरोप लगाते हैं कि हरिद्वार के अलावा रामदेव ने उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में भी जमकर जमीनें खरीदी हैं. तहलका ने इन आरोपों की भी पड़ताल की. जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला था.
जमीन का फेर
योग और आयुर्वेद का कारोबार बढ़ने  के बाद रामदेव ने वर्ष 2005 में पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट के नाम से एक और ट्रस्ट शुरू किया. रामदेव तब तक देश की सीमाओं को लांघ कर अंतरराष्ट्रीय हस्ती हो गए थे. 15 अक्टूबर, 2006 को गरीबी हटाओ पर हुए मिलेनियम अभियान में रामदेव ने विशेष अतिथि के रूप में संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया. अपने वैश्विक विचारों को मूर्त रुप देने के लिए अब उन्हें हरिद्वार में और ज्यादा जमीन की जरूरत थी. इस जरूरत को पूरा करने के लिए आचार्य बालकृष्ण, दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और पतंजलि ट्रस्ट के नाम से दिल्ली-माणा राष्ट्रीय राजमार्ग पर हरिद्वार और रुड़की के बीच शांतरशाह नगर, बढ़ेड़ी राजपूताना और बोंगला में खूब जमीनें खरीदी गईं. राजस्व अभिलेखों के अनुसार शांतरशाह नगर की खाता संख्या 87, 103, 120 और 150 में दर्ज भूमि रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर है. यह भूमि कुल 23.798 हेक्टेयर(360 बीघा) के लगभग बैठती है और इसी पर पतंजलि फेज-1, पतंजलि फेज- 2 और पतंजलि विश्वविद्यालय बने हैं.
बढेड़ी राजपूताना के पूर्व प्रधान शकील अहमद बताते हैं कि शांतरशाह नगर और उसके आसपास रामदेव के पास 1000 बीघा से अधिक जमीन है. लेकिन बाबा के सहयोगियों और ट्रस्टों के नाम पर खातों में केवल 360 बीघा जमीन ही दर्ज है. इस भूमि में से रामदेव ने 20.08 हेक्टेयर भूमि को अकृषित घोषित कराया है. राज्य में कृषि भूमि को अकृषित घोषित कराने के बाद ही कानूनन उस पर निर्माण कार्य हो सकता है.
तहलका ने राजस्व अभिलेखों की गहन पड़ताल की. पता चला कि रामदेव, उनके रिश्तेदारों और आचार्य बालकृष्ण ने शांतरशाह नगर के आसपास कई गांवों में बेनामी जमीनों पर पैसा लगाया है. उदाहरण के तौर पर, शांतरशाह नगर की राजस्व खाता संख्या 229 में जिन गगन कुमार का नाम दर्ज है वे कई वर्षों से आचार्य बालकृष्ण के पीए हैं. 8000 रु महीना पगार वाले गगन आयकर रिटर्न भी नहीं भरते. गगन ने 15 जनवरी, 2011 को शांतरशाह नगर में 1.446 हेक्टेयर भूमि अपने नाम खरीदी. रजिस्ट्री में इस जमीन का बाजार भाव 35 लाख रु दिखाया गया है, परंतु हरिद्वार के भू-व्यवसायियों के अनुसार किसी भी हाल में यह जमीन पांच करोड़  रुपये से कम की नहीं है. यह जमीन अनुसूचित जाति के किसान की थी जिसे उपजिलाधिकारी की विशेष इजाजत से खरीदा गया है. इससे पहले गगन ने 14 मई, 2010 को रुड़की तहसील के बाबली-कलन्जरी गांव में एक करोड़ 37 लाख रु बाजार मूल्य दिखा कर जमीन की रजिस्ट्री कराई थी. यह जमीन भी 15 करोड़  रु से अधिक की बताई जा रही है. स्थानीय पत्रकार अहसान अंसारी का दावा है कि बाबा ने और भी दसियों लोगों के नाम पर हरिद्वार में अरबों की जमीनें खरीदी हैं. बाबा हठयोगी सवाल करते हैं, ‘देश भर में काले धन को लेकर मुहिम चला रहे रामदेव के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि आखिर महज आठ हजार रुपये महीना पाने वाले गगन कुमार जैसे इन दसियों लोगों के पास अरबों की जमीनें खरीदने के लिए पैसे कहां से आए.’
शांतरशाह नगर, बढ़ेड़ी राजपूताना और बोंगला में अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद बाबा की नजर हरिद्वार की औरंगाबाद न्याय पंचायत पर पड़ी. इसी न्याय पंचायत में राजाजी राष्ट्रीय पार्क की सीमा पर लगे औरंगाबाद और शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला गांव हैं. उत्तराखंड में भू-कानूनों के अनुसार राज्य से बाहर का कोई भी व्यक्ति या ट्रस्ट राज्य में 250 वर्ग मीटर से अधिक कृषि भूमि नहीं खरीद सकता. विशेष परिस्थितियों और प्रयोजन के लिए ही  इससे अधिक भूमि खरीदी जा सकती है, लेकिन इसके लिए शासन की अनुमति जरूरी होती है.
रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को 16 जुलाई, 2008 को उत्तराखंड सरकार से औरंगाबाद, शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला आदि गांवों में पंचकर्म व्यवस्था, औषधि उत्पादन, औषधि निर्माणशाला एवं प्रयोगशाला स्थापना के लिए 75 हेक्टेयर जमीन खरीदने की इजाजत मिली थी. शर्तों के अनुसार खरीदी गई भूमि का प्रयोग भी उसी कार्य के लिए किया जाना चाहिए जिस कार्य के लिए बताकर उसे खरीदने की इजाजत ली गई है. पहले बगीचा रही इस कृषि-भूमि पर रामदेव ने योग ग्राम की स्थापना की है. श्रद्धालुओं को बाबा के इस रिजॉर्टनुमा ग्राम में बनी कॉटेजों में रहकर पंचकर्म कराने के लिए 1000 रु से लेकर 3500 रु तक प्रतिदिन देना होता है.


