Monday, 21 March 2011

संघ को अगले प्रतिबंध का डर या इंतज़ार



हिंदू आतंकवाद के मुद्दे पर संघ पर आरोप लगने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत चिंतित हैं। उन्होंने संघ प्रचारकों की मेजर सर्जरी करने की योजना बनाई है। संघ प्रमुख को विश्वास है कि संघ इस मुद्दे पर फिर पाक-साफ साबित होगा। राजस्थान और महाराष्ट्र एटीएस की धरपकड़ की कार्रवाइयों और मीडिया के स्टिंग ऑपरेशनों से परेशान संघ के सामने जैसी विकट परिस्थिति है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। संघ के समक्ष तीन बार चुनौतियां आई और तीनों बार वह कुंदन की तरह दमक कर निकला, लेकिन ताजा मामलों ने संघ को हिला दिया है। संघ को पहली चुनौती जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटे ने दी थी, जब मामला गांधी हत्या के षड्यंत्र के आरोप में संघ को 1948 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। बाद में अदालती आदेशों और सरदार पटेल के ही प्रयासों से प्रतिबंध हटा दिया गया था। दूसरी चुनौती 1975 में आपातकाल के दौरान आई, तब इंदिरा गांधी ने संघ की गतिविधियों को अवांछित घोषित कर न केवल प्रतिबंध लगा दिया था, बल्कि उसके हजारों कार्यकर्ताओं को जेलों में ठंूस दिया था। 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद यह प्रतिबंध हटा था। तीसरी चुनौती 1992 में तब आई जब बाबरी मस्जिद ध्वंस का जिम्मेदार ठहराकर पीवी नरसिंहराव ने संघ को प्रतिबंधित कर दिया था। अदालती आदेश के बाद यह प्रतिबंध एक वर्ष में ही समाप्त हो गया था। बहरहाल आपातकाल के बाद मूर्धन्य पत्रकार और प्रचारक मामा माणिकचंद्र वाजपेयी ने पुस्तक लिखी थी, जिसका शीर्षक था एक और अग्निपरीक्षा। यह पुस्तक काफी सराही और पढ़ी गई थी। राजस्थान और महाराष्ट्र एटीएस की कार्रवाइयों और मीडिया के स्टिंग ऑपरेशन के कारण संघ इस बार सबसे कठिन अग्निपरीक्षा से गुजर रहा है। मालेगांव, अजमेर, हैदराबाद और समझौता एक्सप्रेस के बम कांडों में उसके स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी और वरिष्ठ प्रचारकों के नाम आने से संघ के कर्णधार अंदर तक हिल गए हैं। संघ की प्रतिष्ठा को ऐसा आघात पहले कभी नहीं लगा। इस अभूतपूर्व संकट से निपटने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत और सरकार्यवाह भैयाजी जोशी प्रचारकों की मेजर सर्जरी करने वाले हैं। सर्जरी से कई वरिष्ठ प्रचारक प्रभावित हो सकते हैं। मोहन भागवत कतिपय प्रचारकों के विजयादशमी से पूर्व मंथन बैठक करने की तैयारी में हैं। इस मंथन बैठक में परिवर्तन के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे।
 
केएस सुदर्शन के कारण बढ़ा कट्टरपंथ
संघ के पूर्व सरसंघचालक कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन को हार्डलाइनर माना जाता है। विवादास्पद सभी प्रचारक उनसे प्रभावित रहे हैं। श्री सुदर्शन 1977 से 1990 तक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख रहे हैं। इस दौरान प्राथमिक शिक्षावर्गों, ओटीसी कैंपों और अन्य बैठकों में श्री सुदर्शन लगातार यह कहते रहे हैं कि 2011 के बाद हिंदुओं को हिंदू विरोधियों अर्थात मुस्लिमों और ईसाइयों से मैदानी संघर्ष करना पड़ेगा। श्री सुदर्शन के कारण ही संघ परिवार में अतिरिक्त कट्टरवाद बढ़ा, क्योंकि वे सदैव संघर्ष की ही भाषा बोलते थे। उन्हीं के कारण बजरंग दल को महत्व और मजबूती मिली। संघ का वर्तमान नेतृत्व स्थिति बिगडऩे से बचाने के लिए ही अपने कैडर को सेवा और समरसता की ओर मोडऩे का प्रयत्न कर रहा है।
कई प्रचारकों को पहले ही हटाया
संघ को विवादास्पद कार्रवाइयों की भनक पहले से ही थी। इसलिए तीन वर्ष पूर्व कतिपय कट्टरपंथी प्रचारकों को दायित्व मुक्त कर दिया गया था। इसमें मध्यभारत प्रांत सर्वाधिक प्रभावित हुआ था। संघ ने प्रांत बौद्धिक प्रमुख अभय जैन, विभाग प्रचारक अनिल डागा, मिलिंद कोपरगांवकर, सहविभाग प्रचारक मनीष काले, महेश शर्मा, जिला प्रचारक संदीप डांगे, नवलकिशोर शर्मा, सुनील गोरे को पहले ही हटा दिया था। उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक अशोक देरी और कानपुर के प्रांत प्रचारक अशोक वैष्णव को हाल ही में दायित्व मुक्त किया गया। अभी और प्रचारकों पर गाज गिरने की संभावना है।

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