दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोर्स से ए. के. रामानुजन की 'रामायण' पर लिखे गए विवादास्पद निबंध को हटाने पर विवाद शुरू हो गया है। यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग कुछ टीचर निबंध को हटाने के खिलाफ एकजुट होने लगे है। शिक्षकों ने 24 अक्टूबर को प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। इस मार्च में दूसरे विश्वविद्यालयों के भी कुछ शिक्षक शामिल हो सकते हैं।
रामानुजन द्वारा रामायण की विविधता पर केंद्रित इस विवादास्पद निबंध ‘थ्री हंड्रेड रामायंस: फाइव एक्साम्पल्स एंड थ्री थाट्स आन ट्रांसलेशन’ को डीयू की एकेडमिक कौंसिल ने भारी बहुमत से खारिज कर दिया है, लेकिन शिक्षकों के एक समूह को यह फैसला रास नहीं आ रहा है। कुछ इतिहासकारों को भी यह फैसला नागवार गुजरा है।
जेएनयू में समकालीन भारतीय इतिहास के प्रोफेसर आदित्य मुखर्जी कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि कौंसिल का फैसला हास्यास्पद है। ऐसे बेबुनियाद कारणों से किसी निबंध को पाठ्यक्रम से हटाने का कोई मतलब नहीं है। एतिहासिक तौर पर यह तथ्य है कि रामायण को लेकर इस तरह के कई विचार और स्वरूप हैं। किसी समूह की ओर से किए जा रहे विरोध के आधार पर एजुकेशनल टेक्स्ट को बदलना सही नहीं है।’
इस निबंध में सीता को रावण की पुत्री और राम-सीता को भाई-बहन बताने के साथ हनुमान को महिला प्रेमी और रसिक स्वभाव वाला कहा गया है। डीयू का डेमोक्रेटिक टीचर्स फोरम दो छात्र संगठनों- स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और आल इंडिया स्टूडेंट्स फोरम के साथ मिलकर इस निबंध को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए मुहिम छेड़ने जा रहा है।
फेसबुक पर बहस
फेसबुक पर भी डीयू के शिक्षकों में इस निबंध को हटाने को लेकर जमकर बहस हो रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के टीचर ग्रुप पेज पर इतिहास के कई प्रोफेसरों ने इस निबंध को हटाने पर आपत्ति जताई है। इन प्रोफेसरों ने फेसबुक पर अपनी टिप्पणियां दी हैं। एलएसआर कॉलेज के पंकज झा ने इतिहास के शिक्षकों से बैठक कर इस मामले पर अपना फैसला लेने की संभावनाओं पर विचार करने को कहा है। उन्होंने लिखा है,'ना तो एक्सपर्ट पैनल और ना ही शिक्षकों ने इस निबंध पर ऐतराज जताया, फिर भी इसे हटा दिया गया।' दयाल सिंह कॉलेज के नवीन गौर ने लिखा है, ' जिन छात्रों ने यह निबंध पढ़ा है, उनको भी इसे हटाने का फैसला गलत लग रहा है।'
रामानुजन द्वारा रामायण की विविधता पर केंद्रित इस विवादास्पद निबंध ‘थ्री हंड्रेड रामायंस: फाइव एक्साम्पल्स एंड थ्री थाट्स आन ट्रांसलेशन’ को डीयू की एकेडमिक कौंसिल ने भारी बहुमत से खारिज कर दिया है, लेकिन शिक्षकों के एक समूह को यह फैसला रास नहीं आ रहा है। कुछ इतिहासकारों को भी यह फैसला नागवार गुजरा है।
जेएनयू में समकालीन भारतीय इतिहास के प्रोफेसर आदित्य मुखर्जी कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि कौंसिल का फैसला हास्यास्पद है। ऐसे बेबुनियाद कारणों से किसी निबंध को पाठ्यक्रम से हटाने का कोई मतलब नहीं है। एतिहासिक तौर पर यह तथ्य है कि रामायण को लेकर इस तरह के कई विचार और स्वरूप हैं। किसी समूह की ओर से किए जा रहे विरोध के आधार पर एजुकेशनल टेक्स्ट को बदलना सही नहीं है।’
इस निबंध में सीता को रावण की पुत्री और राम-सीता को भाई-बहन बताने के साथ हनुमान को महिला प्रेमी और रसिक स्वभाव वाला कहा गया है। डीयू का डेमोक्रेटिक टीचर्स फोरम दो छात्र संगठनों- स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और आल इंडिया स्टूडेंट्स फोरम के साथ मिलकर इस निबंध को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए मुहिम छेड़ने जा रहा है।
फेसबुक पर बहस
फेसबुक पर भी डीयू के शिक्षकों में इस निबंध को हटाने को लेकर जमकर बहस हो रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के टीचर ग्रुप पेज पर इतिहास के कई प्रोफेसरों ने इस निबंध को हटाने पर आपत्ति जताई है। इन प्रोफेसरों ने फेसबुक पर अपनी टिप्पणियां दी हैं। एलएसआर कॉलेज के पंकज झा ने इतिहास के शिक्षकों से बैठक कर इस मामले पर अपना फैसला लेने की संभावनाओं पर विचार करने को कहा है। उन्होंने लिखा है,'ना तो एक्सपर्ट पैनल और ना ही शिक्षकों ने इस निबंध पर ऐतराज जताया, फिर भी इसे हटा दिया गया।' दयाल सिंह कॉलेज के नवीन गौर ने लिखा है, ' जिन छात्रों ने यह निबंध पढ़ा है, उनको भी इसे हटाने का फैसला गलत लग रहा है।'
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