औरंगाबाद गांव के पूर्व प्रधान अजब सिंह चौहान दावा करते हैं कि उनके गांव में बाबा के ट्रस्ट और उनके लोगों के कब्जे में 2000 बीघे के लगभग भूमि है. लेकिन राजस्व अभिलेखों में रामदेव, आचार्य बालकृष्ण या उनके ट्रस्टों के नाम पर एक बीघा भूमि भी दर्ज नहीं है. क्षेत्र के लेखपाल सुभाश जैन्मी इस बात की पुष्टि करते हुए बताते हैं, ‘राजस्व रिकॉर्डों में भले ही रामदेव के ट्रस्ट के नाम एक भी बीघा जमीन दर्ज नहीं हुई है परंतु उत्तराखंड शासन से इजाजत मिलने के बाद पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट ने औरंगाबाद और तेलीवाला गांव में काफी जमीनों की रजिस्ट्रियां कराई हैं.’ राजस्व अभिलेखों में दाखिल-खारिज न होने का नतीजा यह है कि किसानों की सैकड़ों बीघा जमीनें बिकने के बाद भी अभी तक उनके ही नाम पर दर्ज हैं. इन सभी भूमियों पर रामदेव के ट्रस्टों का कब्जा है. राजस्व अभिलेखों में अभी भी औरंगाबाद ग्राम सभा की सारी जमीन कृषि भूमि है. नियमों के अनुसार कृषि भूमि पर भवन निर्माण करने से पहले उस भूमि को उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 143 के अनुसार अकृषित घोषित करके उसे आबादी में बदलने की अनुमति लेनी होती है. इसके लिए आवेदक के नाम खतौनी में जमीन दर्ज होना आवश्यक है. रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर इन गांवों में एक इंच भूमि भी दर्ज नहीं है, लेकिन गजब देखिए कि नियम-कायदों को ताक पर रखकर यहां योग ग्राम के रूप में पूरा शहर बसा दिया गया है.
औरंगाबाद गांव के बहुत बड़े हिस्से को कब्जे में लेने के बाद रामदेव के भूविस्तार अभियान की चपेट में उससे लगा गांव तेलीवाला आया. योग ग्राम स्थापित करने के डेढ़ साल बाद फिर उत्तराखंड शासन ने पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट को 26 फरवरी, 2010 को हरिद्वार के औरंगाबाद और शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला गांव में और 155 हेक्टेयर (2325 बीघा) जमीन खरीदने की इजाजत दी. यह इजाजत पतंजलि विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए दी गई थी. इस तरह उत्तराखंड शासन से बाबा के पतंजलि योगपीठ को औरंगाबाद और तेलीवाला गांव की कुल 230 हेक्टेयर (3450 बीघा) जमीन खरीदने की अनुमति मिली जो इन दोनों गांवों की खेती वाली भूमि का बड़ा भाग है. इसके अलावा बाबा ने इन गांवों में सैकड़ों बीघा बेनामी जमीनें कई लोगों के नाम पर ली हैं जिन्हें वे धीरे-धीरे कानूनी प्रक्रिया पूरी करके अपने ट्रस्टों के नाम कराएंगे.
कई गांववाले दावा करते हैं कि तेलीवाला और औरंगाबाद गांव में रामदेव के ट्रस्ट के कब्जे में 4000 बीघा से अधिक जमीन है. प्रशासन द्वारा मिली इतनी अधिक भूमि खरीदने की इजाजत और बेनामी व कब्जे वाली जमीनों को देखने के बाद इस दावे में सत्यता लगती है. लेकिन राजस्व अभिलेख देखें तो औरंगाबाद ग्राम सभा की ही तरह तेलीवाला गांव में भी रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर एक इंच भूमि दर्ज नहीं है.
आखिर ऐसा क्यों?  यह जानने से पहले कुछ और सच्चाइयां जानते हैं. तेलीवाला गांव में 2116 खातेदारों के पास कुल 9300 बीघा जमीन है. गांव के 330 गरीब भूमिहीनों के नाम सरकार से कभी पट्टों पर मिली 750 बीघा कृषि-भूमि या घर बनाने योग्य भूमि है. लेखपाल जैन्मी बताते हैं कि जमीनें बेचने के बाद गांव के खातेदारों में से सैकड़ों किसान भूमिहीन हो गए हैं. गांववालों के अनुसार गांव की कुल भूमि का बड़ा हिस्सा रामदेव के पतंजलि योगपीठ के कब्जे में है. इसकी पुष्टि बालकृष्ण का एक पत्र भी करता है. बालकृष्ण ने सात सितंबर, 2007 को ही हरिद्वार के जिलाधिकारी को पत्र लिखकर स्वीकारा था कि तेलीवाला गांव की 80 प्रतिशत भूमि के उन्होंने बैनामे करा लिए हैं इसलिए गांव की फिर चकबंदी की जाए. यानी सब कुछ पहले से तय था और प्रशासन से बाद में जमीन खरीदने की विशेष अनुमति मिलना महज एक औपचारिकता थी.  प्रस्ताव में किए गए बालकृष्ण के दावे को सच माना जाए तो रामदेव के पास अकेले तेलीवाला गांव में ही करीब 8000 बीघा जमीन होनी चाहिए. गांववालों ने समयपूर्व, नियम विरुद्ध हो रही इस चकबंदी का विरोध किया है. उन्हें आशंका है कि चकबंदी करा कर बालकृष्ण अपनी दोयम भूमि को किसानों की उपजाऊ भूमि से बदल देंगे.
हरिद्वार में रामदेव के आर्थिक साम्राज्य का तीसरा बड़ा भाग पदार्था-धनपुरा ग्राम सभा के आसपास है. बाबा ने यहां के मुस्तफाबाद, धनपुरा, घिस्सुपुरा, रानीमाजरा और फेरुपुरा मौजों में जमीनें खरीदी हैं. ये जमीनें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के नाम पर शासन की अनुमति से खरीदी गई हैं. आठ जुलाई, 2008 को बाबा को मिली अनुमति में बृहत स्तर पर औषधि निर्माण और आयुर्वेदिक अनुसंधान के उद्देश्य की बात है. पर बाद में यहां फूड पार्क लिमिटेड की स्थापना की गई है. ग्रामीणों के अनुसार पतंजलि फूड पार्क लिमिटेड लगभग 700 बीघा जमीन पर है. 98 करोड़ के इस प्रोजेक्ट पर केंद्र के फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय से 50 करोड़ रु की सब्सिडी (सहायता) मिली है. नौ कंपनियों के इस समूह में अधिकांश कंपनियां रामदेव के नजदीकियों द्वारा बनाई गई हैं. मां कामाख्या हर्बल लिमिटेड में रामदेव के जीजा यशदेव आर्य, योगी फार्मेसी के निदेशक सुनील कुमार चतुर्वेदी और संजय शर्मा जैसे रामदेव के करीबी ही निदेशक हैं. रामदेव के पतंजलि फूड पार्क व झारखंड फूड पार्क को स्वीकृति दिलाने में कांग्रेस के एक केंद्रीय मंत्री का आशीर्वाद साफ-साफ झलकता है. फूड पार्क के उद्घाटन के समय रामदेव ने केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्री के सामने घोषणा की थी कि वे हर साल उत्तराखंड से 1000 करोड़ की जड़ी-बूटियां या कृषि उत्पाद खरीदेंगे. परंतु बाबा ने सरकार से करोड़ों रुपये की सब्सिडी खा कर भी वादा नहीं निभाया. चमोली जिले में जड़ी-बूटी के क्षेत्र में काम करने वाली एक संस्था अंकुर संस्था के जड़ी-बूटी उत्पादक सुदर्शन कठैत का आरोप है कि बाबा ने उत्तराखंड में अभी एक लाख रुपये की जड़ी-बूटियां भी नहीं खरीदी हैं.
पदार्था के राजस्व अभिलेखों को देखने से पता चलता है कि यहां पतंजलि फूड पार्क लिमिटेड, रामदेव, आचार्य बालकृष्ण या उनके किसी नजदीकी व्यक्ति के नाम पर कोई जमीन दर्ज नहीं है. सवाल उठता है कि बिना राजस्व खातों में जमीन दर्ज हुए बाबा को कैसे फूड पार्क के नाम पर बने इस प्रोजेक्ट के लिए सब्सिडी मिली. यह सवाल जब हम राज्य सरकार के सचिव स्तर के  संबंधित अधिकारी से पूछते हैं तो वे बताते हैं, 'हमारे पास कभी फूड पार्क की फाइल नहीं आई, संभवतया यह फाइल सीधे केंद्र सरकार को भेज दी गई हो.'
रामदेव ने हरिद्वार के दौलतपुर और उसके पास के गांवों जैसे बहाद्दरपुर सैनी, जमालपुर सैनीबाग, रामखेड़ा, हजारा और कलियर जैसे कई गांवों में भी बड़ी मात्रा में नामी- बेनामी जमीनें खरीदी हैं. हरिद्वार के एक महंत आचार्य बालकृष्ण के साथ एक बार उनकी जमीनों को देखने गए. नाम न छापने की शर्त पर वे बताते हैं, 'दिन भर घूमकर भी हम बाबा की सारी जमीनें नहीं देख पाए.’ प्राॅपर्टी बाजार के दिग्गज दावा करते हैं कि हरिद्वार में कम से कम 20 हजार बीघा जमीन बाबा के कब्जे में है.
लेकिन रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर राजस्व अभिलेखों में हरिद्वार में लगभग 400 बीघा भूमि ही दर्ज है. सवाल उठता है कि सभी तरह से ताकतवर रामदेव ने आखिर इतनी बड़ी मात्रा में जमीन खरीदने के बाद अपने ट्रस्टों या लोगों के नाम पर जमीन का दाखिल-खारिज क्यों नहीं कराया. इसका जवाब देते हुए कर विशेषज्ञ बताते हैं कि जमीनों का दाखिल-खारिज कराते ही बाबा की जमीनें आयकर विभाग की नजरों में आ सकती थीं इसलिए विभाग की संभावित जांचों से बचने के लिए इन जमीनों को दाखिल-खारिज करा कर राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं कराया गया है.
तहलका ने इन जमीनों के लेन-देन में लगे धन पर भी नजर डाली. पता चला कि बाबा से जुड़े लोग या ट्रस्ट इन जमीनों की रजिस्ट्री तो सर्कल रेट पर करते थे परंतु बाबा ने किसानों को जमीन का मूल्य उसके सर्कल रेट से कई गुना अधिक दिया. उत्तराखंड का औद्योगिक शहर बनने के बाद हरिद्वार में जमीनों के भाव आसमान छू रहे थे. ग्रामीणों की मानें तो बाबा के मैनेजरों ने दलालों को भी गांव में जमीन इकट्ठा करने के एवज में मोटा कमीशन दिया.
जमीनों की खरीद-फरोख्त के सिलसिले में हरिद्वार के उपजिलाधिकारी के न्यायालय में वर्ष 2009 और 2010 में हुए दर्जन भर से अधिक स्टांप अधिनियम के मामले चल रहे हैं. ये मामले पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा पदार्था-धनपुरा गांव के मुस्तफाबाद मौजे में खरीदी गई जमीनों पर स्टांप शुल्क चोरी से संबंधित हैं. इन मामलों में न्यायालय ने पाया कि रजिस्ट्री करते समय स्टांप शुल्क बचाने की नीयत से इन जमीनों का प्रयोजन जड़ी-बूटी रोपण यानी कृषि और बागबानी दिखाया गया. बाबा के लोग रजिस्ट्री कराते हुए यह भी भूल गए कि उन्हें शासनादेश में इस भूमि को खरीदने की अनुमति औषधि निर्माण व अनुसंधान के लिए मिली थी जो कृषि कार्य से हटकर उद्योग की श्रेणी में आता है. ऊपर से पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने इस जमीन को अकृषित घोषित कराए बिना ही इस पर औद्योगिक परिसर स्थापित कर दिया है. कम स्टाम्प शुल्क लगाने में पकड़े गए इन मामलों में हरिद्वार के उपजिलाधिकारी ने पतंजलि योगपीठ पर स्टाम्प चोरी और अर्थदंड के रूप में करीब 55 लाख रु का जुर्माना भी लगाया. पूर्व प्रधान अजब सिंह चौहान का मानना है कि रामदेव के ट्रस्टों और कंपनियों ने हरिद्वार में हजारों रजिस्ट्रियां की हैं और यदि सारे मामलों की जांच की जाए तो उन पर स्टांप चोरी के रूप में करोड़ों रु निकलेंगे.
उपजिलाधिकारी के इन निर्णयों (बायीं तरफ चित्र देखें) को ध्यान से देखने पर साफ दिखता है कि किस तरह झूठे तथ्यों के आधार पर जमीन के सौदों में 90 फीसदी से भी ज्यादा स्टांप शुल्क की चोरी की गई. प्रॉपर्टी बाजार के सूत्रों के अनुसार इन सौदों में किसानों को उपजिलाधिकारी के मूल्यांकन से भी कई गुना अधिक कीमत मिली थी. प्रॉपर्टी बाजार के दिग्गजों के अनुसार पतंजलि फूड पार्क वाले इलाके में बाबा के जमीन खरीदते समय जमीन का सर्किल रेट 35000 रु प्रति बीघा के लगभग था जबकि बाबा ने आठ से 10 लाख रु बीघा तक जमीनें खरीदी हैं. इस तरह कई किसानों को जमीन के एवज में पतंजलि फूड लिमिटेड से पांच से छह करोड़ रुपये तक काला धन मिला है. पतंजलि फेज -1 और फेज-2 के लिए रामदेव ने जमीन सर्कल रेट (10 हजार से लेकर 40 हजार) पर खरीदी गई दिखाई है, लेकिन वास्तव में जमीनें 12 लाख रु बीघा तक में खरीदी हैं. यही तेलीवाला में भी हुआ है. पतंजलि योगपीठ के पास बन रहे महंगे फ्लैटों में भी लोग बाबा की साझेदारी बताते हैं.
इनमें से कई सीधे-सादे गांववालों ने पतंजलि से मिला जमीन का सारा पैसा बैंकों में जमा करा दिया. अब ये ग्रामीण आयकर विभाग की जांच की जद में आ गए हैं. विभाग भले ही आज तक यह पता न कर पाया हो कि रामदेव को हेलिकॉप्टर किसने दान किया लेकिन पतंजलि को अपनी जमीन बेचने के एवज में सर्किल भाव से कई गुना कीमत मिलने के बाद आयकर की जांचों से इन गांववालों की जानें सूख गई हैं. आचार्य प्रमोद कृष्ण कहते हैं, ‘यदि गरीब लोगों पर फेमा के मामले दर्ज होते तो अब तक उनके खाते सील कर उन्हें जेल भेज दिया जाता, लेकिन रामदेव पर केंद्र सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही.’ प्रमोद कृष्ण की शिकायतों पर ही रामदेव के विरुद्ध फेमा के मामले दर्ज हुए हैं और बालकृष्ण के विरुद्ध सीबीआई जांच शुरू हुई है. उनका मानना है कि देश और विदेश में जमकर काला धन लगाने वाले रामदेव केंद्र सरकार को ब्लैकमेल करके अपने विरुद्ध कार्रवाई न होने देने का दबाव बनाने के लिए देश भर में काले धन का विरोध करते घूम रहे हैं.
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Thursday 17 November 2011

