Monday 15 August 2011

दोष किसका है ?

तेरह मई को ग्यारह बजे दिन में दिल्ली से लंदन के लिए एमिरेट्स एयरलाइंस का एक विमान उड़ान भरने को तैयार था। उड़ान भरने से पहले किसी यात्री ने अपने संबंधी को फोन किया। फोन पर उसने बताया कि विमान उड़ान भरने वाला है। इसी के साथ-साथ वह भी उड़ने के लिए तैयार है।बस क्या था। बगल में बैठी महिला यात्री को शक हुआ। कैबिन क्रू को बुलाया गया। विमान को उड़ान भरने से रोका गया। सीआईएसएफ को खबर की गई। फोन पर बातचीत करने वाले शख्स देवबंद के फारूकिया मदरसा चलाने वाले इस्लामिक विद्वान मौलाना नूर उल हुदा थे। सीआईएसएफ के जवान फौरन हाजिर हुए। नूर उल हुदा से पूछताछ हुई। विमान की पूरी पड़ताल हुई।सारी तसल्ली के बाद १2 बजकर १६ मिनट पर विमान को उड़ान भरने की इजाजत दी गई। लेकिन नूर उल हुदा की मुश्किलें फिर भी खत्म नहीं हुई। फोन पर हुई उनकी बातचीत का अलग ही अर्थ निकाला गया। नूर उल हुदा साहब एक धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने लंदन जा रहे थे। लेकिन सम्मेलन तो दूर, उन्हें पूरी रात दिल्ली की तिहाड़ जेल में बितानी पड़ी। शुक्र है गृहमंत्री पी चिदंबरम का, जिनकी वजह से नूर उल हुदा जल्दी छूट गए।गृहमंत्री को जैसे ही यह जानकारी मिली कि दिल्ली एयरपोर्ट पर इस तरह की घटना हुई है, उन्होंने गृह सचिव को इस मामले में दखल देने को कहा। गृह सचिव की दिल्ली पुलिस कमिश्नर से बात हुई। तब जाकर दिल्ली पुलिस को लगा कि कहीं कोई चूक हुई है। दूसरे दिन अदालत में नूर उल हुदा को जमानत मिल गई और वह वापस देवबंद चले गए। बाद में दिल्ली पुलिस ने नूर उल हुदा के खिलाफ मामला वापस लेने का फैसला किया। नूर उल हुदा खुश किस्मत हैं कि उनकी गिरफ्तारी की खबर तत्काल गृह मंत्रालय तक पहुंच गई।देश में पुलिस से ऐसी कई गलतियां हो जाती हैं जिसकी वजह से कई भले-चंगे इंसानों की जिंदगी ही बदल जाती है। इस पूरे घटनाक्रम से कई सवाल उठते हैं। विमान में बैठी सहयात्री को नूर उल हुदा की बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई होगी।सहयात्री ने पुलिस को बताया कि नूर उल हुदा फोन पर यह बता रहे थे कि जहाज उड़ने वाला है और इसके साथ-साथ वो लोग भी उड़ने वाले हैं। किसी को इसका मतलब कुछ भी लगे, लेकिन फोन पर अपने परिजन को यह बताना कि जहाज उड़ने वाला है, उत्तर भारत में बोलचाल की आम भाषा का हिस्सा है। जो यहां की भाषा से परिचित नहीं हैं, उनको इसके दूसरे मतलब लग सकते हैं। लेकिन फोन पर इस तरह की बातचीत का इतना बड़ा परिणाम! यह समझ में नहीं आता है।नूर उल हुदा को पहले तो विमान से उतारना ही उचित नहीं था। ऊपर से रात भर जेल में रखना तो और भी शर्मनाक है। शक होने के बाद पूछताछ करके पुलिस यह तसल्ली कर सकती थी कि नूर उल हुदा निर्दोष हैं। पुलिस कोई चांस नहीं लेना चाहती थी। लेकिन जरा नूर उल हुदा के बारे में सोचिए। सम्मेलन में भाग लेने के लिए उन्होंने कितनी तैयारी की होगी। विदेश भ्रमण के उनके कितने मंसूबे होंगे। लेकिन सब धरा का धरा रह गया।बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी खास कौम का होने की वजह से कोई हमेशा शक के घेरे में रहता है? क्या कम्युनिटी प्रोफाइलिंग होती है? अगर यह सच है तो उस कौम के सदस्यों को हम मुख्यधारा से कैसे जोड़ पाएंगे। यह एक अकेली घटना नहीं है। इस तरह के कई हादसे देश में होते रहते हैं।कुछ गिने- चुने मामलों में तो पुलिस अपनी भूल को सुधार लेती है लेकिन कई मामलों में निर्दोष सजा पा जाते हैं। जो लोग पकड़े जाते हैं और उनको सजा भी मिल जाती है, तो समाज में उनकी बदनाम छवि बन जाती है। यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या अपराध की कोई जाति होती है? क्या आतंकवाद की जड़ किसी खास कौम से जुड़ी है ? मैं जानता हूं कि गृहमंत्री पी चिदंबरम की इस तरह की सोच नहीं है। उनके सेक्यूलरिज्म पर उंगली नहीं उठाई जा सकती है।लेकिन क्या उनकी पुलिस फोर्स के बारे में भी ऐसा ही कहा जा सकता है? क्या देश की बड़ी आबादी की सोच भी कुछ इस तरह की नहीं हो गई है? अगर ऐसा है तो फिर एक बड़ी मुहिम की जरूरत है। सबसे पहले अपनी पुलिस फोर्स को इस मामले में प्रशिक्षित करने की जरूरत है। सबकी सुरक्षा हम सबकी पहली प्राथमिकता है। बड़े हादसे पुलिस की सूझबूझ से रूकें तो हम सबका भला होगा। लेकिन मिसकम्युनिकेशन के नाम पर किसी को पकड़ने और बदनाम करने को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।इसके लिए सोच बदलने की जरूरत है। संदिग्ध बातचीत और हरकतों की खबर पुलिस को होनी चाहिए। यह हम सबकी जिम्मेदारी है। लेकिन सूचना पर एक्शन लेने से पहले पुलिस के पास ठोस सबूत होने चाहिए। साथ ही मीडिया की भी यह जिम्मेदारी है कि बिना किसी ठोस सबूत के वह मीडिया ट्रायल शुरू न कर दे। अगर इन मामलों में हम सावधानी नहीं बरतते हैं तो आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई कभी सफल नहीं होगी। सुरक्षा-व्यवस्था पुख्ता बनाने के लिए पुलिस फोर्स को दिमाग के साथ- साथ दिल की भी जरूरत होगी।दिमाग सबूत तलाशेगा और दिल में यह बात होनी चाहिए कि कानून के दुश्मन की कोई जाति नहीं होती है, कोई धर्म नहीं होता है। जाति और धर्म के आधार पर किसी को कानून का दुश्मन करार करना कानून के साथ मजाक है।

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