Saturday 19 March 2011

इस्लाम में महिलाओ का अधिकार اسلام مے مسلمان اورتو کے حق


मेरे प्यारे दोस्तों लेख से पहले मै लेखक के बारे में बतादू
लेखक डाक्टर ममता सिंह संत तुलसी दास PG College में प्रवक्ता हिंदी पद पर कार्यरत है

जैसा की आप सभी जानते है कि इस्लाम एक धर्म है मगर मेरी समझ में और मेरी सोच में इस्लाम कोई मज़हब नहीं है बल्कि तरीकत-ए-ज़िन्दगी यानी जीवन जीने का एक तरीका है जिसका धार्मिक ग्रन्थ कुरान है,वैसे मै जहा तक समझती हूँ कि इस्लाम एक धर्म ही नहीं है एक तरीका है "मुकम्मल जीवन को जीने का तरीका". वैसे अगर शब्द के अर्थ को देखे तो इस्लाम एक तहजीब है और मुसलमान वह है "जो मुक्कम्मल ईमान वाला हो"
हम तो यही मानते है कि मुस्लमान का यही अर्थ सही भी है वैसे तो हम सभी अपने को इंसान मानते है पर असलियत तो इसकी उलटी ही है हम जीवन जीते है, इंसानों वाले  तौरतरीके से पर हमारी सोच तो गैर इंसानों वाली ही है हम स्वयं के सच को ही सही मानते है और दुसरे के सही और सच्ची बातो को भी शक कि निगाह से देखते है हमारी सोच रुढिवादिता के चंगुल में ऐसी फसी है कि सही और गलत का अंतर हमे दिखाई ही नहीं देता है,बात करते है पाक धर्म ग्रन्थ कुरान कि जो उस अल्लाह के शब्द है और सचे दूत के माध्यम से अल्लाह ने तुम तक भेजा है जो स्वयं में अपने हर "आयातों" में सच और इन्सानिय का ज़िक्र करता है अगर बात शरियत कि हो, पाक कुरान शरीफ कि शरियत का जो व्यक्ति अनुपालन करता है वह मुसलमान होता है इसके विपरीत कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए इस "शरियत"का इस्तेमाल करने लगे है यही वह लोग है जो आज इस धर्म की गलत तस्वीर पेश करते है.जो एक रुढ़िवादी सोच का नतीजा है
हम जानते भी है और देखते भी है हमारे हिन्दुस्तान मै हर कमज़ोर वर्ग कि महिलाओ कि स्थिति अत्यंत दयनीय है वजह उनकी शिक्षा सही ढंग से नहीं होती है बात यहाँ मुस्लिम महिलाओ कि करू तो शरियत के बारे में उनकी जानकारी और उनकी शिक्षा कम या ना के बराबर होने से अधिअधुरी ही रहती है जबकी सच यह है कि "मुहम्मद"साहेब ने चौथी शताब्दी में दुनिया भर मै हो रहे अत्याचार अन्याय के कारण समाज कि हालात को देखकर कहा कि "लड़कियों से मुहब्बत करो वो जन्नत का दरवाज़ा होती है"समाज मै यह स्थिति थी कि लोग लड़कियों को जिंदा ही दफ़न कर देते थे उन्हे पैदा होते ही मार डाला जाता था,शायद यही हालात थे जो पैगम्बर ने लोगो से कहा "बेटिया मेरा सलाम है हर मोमिन के लिए"मोमिन शब्द कुछ तंग नज़र के लोग सिर्फ मुसलमान मानते है मगर मोमिन का मतलब इंसान "जिसमे मानवता और मुक्कमल ईमान हो" होता है जब इतनी बड़ी हस्ती जिसकी मिसाल ना दुनिया में थी ना है और ना होगी इस तरह के अधिकार का वर्णन है सच कहू तो महिलाओ का यह हक तो इस्लाम में है यहाँ एक बात पर और गौर करने लायक है कि "मुहम्मद साहेब " को भी सिर्फ एक बेटी थी "fatima" यह कितनी बड़ी बात है कही और अगर ऐसे मिसाल हो तो बताइयेगा ज़रूर मुझे