पुजारी की करतूत एक मंदिर में हनुमान जी करवाते है लडकियों से बलात्कार



राजकोट जिले के गोंडल नेशनल हाईवे पर स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में सोमवार को लोगों ने यहां के एक साधु को तीन लड़कियों साथ सेक्स करते हुए पकड़ लिया। हनुमान जी के प्राचीन मंदिर में पुजारी द्वारा किए जा रहे इस कृत्य से लोग इतना भड़क गए कि उन्होंने नग्न अवस्था में ही साधु को पीटना शुरू कर दिया। जानकारी के अनुसार लोगों ने उसे अधमरा कर मंदिर से कुछ दूरी पर दोबारा मंदिर में न दिखाई देने की धमकी देकर छोड़ दिया था। लेकिन रात में साधु की लाश नग्न अवस्था में मंदिर से कुछ दूरी पर पड़ी मिली है। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज जांच की कार्रवाई शुरू कर दी है।

हिंदु समाज में साधु और भगवा वस्त्र का सम्माननीय स्थानीय है। साधुओं को धर्मरक्षक, धर्यप्रवर्तक और ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में पूजा जाता है। परंतु अगर यही साधु ही वासना का गंदा खेल मंदिर में ही खेलने लगे तो लोगों की भावनाओं पर किस तरह का आघात होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है।

ठीक ऐसा ही कुछ गोंडल के पास नेशनल हाईवे पर स्थित प्राचीन खिलोरी हनुमानजी के मंदिर में हुआ। इस मंदिर के पुजारी रामदास गुरु श्यामदास नाम के पुजारी को दोपहर के समय लोगों ने एक नहीं, बल्कि तीन लड़कियों के साथ कामक्रीड़ा करते रंगे हाथों पकड़ लिया। जिन लोगों ने साधु को इस हालत में देखा, उन्होंने तुरंत ही आसपास के लोगों को भी यहां बुला लिया और साधु को नग्न अवस्था में ही पीटना शुरू कर दिया और अधमरा कर मंदिर से कुछ दूरी पर दोबारा मंदिर में न दिखाई देने की धमकी देकर छोड़ दिया।

लेकिन रात में पुलिस को साधु की मौत की खबर मिली और वह घटना स्थल पर पहुंची। घटना स्थल पर साधु की लाश पूरी तरह से नग्न अवस्था में थी। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज जांच की कार्रवाई शुरू कर दी है। इस मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। पुलिस के अनुसार साधु के जिस्म पर चोट के निशान नहीं है, इसलिए इसकी भी संभावना है कि शायद शर्म के मारे उसने जहर खाकर आत्महत्या कर ली हो।

इससे पहले भी दो लड़कियों के साथ पकड़ा जा चुका था :
पुजारी रामदास इस हनुमान मंदिर में पिछले 10 वषों से रह रहा था। लोगों के अनुसार उसे पहले भी दो लड़कियों के साथ पकड़ा जा चुका था।

बलात्कारी है इन्द्र देवता


बलात्कारी इन्द्र 
हिन्दू धर्म में संबंधो में विवाह के खिलाफत की जाती है अपने को उत्तम समझने वाले इस धर्म के कई किस्से और सत्य आपको बता चूका हु जैसे ब्रह्मा ने अपनी पुत्री से विवाह किया विष्णु ने व्यभिचार किया इत्यादि अब इस धर्म के कथित भगवन (इस शब्द पर आप अप्पति न करे क्यों की कथित उसको कहते है जिसको सभी न माने)
इन्द्र द्वारा परे इस्त्री का छल से किया बलात्कार आपके सामने लाता हु
धर्म ग्रंथो में रामायण का उल्लेख करते हुवे आपको यह घटना बता रहा हु जिसका उदहारण आपको शास्त्रों में भी मिल जायेगा
घटना कुछ इस प्रकार है की ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या काफी सुन्दर थी जिनपर कथित भगवन इन्द्र की गन्दी नज़र थी अक्सर ऐसा होता था की जब ऋषि घर पर न हो तो इन्द्र जाकर अपनी वासना शांत करते थे वो भी ऋषि के भेस में एक दिन ऋषि इसनान करने गए हुवे थे तभी इन्द्र अपनी वासना शांति के लिए ऋषि का भेष बनाकर अहिल्या के पास पहुचे और अपनी वासना बुझा रहे थे की तभी ऋषि गौतम को शंका हुई और वह वापस अगये उन्होने अपनी पत्नी को नग्न अवस्था में देखा और अपनी पत्नी और इन्द्र दोनों को श्राप दे दिया |
इस प्रकार की काम वासना शांत करने को बलात्कार की श्रेणी में रक्खा जाता है इससे यह सिद्ध होता है की भगवन भगवन न होकर एक बलात्कारी आम मनुष्य है जिसका कोई धर्म इमां नहीं होता क्योकि भगवन को काम वासना या फिर किसी प्रकार की इच्छा नहीं होती ये इन्द्र केवल एक बलात्कारी पुरुष है और काम वासना इसके रोम रोम में बसी है
ऐसे को भगवन अथवा देवता अगर कहा जाता है तो फिर रावन को राक्षस क्यों कहा जाता है वो तो सिर्फ हरण करके ले गया था और यहाँ कथित भगवन ने बलात्कार किया है अतः इन्द्र को देवता नहीं राक्षस कहना उचित होगा



Tuesday 15 November 2011

अग्निवेश का भ्रष्टाचार एक मकान को गुंडई में कब्जियाया

सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश विवादों से अपना पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं। नई दिल्ली के पॉश लुटियंस जोन में मौजूद 7, जंतर मंतर रोड बंगले में वह पिछले 20 सालों से रह रहे हैं, लेकिन आज तक किराया नहीं चुकाया है। बंगले का मालिकाना हक रखने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल ट्रस्ट (एसवीबीपीटी) के प्रबंध ट्रस्टी वीरेश प्रताप चौधरी का कहना है कि उन्होंने एनडीएमसी समेत कई दफ्तरों में इस बाबत शिकायत की है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।

अग्निवेश के फेसबुक अकाउंट और उनकी वेबसाइट पर भी पते के तौर पर 7, जंतर मंतर रोड दर्ज है। एसवीबीपीटी ने बंगले के अलग-अलग हिस्सों को किराया पर दिया हुआ है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर में दावा किया गया है कि चौधरी से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा था कि वह स्वामी अग्निवेश को कुछ दिनों तक 7, जंतर मंतर रोड बंगले में रहने दें। लेकिन चौधरी का कहना है कि स्वामी अग्निवेश ने कभी भी बंगला छोड़ा ही नहीं। चौधरी ने जब चंद्रशेखर से इस बाबत बात की तो उन्होंने कहा, ‘साधु लोग जहां जाते हैं, वहीं बस जाते हैं।’ 
कई दशकों से स्वामी अग्निवेश के सहयोगी रहे स्वामी आर्यवेश ने भी किराया न चुकाए जाने की पुष्टि की है, लेकिन उनका दावा है कि बंधुआ मुक्ति मोर्चा नाम से बिजली, पानी और रखरखाव के बिल का भुगतान किया जा रहा है। स्वामी अग्निवेश से जुड़े गैर सरकारी संगठनों-बंधुआ मुक्ति मोर्चा और सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के भी दफ्तर इस बंगले के पीछे के हिस्से में मौजूद हैं।

गौरतलब है कि टीम अन्ना के सदस्य रहे अग्निवेश पिछले दिनों बिग बॉस के पांचवें संस्करण में बतौर पर मेहमान शामिल हुए थे। इसके बाद उनकी तीखी आलोचना हुई थी।

