Friday 20 May 2011

बाटला हाउस मुठभेड़ कांड

बाटला हाउस मुठभेड़ कांड के वर्षो बीतने के बाद और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से आम लोग इस मुठभेड़ पर लगातार प्रश्न उठाते रहे हैं और अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने उनके सवालों को अधिक गंभीर बना दिया है.बहुचर्चित बाटला हाउस प्रकरण में पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं. लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच आख़िर क्यों नहीं कराई?जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र अफरोज़ आलम साहिल ने इस तथाकथित मुठभेड़ से संबंधित विभिन्न दस्तावेज़ पाने के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत लगातार विभिन्न सरकारी एवं ग़ैर सरकारी कार्यालयों के दरवाज़े खटखटाए, किंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट पाने में उन्हें डेढ़ वर्ष लग गए. अफरोज़ आलम ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से उन दस्तावेज़ों की मांग की थी, जिनके आधार पर जुलाई 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी. मालूम हो कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट देते हुए उसका यह तर्क मान लिया था कि उसने गोलियां अपने बचाव में चलाई थीं.राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भेजे गए दस्तावेज़ों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पुलिस द्वारा आयोग एवं सरकार के समक्ष दाख़िल किए गए विभिन्न काग़ज़ातों के अलावा ख़ुद आयोग की अपनी रिपोर्ट भी है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, आतिफ अमीन (24 वर्ष) की मौत तेज़ दर्द से हुई और मुहम्मद साजिद (17 वर्ष) की मौत सिर में गोली लगने के कारण हुई. जबकि इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की मृत्यु का कारण गोली से पेट में हुए घाव से ख़ून का ज़्यादा बहना बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, तीनों (आतिफ, साजिद एवं मोहन चंद्र शर्मा) को जो घाव लगे हैं, वे मृत्यु से पूर्व के हैं. रिपोर्ट के अनुसार, मोहम्मद आतिफ अमीन के शरीर पर 21 घाव हैं, जिनमें से 20 गोलियों के हैं. आतिफ को कुल 10 गोलियां लगीं और सारी गोलियां पीछे से मारी गईं. आठ गोलियां पीठ पर, एक दाईं बाजू पर पीछे से और एक बाईं जांघ पर नीचे से. 2×1 सेमी का एक घाव आतिफ के दाएं पैर के घुटनों पर है. यह घाव किसी धारदार चीज़ या रगड़ लगने से हुआ. इसके अलावा रिपोर्ट में आतिफ की पीठ और शरीर पर कई जगह छीलन है, जबकि जख्म नंबर 20 जो बाएं कूल्हे के पास है, से धातु का एक 3 सेमी का टुकड़ा मिला है.मोहम्मद साजिद के शरीर पर कुल 14 घाव हैं. साजिद को कुल 5 गोलियां लगीं और उनसे 12 घाव हुए. इनमें से तीन गोलियां दाहिनी पेशानी के ऊपर, एक गोली पीठ पर बाईं ओर और एक गोली दाएं कंधे पर लगी. मोहम्मद साजिद को लगने वाली तमाम गोलियां नीचे की ओर निकली हैं, जैसे एक गोली जबड़े के नीचे से (ठोड़ी और गर्दन के बीच), सिर के पिछले हिस्से से और सीने से. साजिद के शरीर से धातु के दो टुकड़े मिलने का रिपोर्ट में उल्लेख है, जिसमें से एक का साइज़ 8×1 सेमी है, जबकि दूसरा पीठ पर लगे घाव (जीएसडब्ल्यू-7) से टीशर्ट से मिला है. इस घाव के पास 5×1.5 सेमी लंबा खाल छिलने का निशान है. पीठ पर बीच में लाल रंग की 4×2 सेमी की खराश है. इसके अलावा दाहिने पैर में सामने (घुटने से नीचे) की ओर 3.5×2 सेमी का गहरा घाव है. इन दोनों घावों के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि ये घाव गोली के नहीं हैं. साजिद को लगे कुल 14 घावों में से सात को बहुत गहरा कहा गया है.इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाएं कंधे से 10 सेमी नीचे घाव के बाहरी हिस्से की सफाई की गई थी. शर्मा को 19 सितंबर 2008 को एल-18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमिली में भर्ती कराया गया था. उन्हें कंधे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी. रिपोर्ट के अनुसार, पेट में गोली लगने से ख़ून ज़्यादा बह गया और यही मौत का कारण बना. मुठभेड़ के बाद यह प्रश्न उठाया गया था कि जब शर्मा को 10 मिनट के अंदर डॉक्टरी सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह पर गोली भी नहीं लगी थी, तो फिर उनकी मौत कैसे हो गई? यह भी प्रश्न उठाया गया था कि शर्मा को गोली किस तऱफ से लगी, आगे से या पीछे से? यह भी कहा जा रहा था कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं, किंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर पा रही है, क्योंकि होली फैमिली अस्पताल जहां उन्हें पहले लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, में उनके घावों की सफाई की गई. लिहाज़ा पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर यह नहीं बता सके कि यह गोली के घुसने की जगह है या निकलने की. दूसरा कारण यह है कि शर्मा को एम्स में सफेद सूती कपड़े में ले जाया गया था और उनके घाव उसी से ढके हुए थे. रिपोर्ट में लिखा है कि जांच अधिकारी से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएं. मालूम हो कि शर्मा का पोस्टमार्टम 20 सितंबर 2008 को 12 बजे दिन में किया गया था और उसी समय यह रिपोर्ट भी तैयार की गई थी.