महिलाओ कि दशा के लिए जब इतनी बड़ी बात इस्लाम मै है तो फिर उनके अधिकारों का वर्णन ना हो ये संभव कैसे होगा. है अधिकारों का वर्णन है परन्तु एक तो कम जानकारी और दूसरी ओरभारतीय संविधान पाक कुरान शरीफ कि शरियत के अधिकारों के तहत मुस्लिम महिलाओ को हकुए देने का कानून नहीं बनाया गया है मुस्लिम महिलाओ को दिए गई कुछ अधिकारों का संक्षिप्त वर्णन यहाँ किया गया है 
१ मुसलमान के घर में बच्ची को अपने पिता कि चल अचल संपत्ति में हिस्सेदारी का हक दिया गया है 
२ मुस्लिम लडकियों को शिक्षा प्राप्त करने का पूरा अधिकार दिया गया है
३ मुस्लिम महिलाये अपनी योग्यता अनुसार कुरान शरीफ कि शरियत का पालन करते हुए प्रत्येक क्षेत्र में अपना योगदान कर सकते है इस्लाम धर्म का सही अर्थ और दीनी ज्ञान देने का भी मुस्लिम महिलाओ को शरियत में अधिकार है
४. निकाह करते समय शरियत में मेहर का भुगतान तुरंत ज़रूरी है, निकाह के समय शौहर का कर्तव्य है कि पहले वह मेहर अदा करे क्योकि मेहर पत्नी का वाजिब हक है मेहर शौहर कि आर्थिक स्थिति के आधार पर तय किया जाता है
५. कोई मुसलमान व्यक्ति यदि अपनी पत्नी को तलक देना चाहता है तो उसी अपनी पत्नी को इमानदार व परहेजगार हकम गवाहों के सामने तलक देने का कारण बताना ज़रूरी है
६. खुला एक ऐसा अधिकार है जिसमे पत्नी अपने पति से यदि अत्याचार से तंग आगई तो उससे आज़ादी पा सकती है
ये सारे अधिकार ऐसे अधिकार है जिसका कुरान शरीफ में वर्णन है इसके अतिरिक्त और कोई धर्म ऐसा नहीं है जिसमे धार्मिक लेख में ऐसा वर्णन हो
  एक ऐसा और भी विसंगति फैलाई जाती है इस धर्म के बारे में कि ये बहु विवाह करते है तो अन्य धर्मो में भी लोगो ने बहुविवाह किया है और इसका कोई कानून नहीं है परन्तु मेरे जानकारी में सिर्फ एक इस्लाम ऐसा धर्म है जिसमे बहुविवाह का नियम है कि "अगर अदल(इन्साफ) न कर सको तो बस एक पर बस करो..... मतलब अगर पहली पत्नी को उसका पूरा हक न दे सको तो दूसरा विवाह ना करो
यह लेख मैंने कुरान शरीफ कि सूरेह निकाह,सूरेह अन्निसः,सूरेह तलाक,सूरेह उन्फाल,सूरेह बकर सूरेह अन्निसः से प्रेरित होकर लिखा है सधन्यवाद इर्फनुल कुरआन के
  
लेखक का पता निम्नवत है यदि किसी भी तरह का पत्राचार करना हो तो एस पते पर कर सकते है
डाक्टर ममता सिंह
हिंदी विभाग
संत तुलसीदास PG कॉलेज
कादीपुर,सुल्तानपुर

1 comment:

  1. प्रिय लेखिका
    पहले मैं आपको मुबारकबाद देना चाहूंगी इतने अच्छे लेख लिखने के लिए व शुक्रिया भी कहना चाहूंगी की आपने कुरान को सही मायनो में समझा जो अक्सर लोग नहीं करते है | कुरान को पढना व अपनी ज़रुरतो के हिसाब से उसके मायने बदल लेना लोगो की आदत बन चुकी है, ऐसे में लोगो को सही मायनो से अवगत करने का आपका ये प्रयास काफी सराहनीय है |
    आप इसी तरह से लेख लिखती रहे व मज़हब को इंसानियत से जोडती रहे |

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