Sunday 13 November 2011

बैलगाड़ी यूग में जीने को मजबूर काशी(वाराणसी)


हमारा मुल्क २१वि सदी को chala गया है और हम २१वि सदी में आगे बढ़ चुके है मगर भारत को सबसे जादा पर्यटन से लाभ देने वाला अपने उत्तर प्रदेश का बनारस (वाराणसी) आज भी बैलगाड़ी यूग में जीने को मजबूर है, इसका उदहारण यहाँ हर रोज़ देखने को मिल जाता है आज इस अदने इंसान को भी ऐसा ही महसूस हुवा
वक्त था शाम के ४ बजे का मै बनारस में आज सुबह आया और कुछ कामो की नियत करके अपनी मोटर साइकिल लेकर सड़क पर निकल गया लगभग ४ सालो के बाद आज मैने बनारस की सडको पर मोटर साइकिल चलाई. पूरे रास्तो में मुझे भीड़ कुछ जादा दिखाई दी वजह थी की आज UPTET की परीक्षा थी और बनारस को इसमे से लगभग एक लाख सत्तर हज़ार की परीक्षा का सौभाग्य मिल गया था उसपर आज ही देश के सबसे इमानदार नेताओ में से एक श्री श्री अमर सिंह जी की सभा भी थी फिर क्या बनारस के कप्तान साहेब सब कुछ भूल लग गए आदरणीय नेता जी के स्वागत में नतीजा कुछ एकदम अलग रहा सारी ट्राफिक रोक कर आदरणीय को लाया गया और लेजयागाया | फिर क्या था पूरा शहर जाम के शिकंजे  में कस गया मै भी एक जनता हु और फस रहा आपको जानकार आश्चर्य होगा की मुझे लगभग १५० मीटर का सफ़र मोटर साइकिल  से पूरा करने में मुझे ३ घंटे लगे और ट्राफिक को कंट्रोल करने के लिए शहर में चाँद पुलिस वाले फिर क्या हाल रहा होगा आप सोच ले मै  मोटर cycal  से था वह हालात ये थे के पैदल चलने वालो को भी जगह नहीं थी
ये रोज़ मर्रा का काम है यहाँ का अपराधियों का हौसला बुलंद है ४ दिनों में २ लूट हो चुकी है और दोनों शहर के सबसे व्यस्त चौराहे पर और कप्तान साहेब का वही बयान की बहुत जल्द ही पकड़ लेंगे नतीजा जीरो है |
 मुजसे एक sajjan ने पूछा bhai आपको ३ सालो में क्या फर्क लगा शहर में मैने जवाब दिया की कोई ख़ास नहीं बस पहले इतना चलने में मुझे ३-४ मिनट अधिकतम लगते थे आज ३ घंटे लगे baki सब एक जैसा है 
इस शहर के सांसद है आदरणीय श्री श्री श्री 10000008 मुरली मनोहर जोशी जी जो चुनाव जीतने के बाद अज तक वापस शहर नहीं आये यहाँ तक हो गया की bhajapa के ही कुछ लडको ने अपना विरोध दर्ज करते हुवे मुरली मनोहर के गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने पर दर्ज करवाई मगर हमारे देश के ये महान नेता को शर्म नहीं ए और फिर भी wo नहीं आये  अब आप समझ लीजिये की इस शहर की क्या इस्थिति होगी ...............
यहाँ का  ऑटो भाड़ा भी एकदम आस्मां की ऊंचाई पर है और यहाँ का प्रशासन ऑटो संगठन के आगे हमेशा नतमस्तक रहता है छोटी ऑटो में ५-६ सवारिय और २.५ किलोमीटर के सफ़र का भाडा १२ रुपया सवारी रात को पित्रोल का रेट एक रुपया बाधा सुबह २ रुपया ऑटो भाडा बाधा और अगर कम हुवा दाम तो भाडा कम नहीं होगा और अगर प्रशासन ने कोई कार्यवाही करने का मन बनाया तो हड़ताल और फिर प्रशासन से नूर कुश्ती फिर मांग पूरी हो जाती है इनकी ५ किलोमीटर की paridhi में बसे इस शहर के पास सिकल रिक्शा है लगभग डेढ़ लाख और लिसेंसे है केवल २५ हज़ार का
अब आप समझ सकते है की यहाँ क्या अंधेर नगरी है..........................

Saturday 12 November 2011

श्री राम सेना


एक टीवी चैनल ने अपने स्टिंग ऑपरेशन में इस बात का खुलासा किया है कि टीम अन्ना के सदस्यों पर हमला करने वाली श्री राम सेना के सदस्य अब कई और लोगो को निशाना बना सकते हैं | स्टिंग ऑपरेशन में इन युवकों ने बताया कि टीम अन्ना के सदस्यों पर सिर्फ पैसे के लिए हमला किया गया था। 
शिव सेना ने दिया था भूषण को पीटने का इनाम -
स्टिंग ओपरेशन के दौरान खुफिया कमरे के सामने बोलते हुए श्री राम सेना के इंदर वर्मा के दोस्त अरुण उपाध्याय ने स्टिंग में बताया कि भूषण पर हमला करने के बाद शिवसेना के एक सीनियर लीडर ने उन्हें लैपटॉप और सेलफोन दिए। अरुण दावा करता है कि उन्हें बाल ठाकरे ने मातोश्री बुलाया है। अरुण उपाध्याय ने स्टिंग में यह भी बताया संजय राउत उसके दोस्त हैं।
मेघा पाटकर को पीटेंगे -
प्रशांत भूषण को पीटने वाले श्री राम सेना  के युवको इंदर वर्मा और विष्णु गुप्ता ने कहा कि उनका अगला निशाना मेधा पाटकर हैं और  वे 10 दिसंबर को मेधा पाटकर पर हमला करेंगे। स्टिंग ऑपरेशन में उसने कहा अगला हमला मेधा पाटकर पर होगा, उसने कहा कि इस काम के लिए  कुछ महिलाएं तैयार की हैं,  नहीं तो केस लग जाएगा कि महिला पर हाथ उठाया है ।’ उसका कहना था कि मेधा पाटकर भी आजकल  कश्मीरियत पर कुछ ज्यादा ही बोल रही हैं। इंदर वर्मा ने कहा कि वह दिल्ली में अन्ना के मुंह पर कालिख भी पोतेगा। 

Friday 11 November 2011

हिन्दुत्व की राजनीति


राज ठाकरे हिन्दुत्व की राजनीति की खुराक पर बड़े हुए हैं. हिन्दुत्व की राजनीति की बुनियाद मुस्लिम विरोध पर टिकी हुई है. कभी-कभी यह इसाई विरोध के रूप में भी दिखाई देती है. पर राज ठाकरे को ऐसा समझ में आया कि शिव सेना से अलग होने एवं महाराष्ट्र के पिछले स्थानीय निकायों के चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राजनीति में अपने को स्थापित करने के लिए उनके लिए उत्तर भारतियों के विरोध की राजनीति करनी आवश्यक थी. सो उन्होंने किया.

ऐसा लगा जैसे मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने वाली मशीन का मुंह उत्तर भारतीयों की तरफ मोड़ दिया गया हो. मामला उनके नियंत्रण के इस कदर बाहर निकल गया कि उनके राजनीतिक सहयोगियों के लिए उनकी कार्यवाइयों को जायज ठहराना मुश्किल हो गया.

राज ठाकरे ने जो मुद्दा उठाया है वह उन्हीं पर भारी पड़ रहा है. उत्तर भारतीय लोग तो मुम्बई, पंजाब, गुजरात, कोलकाता ही नहीं दुनिया के कई इलाकों में, जहां-जहां मजदूरों की जरूरत थी वहां, जा कर बसे हैं. ये वो काम करते हैं जो स्थानीय लोग नहीं करते. अक्सर ये काम काफी श्रम की मांग करते हैं.

उदाहरण के लिए बोझा उठाने का काम मुम्बई में महाराष्ट्र के लोग नहीं करते. अत: राज ठाकरे का यह कहना कि उत्तर भारतीय लोग मराठी लोगों का रोजगार छीन रहे हैं पूर्णतया सही नहीं है. यदि उत्तर भारतीय लोग मुम्बई में जिन कामों में लगे हुए हैं उनसे अपने हाथ खींच लें तो मुम्बई की अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी. यही हाल भारत व दुनिया के अन्य इलाकों का है जहां उत्तर भारतीय लोगों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करने का काम किया है.
अब तो देश के बड़े-बड़े हिन्दुत्ववादी नेता साध्वी प्रज्ञा ठाकुर व श्रीकांत पुरोहित के पक्ष में उतर आए हैं. क्या यह कोई बरदाश्त करेगा कि मोहम्मद अफजल गुरू या फिर अजमल आमिर कसब को कोई चुनाव लड़ाए?
एक तरफ अपना खून-पसीना बहा कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को सींचने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ क्षेत्रवाद की संर्कीण घिनौनी राजनीति करने वाले राज ठाकरे जिन्होंने निरीह लोगों को हिंसा का शिकार बनाया. यह निष्कर्ष निकालना बहुत मुश्किल नहीं है कि कौन देश-समाज के हित में काम कर रहा है, कौन उसके विरोध में?

पूरा देश आवाक तो इस बात से है कि जिन महाराष्ट्र के लोगों पर राज ठाकरे को बहुत नाज़ था उनमें से ही कुछ लोग देश में आतंकवादी कार्यवाइयों को अंजाम देने में मुख्य साजिशकर्ता की भूमिका में थे. यह कितने शर्म और खतरे की बात है कि सेना में काम करने वाला लेफटिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित इन कार्यवाइयों में शामिल था. साध्वी-साधुओं की लिप्तता भी कम चौंकाने वाली नहीं है. देश की रक्षा करने की जिम्मेदारी स्वीकार किए हुए तथा समाज को अध्यात्मिक दिशा देने वाले व्यक्ति देश-समाज को अंदर से ही आघात पहुंचा रहे होंगे इसकी किसी को कल्पना ही नहीं थी.