मोहम्मद आतिफ अमीन को लगभग सारी गोलियां पीछे से लगीं. आठ गोलियां पीठ में लगकर सीने से निकली हैं. एक गोली दाहिने हाथ पर पीछे से बाहर की ओर से लगी, जबकि एक गोली बाईं जांघ पर लगी. और, यह गोली हैरतअंगेज तौर पर ऊपर की ओर जाकर बाएं कूल्हे के पास निकली. पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के संबंध में प्रकाशित समाचारों और उठाए जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह तर्क दिया कि आतिफ गोलियां चलाते हुए भागने का प्रयास कर रहा था और उसे मालूम नहीं था कि फ्लैट में कुल कितने लोग हैं, इसलिए क्रॉस फायरिंग में उसे पीछे से गोलियां लगीं. लेकिन, मुठभेड़ या क्रॉस फायरिंग में कोई गोली जांघ में लगकर कूल्हे की ओर कैसे निकल सकती है. आतिफ के दाहिने पैर के घुटने में 1.5×1 सेमी का जो घाव है, उसके बारे में पुलिस का कहना है कि वह गोली चलाते हुए गिर गया था. पीठ में गोलियां लगने से घुटने के बल गिरना तो समझ में आ सकता है, किंतु विशेषज्ञ इस बात पर हैरान हैं कि फिर आतिफ की पीठ की खाल इतनी बुरी तरह कैसे उधड़ गई? पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, आतिफ के दाहिने कूल्हे पर 6 से 7 सेमी के भीतर कई जगह रगड़ के निशान भी पाए गए.साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रॉस फायरिंग के बीच आ गया. इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है. साजिद को जहां गोलियां लगी हैं, उनमें से तीन पेशानी से नीचे की ओर आती हैं. जिसमें से एक गोली ठोड़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है. साजिद के दाहिने कंधे पर जो गोली मारी गई, वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है. गोलियों के इन निशानों के बारे में पहले ही स्वतंत्र फोरेंसिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊंचाई पर था. ज़ाहिर है, दूसरी सूरत उस फ्लैट में संभव नहीं है. दूसरे यह कि क्रॉस फायरिंग तो आमने-सामने होती है, न कि ऊपर से नीचे की ओर.साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि यह किसी ग़ैर धारदार वस्तु से लगा है. पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है, लेकिन 3.5×2 सेमी का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है? पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ एवं साजिद के साथ मारपीट की गई थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के मामलों में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ आयोग के कार्यालय भेजी जाए, लेकिन मोहन चंद्र शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सीडी संबंधित जांच अधिकारी के सुपुर्द की गई. बाटला हाउस की घटना के बाद सरकार, कार्यपालिका और मीडिया ने जो भूमिका अदा की, वह न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि इससे देश के मुसलमानों एवं अन्य लोगों के मन में यह प्रश्न है कि आख़िर सरकार इस मामले की न्यायिक जांच से क्यों कतरा रही है? न्यायिक जांच के लिए जज भी सरकार ही नियुक्त करेगी.वर्ष 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न राय पाई जाती हैं. कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़कर देखते हैं. जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद मीडिया से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है, क्योंकि न्युक्लियर समझौते के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियां पहुंचने से वह परेशान है और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है. समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार, सोनिया गांधी बाटला हाउस मामले की जांच कराना चाहती थीं, लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं, पर उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया किवह कारण क्या है?बाटला हाउस मामले की न्यायिक जांच की मांग केंद्रीय सरकार के अलावा अदालत भी नकार चुकी है. सबका यही तर्क है कि इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा. केंद्रीय सरकार और अदालत जब इस तर्क द्वारा जांच की मांग ठुकरा रही थी, उसी समय देहरादून में रणवीर नामक युवक की मुठभेड़ में मौत की जांच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्ध हुआ. आख़िर पुलिस का मनोबल रूपी यह कौन सा आधार है, जिसकी रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्यागा जा रहा है. ये भेद भाव नही तो क्या है.???? अपने सभी दोस्तों की राये चाहता हु | मेरा सिर्फ इतना कहना है की अगर ये सच है तो सफाई सामने लाई जाए वरना अगर ये गलत है तो दोषियों को सज़ा दी जाए

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