Friday 25 March 2011

लखनऊ विश्वविश्यालय- सब कुछ लुटा कर होश में आये तो क्या किया

लखनऊ विश्वविद्यालय हमेशा चर्चा का विषय रहा है आज फिर एक बार चर्चा का विषय बना है कारण कोई फख्र करने वाला See full size imageविषय नहीं है कारण कुछ इस प्रकार है की विश्वविद्यालय जद्दोजहद कर रहा है सरकार से अनुदान पाने के लिए क्यों की लखनऊ विश्वविद्यालय इस समय ४२ करोड़ के घाटे में चल रही है अब विश्वविद्यालय प्रशासन परेशां है की किस प्रकार एस घाटे से उबरा जाए और इस मंथन में है की कैसे खर्चा कम किया जाए और आय का साधन बढाया जाए सभी कुलपति जी के साथ सभी बुद्धिजीवी लगे हुवे है मंथन में इस मंथन का एक हल इस "तुच्छ प्राणी" के पास भी है अगर कुलपति जी गौर फरमाए तो कुछ ऐसा है
१.शुरू करते है विश्वविद्यालय के निर्माण विभाग से! हर तरह से सक्षम यह विभाग २०० कर्मचारियों से सुसज्जित है जिसको आप कुर्सी पर बैठ कर वेतन देने की सुविधा प्रदान किये है क्यों की इनका कार्य आप बाहरी agency से करवाते है अगर बाहरी को बाहर तक रहने दे और जिनको एन कार्यो का वेतन आप दे रहे है वह सारा काम आप उनसे करवाई तो लगभग १०-१२ करोड़ तो बच ही जायेगा अन्यथा २०० लोगो का वेतन बचा ले वैसे २०० के पेट पर लात मरने से बेहतर है की २-४ लोगो का Undertable भत्ता कट जाए 
२.आपको याद होगा की पिछले साल सफाई कर्मियों की पड़ताल हुए थी जिसमे आपको पता चला था की २०% कर्मी मर चुके है और २०% बिस्तर से उठ नहीं सकते है यही अकड़ा उद्यान विभाग का भी आया था तो आप ये पता लगा ले की जो मर चुके है उनका वेतन कौन भूत खा रहा है और जब पता लग जय तो उन भूतो से कहिये की भूत जी अब आप अपनी सेवा समाप्त करिए ( यदि आपको ना पता हो तो वरना मैंने तो सुना है की बॉस को सब पता रहता है) बिस्तर वालो का वेतन भी बच जायेगा अगर बचाना चाहे तो 
३. अंक पत्र छपने का कार्य आप बाहरी ठेके पर करवा रहे है और वो भी करोडो में अगर वाहे कार्य अगर कंप्यूटर विभाग से करवाई जय तो करोडो बच जायेगा 
४. थोडा सुरक्षा ठेक कर दे क्योंकी मछली द्वार पर रक्खा ३० लाख का लोहा और अन्य सामान चोरी हो सकता है तो कही किसी रोज़ विश्वविध्यालय ही गायब न हो जाए समझ रहे है न मै क्या कहना चाहता हु .............     समझदार है कुलपति जी............ आपके साथ साथ जनता भी.........
भाई लोग समझा करो आपलोग मत समझो केवल कुलपति जी को समझने दो.......... देखो........नहीं......नहीं.............,,,,,,,,,,,,,अब क्या करे कुलपति जी जनता भी समझदार है समझ जाती है जैसे आप विभागों के सामन बदलवाते है कभी खबर नहीं रखते है की बदला हुवा सामान कहा गया जनता समझती है कहा गया क्यों की इसको मार्केट में बेचा भी जा सकता है ना और इसकी अच्छी कीमत मिलती है खैर कोई बात नहीं
पता करियेगा कही गायब तो नहीं हो गया है क्यों की अपना विश्वविध्यालय तो निपूर्ण है गायब करने में जब तेच्निकल औडिट सेल से निर्माण कार्यो के लिए दिए गई धन की औडिट करवाने की चिट्ठी गायब हो सकती है तो ये तो सामान है 
५.आपने ४-४ लाख रुपैया पक्टोरियल बोर्ड और छात्र कल्याण विभाग को निधि में बढ़ा दिया अब उनको खर्चा कर नहीं पते है तो पहले उनको खर्चा करना सिखाइए या फिर बढ़ोतरी वापस ले लीजिये
६. ऐसे मैंने सुना है कही की यदि आदमी इमानदारी से काम करे तो काम समय से पूरा हो जाता है मगर आप तो दरियादिल है आप overtime करवाते है और उसका भुगतान करते है और दरियादिली का हाल ये है की आप भुगतान भी चेक से नहीं DD से करते है अगर चेक से करेगे तो DD का खर्चा कैसे आयेगा और बैंक की कमाई कैसे बढ़ेगी आप तो दरियादिली में सबसे ऊपर है तभी तो अध्यापको को परीक्षा के उन कार्यो में भी लगते है जिनके लिए अन्य कर्मचारियों को वेतन देते है अगर उनसे लेगे तो शिक्षक कैसे कमैगे 
आदरणीय कुलपति जी आपके ज्ञान हेतु बता दू के आपके विश्वविद्यालय को मिलने वाला अनुदान आम जनता की गाढ़ी कमाई है और ये जनता है सब जानती है लीजिये कागज़ पर कम्वादिया आपका घटा ४२ करोड़ का अब आप इसको गल्ले तक कैसे लाते है देख लीजिये इससे पहले की जनता जागे और जनता की शक्ति कितने होती है ये आप मिश्र का उदहारण देख सकते है अब मर्ज़ी है आपकी मगर ये याद रखियेगा पैसा है हमारा
धन्यवाद

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