देश में होने वाली आतंकवादी कार्यवाइयों के लिए पहले पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों व उसकी खुफिया संस्था को जिम्मेदार ठहराया जाता था. फिर बंग्लादेश के आतंकवादी संगठन का नाम आने लगा. अंत में यह कहा जाने लगा कि देश का ही मुस्लिम युवा संगठन सिमी इन कार्यवाइयों के लिए जिम्मेदार है. देश के कई इलाकों से मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारियां भी हुईं. किन्तु इनके खिलाफ आतंकवादी कार्यवाइयों में शामिल होने के कोई ठोस सबूत नहीं हैं. सिर्फ पुलिस हिरासत में उनके इकबालिया बयान के आधार पर ही कई मुस्लिम युवाओं को लम्बे समय तक पुलिस या न्यायिक हिरासत में रखा गया है. इनमें से अधिकांश को पुलिस की घोर मानसिक-शारीरिक यातनाओं का शिकार भी होना पड़ा है.

दूसरी तरफ आतंकवादी घटनाओं में लिप्त होने के जो भी सबूत मिले हैं वे हिन्दुत्ववादी संगठनों के खिलाफ हैं. अप्रैल 2006 के नांदेड़ में दो बजरंग दल के कार्यकर्ता एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े व्यक्ति के घर में बम बनाते हुए विस्फोट में मारे गए. तेनकाशी, तमिल नाडू, में जनवरी 2008 में रा.स्व.सं. के स्थानीय कार्यालय पर हुए हमले में संघ के ही सात कार्यकर्ता पकड़े गए. जून 2008 में ही महाराष्ट्र के गड़करी रंगायतन में हुई घटनाओं में भी हिन्दुत्ववादी संगठनों के ही कार्यकर्ता पकड़े गए.

24 अगस्त, 2008 को कानपुर में हुए एक बम विस्फोट में बजरंग दल के दो कार्यकर्ता मारे गए. और अब तक के सबसे बड़े खुलासे में मालेगांव व मोडासा बम विस्फोट की घटनाओं में हिन्दुत्ववादी संगठनों से जुड़े कई कार्यकर्ता अब तक गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इसमें सबसे चौंकाने वाला पहलू है रा.स्व.सं. की सेना जैसे संगठन में घुसपैठ.

पहले शरारतपूर्ण ढंग से यह प्रचारित किया गया कि हरेक आतंकवादी मुस्लिम ही होता है. आतंकवादी घटनाओं में गिरफ्तार मुस्लिम युवाओं की कोई वकालत न करे इसके लिए वकीलों के संगठनों ने प्रस्ताव पारित किए. लखनऊ, फैजाबाद, धार, आदि, जगहों में जो वकील आतंकवादी घटनाओं के अभियुक्तों के पक्ष में खड़े हुए तो उनके साथ हाथा-पाई तक की गई. कहा गया कि आतंकवादियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हो सकता. विवेचना के पहले ही तथा बिना कोई मुकदमा चले ही अभियुक्तों को पुलिस-वकील-मीडिया आतंकवादी मान लेते थे.

अब तो सारा समीकरण ही उलट गया है. गोडसे व सावरकर की परिवार से जुड़ी एक महिला आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए हिन्दू अभियुक्तों के लिए चंदा इकट्ठा कर रही हैं. इनसे हम उम्मीद भी क्या कर सकते थे? अब हिन्दुत्ववादी वकीलों को कोई दिक्कत नहीं है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने हमेशा बिना सबूत के गिरफ्तारी, पुलिस हिरासत में लम्बे समय तक रखने, पुलिस द्वारा यातनाएं देने, नारको परीक्षण, आदि, का विरोध किया है. किन्तु अभी तक यह बहस मुस्लिम अभियुक्तों या नक्सलवाद से जुड़े होने के आरोप में पकड़े गए अभियुक्तों के संदर्भ में होती थी. तब मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर आतंकवाद या नक्सलवाद के समर्थक होने के आरोप भी लगते थे. कहा जाता था कि मानवाधिकार कार्यकर्ता आतंकवादी या नक्सलवादी घटनाओं के शिकार लोगों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं.

अब तो देश के बड़े-बड़े हिन्दुत्ववादी नेता साध्वी प्रज्ञा ठाकुर व श्रीकांत पुरोहित के पक्ष में उतर आए हैं. ऐसा नहीं दिखाई पड़ता कि वे उन आतंकी घटनाओं, जिनके लिए हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ता पकड़े गए हैं, में मारे गए साधारण निर्दोष लोगों के प्रति जरा भी संवेदनशील हैं. शिव सेना श्रीकांत पुरोहित को चुनाव लड़ाना चाहती है तो उमा भारती प्रज्ञा ठाकुर को. क्या यह कोई बरदाश्त करेगा कि मोहम्मद अफजल गुरू को कोई चुनाव लड़ाए?

हिन्दुत्ववादी संगठन न सिर्फ परोक्ष रूप से हिंसा का या हिंसा करने वालों का समर्थन कर रहे हैं बल्कि काफी बेशर्मी पर उतर आए हैं. देश को इन्होंने काफी नुकसान पहुंचाया है. चाहे महात्मा गांधी ही हत्या हो अथवा बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना. इनकी गतिविधियों की वजह से देश में हमेशा अस्थिरता पैदा हुई है. ये देश में नफरत फैला कर समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करना चाहते हैं. इनको बेनकाब किया जाना बहुत जरूरी है. इनकी असली रूप अब सामने आ रहा है. राष्ट्रवाद का नारा तो से अपनी देश-विरोधी गतिविधियों को छुपाने के लिए देते हैं. देश-समाज को इनसे बचाने की जरूरत है. आम धार्मिक हिन्दुओं को अपने आप को हिन्दुत्ववादी संगठनों से अलग कर लेना चाहिए ताकि हिन्दू धर्म की सहिष्णुता की छवि बची रहे.

बेपर्दा होता हिन्दू आतंकवाद


रमजान के महिने में महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल मालेगांव और गुजरात के साबरकांठा जिले के अल्पसंख्यक बहुल मोडासा में लगभग एक ही वक्त एक ही तरीके से बम विस्फोट हुए। एक ऐसे वक्त में जब लोग ईद की तैयारियों के लिए निकले थे, उस वक्त कहीं खड़े किए गए दुपहिया वाहनों ने विस्फोटकों के जरिए मौत को उगला।  अगर मोडासा में अयुब नामुभाई घोरी का 15 साल का शहजादा मारा गया तो मालेगांव में पांचवी कक्षा की छात्रा सबा परवीन और तीन लोग वहीं ठौर मारे गए।
अक्सर जिस तरह समुदायविशेष पर दोषारोपण का सिलसिला चलता है, वही बात इन बम विस्फोटों के बारे में भी उछाली गयी थी, लेकिन कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अफसरों द्वारा की गयी निष्पक्ष जांच से यही नतीजा सामने आया है कि इन दोनों बम विस्फोटों में हिन्दु आतंकवादी समूहों का हाथ है। 23 अक्तूबर को 'इण्डिया न्यूज' चैनल ने भी इस मामले में अपनी विशेष प्रस्तुति दी।
इण्डियन एक्स्प्रेस में (23 अक्तूबर 2008) के मुताबिक उसे 'महाराष्ट्र पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से जो सूचना मिली है वह बताती है कि इन विस्फोटों को कथित तौर पर इन्दौर में सक्रिय हिन्दु अतिवादी समूह 'हिन्दु जागरण् मंच' ने अंजाम दिया था, जिसका करीबी रिश्ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से है।' पुलिस के मुताबिक इन आतंकवादियों ने जांच अधिकारियों को गुमराह करने के लिए वहां इस्लामिक स्टीकर्स भी रख दिए थे, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसे सूत्र भी छोड़े थे कि वे पकड़ में आ गए। जांच दल ने जब बम विस्फोट के लिए मालेगांव में इस्तेमाल की गयी स्कूटर की जांच की तब उन्होंने पाया कि ' वह एक एलएमएल फ्रीडम ब्राण्ड स्कूटर थी जिसमें अन्य वाहनों से भी पार्ट डाले गए थे और चासिस एवम इंजिन नम्बर भी मिटा दिया गया था। लेकिन स्कूटर की निर्मिति का वर्ष, डीलरों के रेकॉर्ड और अपराधविज्ञान शाखा के विशेषज्ञों की सहायता से इसके सूत्र गुजरात तक भी जाते दिखे। मोडासा के बम विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल एक ऐसे व्यक्ति की मालकियत की थी जो कथित तौर ''अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद'' की पृष्ठभूमि से था और इस काण्ड को अंजाम दिया था हिन्दू जागरण मंच के कारिन्दों ने जिन्होंने अपना कार्यालय इन्दौर स्थित एक गैरसरकारी संगठन के दफ्तर में बनाया है।''
गौरतलब है कि महाराष्ट्र पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों ने इस मामले की पुष्टि की लेकिन मामले की सम्वेदनशीलता को देखते हुए आधिकारिक तौर पर कुछ वक्तव्य देने से इन्कार किया। उनका कहना था कि केन्द्रीय एजेन्सियों को इसके बारे मे बताया गया है। इस बात को रेखांकित करना यहां जरूरी है महाराष्ट्र के जिस आतंकवाद विरोधी दस्ते ने हेमन्त करकरे की अगुआई में इस मामले की जांच की, उसी ने कुछ माह पहले महाराष्ट्र के ठाणे और वाशी जैसे स्थानों पर हुए रहस्यमय बम विस्फोटों की गुत्थी भी सुलझायी थी। इन बम विस्फोटों में 'सनातन संस्था' और 'हिन्दू जनजागृति समिति' जैसे अतिवादी संगठनों के कार्यकर्ता पकड़े गए थे, जिनके खिलाफ पिछले दिनों 1,020पन्नों की चार्जशीट भी दायर कर दी गयी है।
वैसे सबा परवीन को अभी भी यह ग़म साता रह है कि आखिर उसने क्यों अपनी छोटी बहन फरहीन को उस दिन पकौड़ा लाने के लिए भिक्खु चौक भेजा। उसे क्या पता था कि पांचवी कक्षा में पढ़ रही दस साल की फरहीन के लिए वहां भिक्खु चौक पर मौत दबे पांव खड़ी है ? (29 सितम्बर 2008)
सूबा महाराष्ट्र के मालेगांव में रमज़ान के दिनों में हुए उस बम विस्फोट ने शेख लियाकत वहीउद्दीन के समूचे परिवार को गोया बिखेर दिया है।  फरहीन के पिता लियाकत का घर भिक्खु चौक से महज 100 फीट पर दूरी पर है। तीन बेटियों और दो बेटों के पिता शेख लियाकत आजभी उस दिन को याद करके सिहर उठते हैं। वाडिया अस्पताल में उन्होंने अपनी बड़ी नाज़ से पाली फरहीन के अचेत शरीर को देखा था, तो दोनों बेहोश हो गए थे।
अकेली फरहीन ही नहीं उस दिन विस्फोटकों से लदी उस मोटरसाइकिल ने तीन अन्य लोगों को लील लिया था। 'सिमी' के पुराने दफ्तर के पास घण्टों खड़ी इस मोटरसाइकिल के बारे में इलाके के लोगों ने पुलिस को सूचना भी दी थी, लेकिन पुलिसवाले तभी पहुंचे जब विस्फोटकों ने वहां मौत का खेल खेला था।
मालेगांव में ईद के पहले हुए इन बम विस्फोटों ने दो साल पहले के उन बम विस्फोटों की याद ताज़ा की थी जब शब ए बारात के दिन - शहर के मस्जिदों एवं अन्य मुस्लिम बहुल इलाके में जब वहां लोग भारी संख्या में एकत्रित होते हैं - बम विस्फोट हुए थे, जिसमें 40 अल्पसंख्यक मारे गए थे। इस बम विस्फोट में हिन्दु आतंकवादी समूहों की सहभागिता के प्रमाणों को देखने के बावजूद, जहां एक ऐसी लाश भी बरामद हुई थी जिसने एक नकली दाढ़ी लगायी थी, पुलिस ने एकतरफा गिरफ्तारियां की थीं। आज भी इनमें से कई लोग जेल में बन्द हैं। दो साल पहले सीबीआई जांच की मांग भी मान ली गयी थी, लेकिन वह जांच भी अंधा गली में पहुंच गयी है।
हर बम विस्फोट के बाद समुदाय विशेष को ही निशाने पर रखने के रवैये के खिलाफ मालेगांव के मुसलमानों ने रोष प्रदर्शन किया था। इलाके के मंत्री बाबा सिद्दीकी से बात करते हुए समुदाय के नेताओं ने कहा था 'आप मन्दिरों में बम धमाकों के लिए सिमी को जिम्मेदार मानते हैं, आप बाजार में हुए बम धमाकों के लिए सिमी को जिम्मेदार मानते हैं, आप मस्जिदों में हुए बम धामाकों के लिए सिमी को जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन यह हमला तो सिमी के बन्द पड़े दतर के बाहर हुआ है। अब आप किसे दोष देंगे।'( मेल टुड,3 अक्तूबर 2008)
यह बात विदित है कि अल्पसंख्यकों की अच्छी खासी आबादी वाले मालेगांव के बम विस्फोट की ही तरह गुजरात के सांबरकांठा जिले मोडासा के अल्पसंख्यक बहुल इलाके में उसी वक्त उसी तरह से बम विस्फोट हुआ था। मोडासा में रात को 9.26 मिनट पर हुए बम विस्फोट में अयूब नामूभाई गोरी का 15 साल को इकलौता बेटा मारा गया था तो चन्द मिनटों बाद मालेगांव में बम विस्फोट हुआ था। ईद के पहले भीड़भाड़वाले इलाके में मोटरसाइकिलों पर रखे गए इन विस्फोटकों के जरिए अधिक से अधिक लोगों को मारने की योजना थी क्योंकि उनका समय ऐसे ही तय किया गया था जब लोग रमज़ान का उपवास खतम करके बाहर निकले हों।
वे सभी जो मुल्क में अंजाम दिए जानेवाले बम विस्फोटों पर नज़र रखे हुए हैं आप को बता सकते हैं कि जहां तक बजरंग दल जैसे अतिवादी हिन्दू संगठन का ताल्लुक है - जिससे सम्बध्द लोग देश के अलग-अलग भागों में अंजाम दिए गए बम विस्फोटों में पकड़े गए हैं या दुर्घटना में मारे गए हैं - उसे अपनी करतूतों को अंजाम देने के लिए मोटरसाइकिल जैसा दुपहिया वाहन मुफीद जान पड़ता है। अप्रैल 2006 में महाराष्ट्र के नांदेड में लक्ष्मण राजकोण्डवार नामक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के घर जो बम विस्फोट हुआ था, जिसमें संघ-बजरंग दल का कार्यकर्ता हिमांशु पानसे और राजकोण्डवार का बेटा राजीव मारे गए थे, उसके बाकी अभियुक्तों ने अपने नार्कोटेस्ट में पुलिस को बाकायदा बताया था कि इसके पहले महाराष्ट्र के परभणी (2003), जालना (2004), पूर्णा जैसे स्थानों में जो बम विस्फोट किए गए थे, उसमें उनके ही लोगों का हाथ था। इन 'रहस्यमय बम धामाकों में' मोटरसाइकिल पर सवार आतंकवादियों ने नमाज के लिए एकत्रित मुस्लिम समुदाय पर बम फेंके थे। नांदेड बम धामाकों में मारे गए हिमांशु और राजीव के घर पर जब पुलिस ने छापा मारा था तो उन्हें न केवल नकली दाढ़ी मिली थी बल्कि ऐसे कपड़े भी मिले थे, जो आम तौर पर मुस्लिम समुदाय द्वारा पहने जाते हैं। इलाके में मस्जिदों के नक्शे भी वहां से बरामद हुए थे।
इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि पुलिस एवम मीडिया के संचालन में साम्प्रदायिक सहजबोधा बहुत हावी रहता है, इस बात का आकलन करना बहुत मुश्किल है कि आगे क्या होगा ? मालेगांव और मोडासा के बम धामाकों को अंजाम देनेवाले हिन्दू आतंकवादी भले पकड़े गए हों, लेकिन चाहे नांदेड बम विस्फोट हों या अगस्त के आखरी सप्ताह में सामने आया कानपुर बम धामाका हो - जिसमें बजरंग दल - संघ के दो कार्यकर्ता राजीव मिश्रा और भूपेन्द्र सिंह मारे गए थे, ऐसे कई मामलों में पुलिस एवम जांच एजेन्सियों की लिपापोती जगजाहिर है। कानपुर बम धामाकों में राजीव मिश्रा एवम भूपेन्द्र सिंह के जिन दो सहयोगियों का नार्को टेस्ट कराया गया था, जिसमें उन्होंने कानपुर आई आई टी के एक प्रोफेसर एवम विश्व हिन्दू परिषद के एक स्थानीय नेता का नाम लिया था। उन्होंने पुलिस को यहभी बताया था कि फिरोजाबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में बम धमाकों को अंजाम देने की जो साजिश इन आतंकवादियों ने रची थी, उसके असली मास्टरमाइंड वहीं थे। यह जुदा बात है कि पुलिस दल इनसे सामान्य पूछताछ करने भी नहीं गया।
अगर हम देश भर में 2006 के बाद हुए बम विस्फोटों पर नज़र डालें तो यह बात साफ दिखाई देती है कि कमसे कम पांच ऐसे बम धमाके हैं जिनमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया, उनके धाार्मिक स्थानों को नुकसान हुआ और आज भी उन्हें सुलझाया नहीं जा सका है। पिछले दिनों 'मेल टुडे' में प्रकाशित अमन शर्मा की रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया था (3 अक्तूबर 2008) दिल्ली का जामा मस्जिद बम विस्फोट (14 घायल, अप्रैल 2006)जहां निम्न तीव्रता वाले बम पालिथिन के पैकटों में रखे थे। यह मामला आज भी लम्बित है। मालेगांव (40 मौतें, 8सितम्बर 2006) जिसमें शब-ए-बारात के दिन मस्जिदों के बाहर बम रखे गए थे - जिनमें आरडीएक्स एवम अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया था, यह मामला आजभी अनसुलझा है। समझौता एक्स्प्रेस में बम विस्फोट(66 मौत, 18 मई 2007) जिसमें छह बमों का प्रयोग हुआ था, इसमें भी कोई प्रगति नहीं हुई है और न ही किसी संगठन को दोषी बताया गया है। मक्का मस्जिद बम विस्फोट (11 मौतें, 18 मई 2007) जिसमें मक्का मस्जिद के अन्दर दो बक्सों में बम रखे गए थे, ये मामले भी फिलवक्त सीबीआई के पास पड़े हैं। अजमेर शरीफ बम धमाकों     (3 मौतें, 11 अक्तूबर 2007) की जांच भी अभी किसी नतीजे तक नहीं पहुंची है, इसमें दो टिफिन बक्सों में अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग किया गया था और मोबाइल फोन से बम धामाके किए गए थे।

बजरंग दल के आतंकवादियों को पुलिस की मिली भगत से आजादी मिली

कानपुर के राजीव नगर थाना क्षेत्र में २४ अगस्त २००८ को बजरंग दल कार्यालय में हुवे बम विस्फोट में पुलिस ने आखिर अपनी क्लोसेर रिपोर्ट डाल दी और  दिखाया गया की केस चलाने योग्य साक्ष्य नहीं था | आप केस की तफ्तीश को समझ सकते है की कितनी मुस्तैदी से हुई होगी................. आइये पूरे प्रकरण पर एक नज़र डालते है....|
यह घटना है २४ अगेस्ट २००८ की है जब देश के अलग अलग हिस्से में बम फोडे जा रहे थे देश के आम जनता मर रही थी और नेता परेता घडियाली आंसू बहा रहे थे ठीक उसी वक्त कानपूर के कल्यानपुर थाना क्षेत्र के राजीव नगर इलाके में बजरंग दल कार्यालय में बम बनाते हुवे फट जाने से बजरंग दल के दो खूखार आतंकवादी सदस्य राजीव मिश्र और भूपेंद्र सिंह मारे गए पड़ताल चालू हुई नतीजा एकदम चौकाने वाला था मृतक के घरो की तलाशी और कार्यालय की तलाशी ली गए  जहा विस्फोटक पदार्थो का जखीरा बरामद हुवा |
फारेंसिक जाँच में यह तथ्य साफ़ हुवा की देश में होने वाले सारे बम विस्फोटो में इस्तिमाल होने वाले पदार्थो से ही यह बम बन रहा था साथ ही यह भी साफ़ हो गया की सुनील जोशी से बैंको द्वारा काफी आर्थिक सहायता भी मिली थी इन आतंकवादियों को फोने के रिकार्ड खागाल्नी पर पता चला की इन लोगो के सम्बन्ध सुनील जोशी,साध्वी प्रज्ञा ठाकुर,दयानंद पाण्डेय,लोकेश शर्मा,पूर्व मेजर प्रभाकर कुलकर्णी से लगातार सम्बन्ध रहे है और अनेको आतंकी घटनाओ का षड्यंत्र रचा गया था और अनेको आतंकी घटने की गयी थी |
इसके बाद मृतक राजीव मिश्र के घर के पास छुपाकर रक्खा एक विस्फोटको का जखीरा बरामद हुवा और यह जखीरा इतना था की किसी शहर को उड़ने के लिए काफी था इन सबके बाद भी पुलिस ने कार्यवाही नहीं की और केस को ठंडे बस्ती में दाल दिया गया फिर सी0बी0आई० द्वारा कार्यवाही को आगे बढाया गया और कार्यवाही भेदभाव पूर्ण रही भेदभाव का ही नतीजा है की इसके केस नम्बर 816 / २००८ U \ S 286 / 304 A IP CAND 3 /4 /5 Explosive Act.के तहत चलने वाली कारवाही अब ठंडे बस्ते में चली गयी है |
यही यह कांड किसी मुस्लिम संगठन के कार्यालय में हुवा होता तो देश के ये ठेकेदार इस संगठन को प्रतिबंधित करते और आतंकी संगठन घोषित करते परन्तु यहाँ बात बजरंग दल की थी सभी साँस खीच कर बैठ गए है और किसी में कुछ करने की क्षमता नहीं है |
हम देश प्रेम करने वाले असली भारतीयों से इल्तिजा करते है की महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिख कर इसकी जाँच NIA से करवाने का आग्रह करे |
    

Saturday 5 November 2011

इस्लाम में मांसाहार

इस्लाम में मांसाहार, और इसके लिए जानवरों की हत्या का प्रावधान हिंसात्मक तथा निर्दयतापूर्ण है; इससे मुसलमानों में हिंसक प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। ईद-उल-अज़हा के अवसर पर पशु-बलि (क़ुरबानी) की सामूहिक रीति में यह निर्दयता व्यापक रूप धारण कर लेती है। क्या यह वही इस्लाम है जिसका ईश्वर ‘अति दयावान’ है? यह कैसा दयाभाव, कैसी दयाशीलता है?’’

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क़ुरबानी-हिंसा, हत्या, निर्दयता? इस विषय के कई पहलू हैं। उन सब पर दृष्टि डालने से उपरोक्त आपत्तियों के निवारण, और उलझनों के सुलझने में आसानी होगी।


● हिंसा, जीव-हत्या जीव-हत्या, अपने अनेक रूपों में एक ऐसी हक़ीक़त है जिससे मानवता का इतिहास कभी भी ख़ाली नहीं रहा। व्यर्थ व अनुचित व अन्यायपूर्ण जीव-हत्या से आमतौर पर तो लोग हमेशा बचते रहे हैं क्योंकि यह मूल-मानव प्रवृत्ति तथा स्वाभाविक दयाभाव के प्रतिवू$ल है; लेकिन जीवधारियों की हत्या भी इतिहास के हर चरण में होती रही है क्योंकि बहुआयामी जीवन में यह मानवजाति की आवश्यकता रही है। इसके कारक सकारात्मक भी रहे हैं, जैसे आहार, औषधि तथा उपभोग के सामानों की तैयारी व उपलब्धि; और नकारात्मक भी रहे हैं, जैसे हानियों और बीमारियों से बचाव। पशुओं, पक्षियों, मछलियों आदि की हत्या आहार के लिए भी की जाती रही है, औषधि-निर्माण के लिए भी, और उनके शरीर के लगभग सारे अंगों एवं तत्वों से इन्सानों के उपभोग व इस्तेमाल की वस्तुएं बनाने के लिए भी। बहुत सारे पशुओं, कीड़ों-मकोड़ों, मच्छरों, सांप-बिच्छू आदि की हत्या, तथा शरीर व स्वास्थ्स के लिए हानिकारक जीवाणुओं (बैक्टीरिया, जम्र्स, वायरस आदि) की हत्या, उनकी हानियों से बचने-बचाने के लिए की जानी, सदा से सर्वमान्य, सर्वप्रचलित रही है। वर्तमान युग में ज्ञान-विज्ञान की प्रगति के व्यापक व सार्वभौमिक वातावरण में, औषधि-विज्ञान में शोधकार्य के लिए तथा शल्य-क्रिया-शोध व प्रशिक्षण (Surgical Research and Training) के लिए अनेक पशुओं, पक्षियों, कीड़ों-मकोड़ों, कीटाणुओं, जीवाणुओं आदि की हत्या की जाती है। ठीक यही स्थिति वनस्पतियों की ‘हत्या’ की भी है। जानदार पौधों को काटकर अनाज, ग़ल्ला, तरकारी, फल, पू$ल आदि वस्तुएं आहार व औषधियां और अनेक उपभोग-वस्तुएं तैयार करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं; पेड़ों को काटकर (अर्थात् उनकी ‘हत्या’ करके, क्योंकि उनमें भी जान होती है) उनकी लकड़ी, पत्तों, रेशों (Fibres) जड़ों आदि से बेशुमार कारआमद चीज़ें बनाई जाती हैं। इन सारी ‘हत्याओं’ में से कोई भी हत्या ‘हिंसा’, ‘निर्दयता’, ‘क्रूरता’ की श्रेणी में आज तक शामिल नहीं की गई, उसे दयाभाव के विरुद्ध व प्रतिकूल नहीं माना गया। कुछ नगण्य अपवादों (Negligible exceptions) को छोड़कर (और अपवाद को मानव-समाज में हमेशा पाए जाते रहे हैं) सामान्य रूप से व्यक्ति, समाज, समुदाय या धार्मिक सम्प्रदाय, जाति, क़ौम, सभ्यता, संस्कृति, धर्म, ईशवादिता आदि किसी भी स्तर पर जीव-हत्या के उपरोक्त रूपों, रीतियों एवं प्रचलनों का खण्डन व विरोध नहीं किया गया। बड़ी-बड़ी धार्मिक विचारधाराओं और जातियों में इस ‘जीव-हत्या’ के हवाले से ईश्वर के ‘दयावान’ व ‘दयाशील’ होने पर प्रश्न नहीं उठाए गए, आक्षेप नहीं किए गए, आपत्ति नहीं जताई गई।

● भारतीय परम्परा में जीव-हत्या, मांसाहार और पशु-बलि विषय-वस्तु पर इस्लामी दृष्टिकोण और मुस्लिम पक्ष पर चर्चा करने से पहले उचित महसूस होता है कि स्वयं भारतीय परम्परा पर (आलोचनात्मक, नकारात्मक व दुर्भावनात्मक दृष्टि नहीं, बल्कि) एक  तथ्यात्मक (Objective) नज़र भी डाल ली जाए। मनुस्मृति को ‘भारतीय धर्मशास्त्रों में सर्वोपरि शास्त्र’ होने का श्रेय प्राप्त है। इसके मात्र एक (पांचवें) अध्याय में ही 21 श्लोकों में मांसाहार (अर्थात् जीव-हत्या) से संबंधित शिक्षाएं, नियम और आदेश उल्लिखित हैं। रणधीर प्रकाशन हरिद्वार से प्रकाशित, पण्डित ज्वाला प्रसाद चतुर्वेदी द्वारा अनूदित प्रति (छटा मुद्रण, 2002) में 5:17-18; 5:21-22; 5:23; 5:27-28; 5:29-30; 5:31-32; 5:35-36; 5:37-38; 5:39; 5:41-42; 5:43-44; 5:56 में ये बातें देखी जा सकती हैं। इनका सार निम्नलिखित है:

1. ब्रह्मा ने मांस को (मानव) प्राण के लिए अन्न कल्पित किया है। अन्न, फल, पशु, पक्षी आदि प्राण के ही भोजन हैं। ब्रह्मा ने ही खाद्य और खादक दोनों का निर्माण किया है। स्वयं ब्रह्मा ने यज्ञों की समृद्धि के लिए पशु बनाए हैं इसलिए यज्ञ में पशुओं का वध अहिंसा है
2. �भक्ष्य (मांसाहार-योग्य) कुछ पशुओं के नाम बताए गए हैं। सनातन विधि को मानते हुए संस्कृत किया हुआ पशु-मांस ही खाना चाहिए।
3. वेद-विदित और इस चराचर जगत में नियत हिंसा को अहिंसा ही समझना चाहिए क्योंकि धर्म वेद से हो निकला है।
4. �अगस्त्य मुनि के अनुपालन में ब्राह्मण यज्ञ के निमित्त यज्ञ, या मृत्यों के रक्षार्थ प्रशस्त, पशु-पक्षियों का वध किया जा सकता है। मनु जी के कथनानुसार मधुपर्व, ज्योतिष्टोमादि यज्ञ, पृतकर्म और देवकर्म में पशु हिंसा करना चाहिएश्राद्ध और मधुपर्व में विधि नियुक्त होने पर मांस न खाने वाला मनुष्य मरने के इक्कीस जन्म तक पशु होता है
5. देवतादि के उद्देश्य बिना वृथा पशुओं को मारने वाला मनुष्य उन पशुओं के बालों की संख्या के बराबर जन्म-जन्म मारा जाता है।इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि :
(i) आहार के लिए मांस खाया जा सकता है।
(ii) यज्ञ के लिए, श्राद्ध के लिए, और देवकर्म में, पशु हिंसा करनी चाहिए, यह वास्तव में अहिंसा है।
(iii) पशुओं को व्यर्थ मारना पाप है।
(iv) पशु-पक्षी और वनस्पतियां मनुष्य के आहार के लिए ही निर्मित की गई हैं। यही कारण है कि (बौद्ध-कालीन अहिंसा-आन्दोलन के समय, और उसके पहले) वैदिक सनातन धर्म में मांसाहार और यज्ञों के लिए पशु-वध का प्रचलन था। धर्म इसका विरोधी नहीं, बल्कि समर्थक व आह्वाहक था।

● इस्लाम का पक्ष मनुस्मृति, वेद, सनातन धर्म और वैदिक काल के उपर्लिखित हवाले, मांसाहार, जीव-हत्या और क़ुरबानी (पशु-बलि) के इस्लामी पक्ष के पुष्टीकरण में दलील के तौर पर प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। इस्लाम एक प्राकृतिक व शाश्वत धर्म के रूप में, अपने आप में संपूर्ण, तर्कपूर्ण, विश्वसनीय (Authentic) है। उपरोक्त बातें विषय-वस्तु को समझने में उन लोगों की आसानी के लिए लिखी गई हैं जो मालूम नहीं क्यों हर स्तर पर, हर क़िस्म के मांसाहार व जीव-हत्या तथा हिंसा को तो अनदेखा (Neglect) कर देते हैं, बल्कि उनमें से अधिकतर लोग तो स्वयं (बहुत शौक़ से) मांस-मछली, अंडे आदि खाते भी हैं, लेकिन इस्लाम और मुसलमानों के हवाले से इन्हीं बातों पर क्षुब्ध, चिन्तित और आक्रोषित हो जाते हैं।इस्लाम का दृष्टिकोण इस विषय में संक्षिप्त रूप से यूं है :
● भूमण्डल, वायुमण्डल, सौर्यमण्डल की हर वस्तु (जीव-अजीव, चर-अचर) मनुष्यों की सेवा/आहार/उपभोग/स्वास्थ्य/जीवन के लिए निर्मित की गई है।
● किसी भी जीवधारी की व्यर्थ व अनुद्देश्य हत्या अबाध्य (Prohibitted) है, और सोद्देश्य (Purposeful) हत्या बाध्य (Permissible)।

● मुस्लिम पक्ष क़ुरबानी, ईशमार्ग में यथा-अवसर आवश्यकता पड़ने पर अपना सब कुछ क़ुरबान (Sacrifice) कर देने की भावना का व्यावहारिक प्रतीक (Symbol) है। इसकी शुरुआत लगभग 4000 वर्ष पूर्व हुई थी जब ईशदूत पैग़म्बर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से अल्लाह ने उनकी ईशपरायणता की परीक्षा लेने के लिए आदेश दिया था कि अपनी प्रियतम चीज़—बुढ़ापे की सन्तान, पुत्र इस्माईल—की बलि दो। इब्राहीम (अलैहि॰) बेटे की गर्दन पर छुरी पे$रने को थे कि ईशवाणी हुई कि, बस तुम परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए। बेटे की बलि अभीष्ट न थी, अतः (बेटे की बलि के प्रतिदान-स्वरूप) एक दुम्बे (भेड़) की बलि दे दो, यही काफ़ी है (सारांश क़ुरआन, 37:101-107)। तब से आज तक उसी तिथि (10 ज़िलहिज्जा) को, पशु-बलि (कु़रबानी) देकर मुस्लिम समाज के (क़ुरबानी के लिए समर्थ) सारे व्यक्ति, प्रतीकात्मक रूप से ईश्वर से अपने संबंध, वफ़ादारी और संकल्प को हर वर्ष ताज़ा करते हैं कि ‘‘हे ईश्वर! तेरा आदेश होगा, आवश्यकता होगी, तक़ाज़ा होगा तो हम तेरे लिए अपनी हर चीज़ क़ुरबान करने के लिए तैयार व तत्पर हैं।’’ और यही ईशपरायणता का चरम-बिन्दु है।

● मुसलमानों की ‘हिंसक प्रवृत्ति’ (?) जहां तक मांसाहार और पशु-हत्या की वजह से मुसलमानों में हिंसक प्रवृत्ति उत्पन्न होने की बात है तो पिछले आठ नौ दशकों से अब तक का इतिहास इस बात का स्पष्ट व अकाट्य खण्डन करता है। विश्व में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 20-25 प्रतिशत, और भारत में (पिछले 60-62 वर्षों के दौरान) लगभग 15 प्रतिशत रही है। इस समयकाल में दो महायुद्धों और अनेक छोटे-छोटे युद्धों में हुई हिंसा में मुसलमानों का शेयर 0 प्रतिशत रहा है। तीन अन्य बड़े युद्धों में अधिक से अधिक 2-5 प्रतिशत; और भारत के हज़ारों दंगों में लगभग 2 प्रतिशत, कई नरसंहारों (Mass Kilkings) में 0 प्रतिशत। हमारे देश में पूरब से दक्षिण तक, तथा अति दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित एक छोटे से देश में, लंबे समय से कुछ सुसंगठित, सशस्त्र गुटों और सुनियोजित भूमिगत संगठनों द्वारा चलाई जा रही हिंसा की चक्की में लाखों निर्दोष लोग और आबादियों की आबादियां पिस्ती, मरती रही हैं। इनमें कोई भी मुस्लिम गुट या संगठन नहीं है। राष्ट्र पिता और दो प्रधानमंत्रियों के हत्यारे, मुसलमान नहीं थे।

● हिंसा में दरिन्दों, राक्षसों से भी आगे...कौन? हिंसक प्रवृत्ति में जो लोग दरिन्दों, शैतानों और राक्षसों को भी बहुत पीछे छोड़ गए, हज़ारों इन्सानों को (यहां तक कि मासूम बच्चों को भी) ज़िन्दा, (लकड़ी की तरह) जलाकर उनके शरीर कोयले में बदल दिए और इस पर ख़ूब आनन्दित व मग्न विभोर हुए; गर्भवती स्त्रियों के पेट चीर कर बच्चों को निकाला, स्त्री को जलाया, और बच्चे को भाले में गोध कर ऊपर टांगा और ताण्डव नृत्य किया वे मुसलमान नहीं थे (मुसलमान, मांसाहारी होने के बावजूद इन्सानों का मांस नहीं ‘खाते’)



अगर औरतों के साथ ऐसे अत्याचार व अपमान को भी हिंसा के दायरे में लाया जाए जिसकी मिसाल मानवजाति के पूरे विश्व इतिहास में नहीं मिलती तो यह बड़ी अद्भुत, विचित्र अहिंसा है कि (पशु-पक्षियों के प्रति ग़म का तो प्रचार-प्रसार किया जाए, मगरमछ के टस्वे बहाए जाएं, और दूसरी तरफ़) इन्सानों के घरों से औरतों को खींचकर निकाला जाए, बरसरे आम उनसे बलात् कर्म किया जाए, वस्त्रहीन करके सड़कों पर उनका नग्न परेड कराया जाए, घसीटा जाए, उनके परिजनों और जनता के सामने उनका शील लूटा जाए। नंगे परेड की फिल्म बनाई जाए, और गर्व किया जाए! ऐसी मिसालें ‘हिंसक प्रवृत्ति’ वाले मुसलमानों ने कभी भी क़ायम नहीं की हैं। उनकी इन्सानियत व शराफ़त और उनका विवेक और धर्म उन्हें कभी ऐसा करने ही नहीं देगा। ऐसी ‘गर्वपूर्ण’ मिसालें तो उन पर हिंसा का आरोप लगाने वाले कुछ विशेष ‘अहिंसावादियों’ और ‘देशभक्तों’ ने ही हमारे देश की धरती पर बारम्बार क़ायम की हैं।